क्‍या भगवान श्री राम की कोई बहन भी थी!

क्‍या आप जानते हैं कि प्रभु श्री राम की एक बहन भी थी। कहा जाता है कि वो उम्र भे श्री राम से काफी बड़ी थीं। लेकिन उनका रामचरितमानस में कही उल्‍लेख नहीं है।

Update:2020-04-02 09:17 IST

दुर्गेश पार्थसारथी -

'ठुमक चलत रामचंद्र बाजत पैंजनियां

किलकि किलकि उठत धाय गिरत भूमि लटपटाय

धाय मात गोद लेत दशरथ की रनियां ॥

अंचल रज अंग झारि विविध भांति सो दुलारि ।

तन मन धन वारि वारि कहत मृदु बचनियां ॥

विद्रुम से अरुण अधर बोलत मुख मधुर मधुर ।

सुभग नासिका में चारु लटकत लटकनियां ॥

तुलसीदास अति आनंद देख के मुखारविंद ।

रघुवर छबि के समान रघुवर छबि बनियां ॥'

गोस्‍वामी तुलसी दास जी द्वारा रचित रामचरितमानस की यह चौपाई भगवान श्री राम के बालरूप का वर्णन करने के लिए पर्याप्‍त है। लेकिन क्‍या आप जानते हैं कि प्रभु श्री राम की एक बहन भी थी। कहा जाता है कि वो उम्र भे श्री राम से काफी बड़ी थीं। लेकिन उनका रामचरितमानस में कही उल्‍लेख नहीं है।

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श्री वाल्‍मीकि रामायण में मिलता है उल्‍लेख

विभन्‍न भाषाओं में दुनिया भर में तीन सौ से अधिक रामायण प्रचलित हैं। लेकिन, इन सभी रामायणों में लिखित श्री रामकथा में कोई न कोई भिन्‍नता है। यहीं नहीं मर्यादापुरुषोत्‍तम भगवान श्री राम के बारे में अनगिनत लोककथाएं और किंबदंतियां भी प्रचिलत हैं। उत्‍तर भारत में दो तरह के रामायण प्रचित हैं। पहला आदि कवि महर्षि वाल्‍मीकि द्वारा संस्‍कृत भाषा में रचित 'रामायण' जिसे वाल्‍मीकिरामायण भी कहा जाता है और दूसरा गोस्‍वामी तुलसीदास द्वारा अवधी में रचित 'श्रीरामचरितमानस'।

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इन्‍हीं दो रामायण खास तौर रामचरितमानस के आधार पर ही भगवान श्री राम के चरित्र और श्री राम कथा को जानते-मानते हैं। पर गोस्‍वामी तुलसीदास कृत मानस में भगवान श्रीराम की किसी बहन का कोई जिक्र नहीं है। जबकि श्री विश्‍वनाथ मंदिर शंकराचार्य नगर अमृतसर के आत्‍मप्रकाश शास्‍त्री के मुताबिक आदि कवि भगवान वाल्मीकि कृत रामायण में एक बार महाराजा दशरथ की पुत्री शांता का उल्लेख ज़रूर आया है।

श्रृंगी ऋषि के साथ हुआ था शांता का विवाह

'अङ्ग राजेन सख्यम् च तस्य राज्ञो भविष्यति।

कन्या च अस्य महाभागा शांता नाम भविष्यति।'

उपरोक्‍त श्‍लोक का उदाहरण देते हुए आत्‍मप्रकाश शास्‍त्री कहते हैं - दक्षिण भारत की रामायण और लोक-कथाओं के अनुसार शांता चारों भाइयों (श्री राम, लक्ष्‍मण, भरत और शत्रुघ्‍न) से बहुत बड़ी थीं। वह राजा दशरथ और कौशल्या की जष्‍ठ पुत्री थीं। शांता को दशरथ ने अपने एक निःसंतान मित्र और अंग देश के राजा रोमपाद को दान कर दिया। शास्‍त्री कहते हैं कि रोमपाद की पत्नी वर्षिणी महारानी कौशल्या की बहन थी। शांता के युवा होने पर राजा सोमपाद उनका विवाह श्रृंगी ऋषि के साथ कर दिया था।

महाराजा दशरथ ने नहीं पहचान पुत्री को

आत्‍मप्रकाश शास्‍त्री कहते हैं श्रीराम कथा के अनुसार महाराजा दशरथ को लंबे समय तक जब कोई संतान नहीं हुई तो उन्‍हें और उनकी तीनों रानियों को चिंता सताने लगी। उन्‍होंने अपनी चिंता कुलगुरु वशिष्ठ को बतायाई। कुलगुरु ने सलाह दी कि आप अपने दामाद श्रृंगी ऋषि के नेतृत्‍व में पुत्रेष्ठि यज्ञ करवाएं।

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गुरु की सलाह मानते हुए दशरथ ने यज्ञ में देश के कई महान ऋषियों के साथ-साथ ऋंगी ऋषि को मुख्य ऋत्विक बनने के लिए आमंत्रित किया। लेकिन अपनी पुत्री शांता को आमंत्रित नहीं किया। पत्नी के अपमान से दुखी श्रृंगी ने आमंत्रण अस्वीकार कर दिया। विवशता में महाराजा दशरथ ने शांता को भी बुलावा भेजा। श्रृंगी ऋषि के साथ शांता के अयोध्या पहुंची तो दशरथ ने उन्हें पहचाना नहीं।

आश्चर्यचकित दशरथ ने पूछा - 'देवी, आप कौन हैं ? ' जब शांता ने अपना परिचय दिया तो पुत्री और माता-पिता की स्मृतियां भी जाग उठी और भावनाओं के समंदर में ज्‍वार उमड़ने लगा। यज्ञ के सफल आयोजन के बाद शांता ऋषि श्रृंगी के साथ लौट गई। आत्‍म प्रकाश शात्री कहते हैं कि इस कथा कि बाद शांता का कहीं कोई उल्‍लेख नहीं है।

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