महिलाओं का गाँव: यहां विदा हो कर आते हैं लड़के, पूरी दुनिया में इसका नाम

एक ज़माने में कन्या भ्रूण हत्या और दहेज हत्या में मामले में आगे रहे कौशांबी के इस गांव ने अपनी बेटियों को बचाने के लिए सबसे अलग तरीका अपनाया।

Update: 2020-09-05 11:11 GMT
महिलाओं का गाँव: यहां विदा हो कर आते हैं लड़के, पूरी दुनिया में इसका नाम

नई दिल्ली: भारत की सदियों पुरानी रीत है कि शादी के बाद लड़कियां अपने ससुराल चली जाती हैं और अपनी बाकी जिंदगी वहीं बिताती हैं। लेकिन क्या आपको पता है कि देश का एक ऐसा कोना भी है जहां लड़की शादी के बाद ससुराल नहीं जाती। बल्कि लड़की का पति ही उसके घर पर बस जाता है।

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दामादों के गांव के नाम पर मशहूर

बता दें ये गांव कोई और नहीं बल्कि उत्तरप्रदेश के कौशांबी में एक छोटा सा गांव अपनी यही पहचान लिए हुए है। इस गांव का नाम हिंगुलपुर है, लेकिन इस गांव को दामादों का पुरवा यानी दामादों के गांव के नाम पर जाना जाता है। कौशांबी जिले के दामादों वाले इस गांव की और भी कई खासियत हैं।

इसलिए अपनाया ये तरीका

एक ज़माने में कन्या भ्रूण हत्या और दहेज हत्या में मामले में आगे रहे कौशांबी के इस गांव ने अपनी बेटियों को बचाने के लिए सबसे अलग तरीका अपनाया। सालों पहले इस गांव के बुजुर्गों ने बेटियों को शादी के बाद मायके में ही रखने का फैसला किया। मुस्लिम बाहुल्य आबादी वाले इस गांव के तरीके को अल्पसंख्यकों ने भी अपनाया। इस गांव की बेटियां जैसे ही शादी की उम्र तक पहुंचती हैं, उनके रिश्ते की बात में ये एक अहम शर्त राखी जाती है।

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दामादों के लिए रोजगार की व्यवस्था

गांव में रहने वाले दामादों को भी रोजगार और काम मिल सके, इस बात का भी बंदोबस्त गांववाले ही मिलकर करते हैं। इस गांव में आसपास के जिलों जैसे कानपुर, फतेहपुर, प्रतापगढ़, इलाहाबाद और बांदा के दामाद रह रहे हैं। इस गांव में 18 से 70 साल की उम्र तक की महिलाएं शादी के बाद अपने पतियों के साथ बसी हुई हैं। साथ ही यहां एक ही घर में दामादों की पीढ़ियां बसी हुई हैं।

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इस मामले में ये सिर्फ अकेला गांव नहीं है। मध्यप्रदेश के नरसिंहपुर जिला मुख्यालय के पास भी ऐसा ही एक गांव है जहां दामाद बसते हैं। दरअसल यहां अधिकतर परिवार दूसरे प्रदेशों से माइग्रेट होकर आए और बस गए। इसके बाद अपनी बेटियों को सुरक्षित रखने के लिए गांव के लोगों ने बेटियों को मायके में ही रखने का फैसला किया।

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