मॉरीशस में आज ही के दिन पहुंचे थे भारतीय, देश की तरक्की में किया अहम योगदान

भारतीय मूल के लोग मॉरीशस के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री जैसे महत्वपूर्ण पदों पर पहुंचे। मॉरीशस में कई ऐसे लोग हैं जिनके परिवार वाले पहले मजदूरी किया करते थे मगर अब उनकी देश में एक खास पहचान बन चुकी है।

Update:2020-11-02 10:25 IST
मॉरीशस की तरक्की में अहम योगदान देने वाले भारतीय आज ही के दिन 1834 में मॉरीशस पहुंचे थे। भारतीयों की देश में एक खास पहचान बन चुकी है।

अंशुमान तिवारी

नई दिल्ली: मॉरीशस की तरक्की में अहम योगदान देने वाले भारतीय आज ही के दिन 1834 में मॉरीशस पहुंचे थे। 1834 में दो नवंबर को ही एटलस नामक जहाज यूपी और बिहार से मजदूरों को लेकर मॉरीशस पहुंचा था। बाद में मजदूरों की आने वाली पीढ़ियों ने देश के विकास में अहम योगदान दिया और देश में बड़े-बड़े पदों को संभाला।

भारतीय मूल के लोग मॉरीशस के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री जैसे महत्वपूर्ण पदों पर पहुंचे। मॉरीशस में कई ऐसे लोग हैं जिनके परिवार वाले पहले मजदूरी किया करते थे मगर अब उनकी देश में एक खास पहचान बन चुकी है।

बहला-फुसलाकर ले गए थे मॉरीशस

दरअसल यूपी और बिहार के लोगों को अंग्रेज बहला-फुसलाकर मॉरीशस ले गए थे। जानकारों का कहना है कि भारतीयों से कहा गया था कि उन्हें काम करने के लिए उत्तर भारत ले जाया जा रहा है मगर अंग्रेज उन्हें लेकर मारीशस पहुंच गए।

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बाद में अंग्रेजों ने मजदूरों को दास बना कर रखा है और उनसे गन्ने की खेती कराई गई। जानकारों के मुताबिक अंग्रेज भारत के करीब चार लाख 62 हजार से अधिक लोगों को बहला कर ले गए थे। इनमें पुरुषों और महिलाओं के साथ बच्चे भी शामिल थे।

यूनेस्को ने घोषित किया विश्व धरोहर

अंग्रेजों ने मजदूरों को जिस जगह पर रखा था, उसे अप्रवासी घाट कहा जाता है। मॉरीशस दुनिया का एकमात्र ऐसा देश है जहां यूनेस्को की ओर से दो स्थानों को विश्व धरोहर घोषित किया गया है। एक स्थान ले मोर्ने के नाम से जाना जाता है जो दास प्रथा के विरोध के लिए समर्पित है और दूसरा वह स्थान जहां अंग्रेजों ने मजदूरों को दास बनाकर रखा था।

शुरुआत में भारतीयों को दास बनाकर रखा

हालांकि अंग्रेजी में शुरुआती दिनों में भारतीयों को दास बना कर रखा है, लेकिन बाद में इसका जोरदार विरोध शुरू हो गया है। विरोध काफी प्रबल हो जाने के कारण 1835 में दास प्रथा को समाप्त किया गया जिसके बाद मजदूरों को कॉन्ट्रैक्ट पर काम करने के लिए रखा गया। 2014 में मॉरीशस में इंडियन अराइवल डे की 180 वीं वर्षगांठ मनाई गई थी।

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मॉरीशस में बसता है लघु भारत

आजादी से पहले यूपी और बिहार से मजदूरी के लिए मॉरीशस ले जाए गए लोगों को गिरमिटिया भी कहते हैं। इन गिरमिटिया लोगों ने मॉरीशस की तस्वीर बदल कर रख दी है। यहां रहने वाले यूपी और बिहार के लोगों ने भारतीय संस्कृति को जीवंत कर रखा है और यहां यूपी और बिहार की तरह अभी भी भोजपुरी बोली जाती है। इसके अलावा यहां रहने वाले भारतीय मूल के लोग अभी भी भारतीय परिधानों को महत्व देते हैं जिसके कारण प्रदेश में भी मिनी भारत का आभास होता है।

भारतीय संस्कारों व परंपराओं को जिंदा रखा

मॉरीशस के गांवों में आज भी भारतीय परिधान साड़ी पहनकर सोहर और कजरी गाती महिलाएं दिख जाती हैं। मॉरीशस के एक प्रसिद्ध लेखक का मानना है कि ये महिलाएं ही हैं जिन्होंने हमारे संस्कारों, परंपराओं, भाषाओं और हमारे भीतर भारत को जिंदा कर रखा है।

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मारीशस में वे सीढ़ियां आज तक सलामत है जिनसे पहली बार मॉरीशस पहुंचे गिरमिटिया लोग इस टापू पर उतरे थे और उन्होंने अपनी अथक मेहनत से इस निर्जन टापू को इतना खूबसूरत बना दिया कि दुनिया के हर कोने से सैलानी आज यहां घूमने आते हैं।

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