Mahatma Gandhi Birthday: राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का लखनऊ से नाता

दुनिया भर के लोग मोहनदास करमचंद गांधी को महात्मा गांधी के नाम से ही जानते हैं पर बहुत कम लोगो को पता होगा कि महात्मा गांधी को इस नाम से सर्वप्रथम लखनऊ में ही पहचान मिली। इसके पहले लोग उन्हे बैरिस्टर गांधी ही कहा करते थें।

Update: 2020-09-28 11:10 GMT
26 दिसंबर 1916 को चारबाग स्टेशन पर गांधी जी ने नेहरू के साथ ही सभा को संबोधित किया था। मार्च 1936 में जवाहर लाल नेहरू की अध्यक्षता में आयोजित कांग्रेस अधिवेशन में भाग लेने के लिए गांधी दूसरी बार फिर यहां आए थे।

श्रीधर अग्निहोत्री

लखनऊ: दुनिया भर के लोग मोहनदास करमचंद गांधी को महात्मा गांधी के नाम से ही जानते हैं पर बहुत कम लोगो को पता होगा कि महात्मा गांधी को इस नाम से सर्वप्रथम लखनऊ में ही पहचान मिली। इसके पहले लोग उन्हे बैरिस्टर गांधी ही कहा करते थें। यह बात उस समय की है जब कांग्रेस का अधिवेशन लखनऊ में हुआ था। 1916 में हुए इस अधिवेषन की अध्यक्षता कांग्रेस के नेता अंबिका चरण मजूमदार ने की थी।

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गांधी जी का लखनऊ आना जाना होता रहा

महात्मा गांधी का लखनऊ आना कई बार हुआ। यह भी एक संयोग है कि देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू और गांधी जी पहली मुलाकात लखनऊ के चारबाग रेलवे स्टेशन पर हुई थी। वैसे बापू पहली बार लखनऊ कांग्रेस के अधिवेशन में ही आए थे।

26 दिसंबर 1916 को चारबाग स्टेशन पर गांधी जी ने नेहरू के साथ ही सभा को संबोधित किया था। मार्च 1936 में जवाहर लाल नेहरू की अध्यक्षता में आयोजित कांग्रेस अधिवेशन में भाग लेने के लिए गांधी दूसरी बार फिर यहां आए थे।

फोटो-सोशल मीडिया

 

इसी अधिवेशन में कांग्रेस के कई बडे नेताओं की मुलाकात एक दूसरे से हुई थी। फिर इसके बाद गांधी जी का लखनऊ आना जाना होता रहा। इतना ही नहीं वर्ष 1916 से 1939 के बीच कई बार अपने लखनऊ प्रवास के दौरान गांधी जी ने यहां का दौरा किया।

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गिरमिटिया मजदूरों के को लेकर एक प्रस्ताव

स्वतंत्रता आदोलन के लिए लोगों को जागरुक करने के लिए गांधी जी 11 मार्च 1919, 15 अक्टूबर 1920, 26 फरवरी 1921, आठ अगस्त 1921, 17 अक्टूबर 1925, 27 अक्टूबर 1929 को भी लखनऊ आए। गांधी जी जब भी यूपी के दौरे पर आते थें तो लखनऊ जरूर आते थें। इसके बाद यही से अन्य जिलों में प्रवास के लिए जाया करते थे।

महात्मा गांधी कई बार लखनऊ आए और ज्यादातर यात्राओं के दौरान कई-कई दिनों तक यहां प्रवास किया। लखनऊ में कांग्रेस का सम्मेलन, लखनऊ पैक्ट, एक-भाषा एक लिपि सम्मेलन, सत्याग्रह समर्थकों की सभा- ऐसे ही कई महत्वपूर्ण आयोजन रहे जिनमें राष्ट्रपिता की भागीदारी रही।

फोटो-सोशल मीडिया

लखनऊ में सात अगस्त को राजधानी के अमीरुद्दौला पार्क में उनकी ऐतिहासिक जनसभा हिन्दू मुस्लिम एकता की की आज भी एक मिषाल है। कांग्रेस के लखनऊ में हुए अधिवेशन में महात्मा गांधी ने गिरमिटिया मजदूरों के को लेकर एक प्रस्ताव रखा। जिसे सर्वसम्मति से स्वीकारा गया। इसके अलावा कई अन्य महत्वपूर्ण प्रस्तावों को भी महात्मा गांधी की उपस्थिति में पारित किया गया।

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सचिवालय का एक भवन बापू भवन के नाम से

लखनऊ में सचिवालय का एक भवन बापू भवन के नाम से जाना जाता है। बापू भवन, गांधी भवन सहित नगर में विविध स्थलों पर गांधी की प्रतिमा है। महात्मा गांधी मार्ग, गांधी के नाम पर कई पार्क बार-बार उनकी याद दिलाते हैं।

पिछले साल ही यूपी विधानसभा का ऐतहासिक सत्र महात्मा गांधी के इसी लखनऊ से जुडाव के चलते अनवरत 36 घंटे तक चला। महात्मा गांधी की 150 वीं जयन्ती को यादगार बनाने के लिए यूपी सरकार ने विधानसभा की कार्यवाही लगातार 36 घंटे तक चलवाने का काम किया। सुबह 11 बजे से शुरु विधानसभा का विशेष सत्र 36 घंटे लागातार चलता रहा।

ये एक विशेष अवसर था जब पूरे विष्व के लोगों ने उत्तर प्रदेश विधानसभा के 36 घंटे चलने वाले सत्र को देखा। लखनऊ में बापू से जुड़े पत्रों, चित्रों एवं अन्य वस्तुओं का संग्रह गांधी भवन में है। जहां पुस्तकालय, वाचनालय, सभागार है और नियमित आयोजन होते रहते हैं।

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फोटो-सोशल मीडिया

फरंगी महल से गहरा नाता

राजधानी के हुसैनगंज स्थित चुटकी भंडार गल्र्स इण्टर कॉलेज की स्थापना भी महात्मा गांधी के सत्याग्रह आंदोलन से ही प्रभावित होकर बनाए गए। सत्याग्रहियों के लिए घरों में प्रतिदिन चुटकी भर आटा एकत्र करने का एक आंदोलन चलाया गया था। इसी धनराशि के एक हिस्से से विद्यालय की स्थापना कर दी गई।

एक खास बात और कि महात्मा गांधी हिन्दू मुस्लिम एकता का सबसे बड़ा केन्द्र लखनऊ को ही मानते थें। इसलिए देश में जब भी उन्हे हिन्दू मुस्लिम एकता प्रदर्शन करना होता था तो वह लखनऊ ही आया करते थे। राजधानी लखनऊ के फरंगी महल से गहरा नाता था।

यह सिलसिला 1921 में तब शुरू हुआ, जब मोहम्मद अली जौहर का टेलिग्राम मौलाना अब्दुल बारी फरंगी महली को मिला। मौलाना बारी का इंतकाल होने तक बापू तीन बार लखनऊ आए और हर बार फरंगी महल में ही रुके। जब फंड जुटाने की समस्या सामने आई तो उस वक्त मौलाना बारी ने इस्लाम में दी जाने वाली जकात को इस आंदोलन में लगाने का फैसला किया।

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