मनोहर जोशीः पीठासीन अधिकारियों की उत्कृष्ट पंक्ति के अलंबरदार

जब यह प्रस्ताव विचार और मतदान के लिए सभा के समक्ष प्रस्तुत किया गया, तो सभा ने इसे सर्वसम्मति से स्वीकार किया और श्री जोशी सर्वसम्मति से लोक सभा के अध्यक्ष के रूप में निर्वाचित हुए।

Update: 2020-12-02 04:56 GMT
शिव सेना के साथ उनका संबंध चार दशकों पुराना है। मुंबई शहर और इसके लोगों का कल्याण सदैव ही श्री जोशी की स्थाई चिंता का विषय रहा है।

रामकृष्ण वाजपेयी

संसदीय इतिहास में भारत की संसद उन प्रतिष्ठित अध्यक्षों की शृंखला की साक्षी रही है, जिन्होंने हमारी महान संसदीय परम्पराओं को सदैव कायम रखा है और भावी पीढ़ी के लिए एक महान विरासत छोड़ी है। श्री मनोहर जोशी पीठासीन अधिकारियों की इस उत्कृष्ट पंक्ति में शामिल रहे हैं। उन्हें 10 मई, 2002 को लोकसभा अध्यक्ष के गरिमापूर्ण पद के लिए सर्वसम्मति से निर्वाचित किया गया। वे 4 जून, 2004 तक पद पर बने रहे।

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मनोहर जोशी की आज जयंती है। 2 दिसंबर, 1937 को महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले में नान्दवी में जन्मे, श्री जोशी ने मुंबई में शिक्षा पाई। वे विधि में स्नातक हैं और कला में स्नातकोत्तर हैं तथा मराठी, हिन्दी, अंग्रेजी और संस्कृत भाषा में प्रवीण हैं। श्री जोशी का विवाह श्रीमती अनाघा मनोहर जोशी से हुआ है। उनके एक पुत्र और दो पुत्रियां हैं।

राजनैतिक जीवन

श्री जोशी ने अपना पेशा एक अध्यापक के रूप में आरंभ किया और वर्ष 1967 में राजनैतिक क्षेत्र में पदार्पण किया। शिव सेना के साथ उनका संबंध चार दशकों पुराना है। मुंबई शहर और इसके लोगों का कल्याण सदैव ही श्री जोशी की स्थाई चिंता का विषय रहा है। वे वर्ष 1968-70 के दौरान मुंबई के निगम पार्षद रहे और 1970 में स्थाई समिति (नगर निगम) के सभापति रहे।

 

उन्होंने वर्ष 1976-77 के दौरान मुंबई के मेयर पद को सुशोभित किया। वे कुछ समय तक अखिल भारतीय मेयर परिषद् के चेयरमैन भी रहे। मुंबई शहर के साथ उनके घनिष्ठ संबंध और विभिन्न विकासात्मक मुद्दों पर उनकी पकड़ ने उनके राज्य विधानमंडल का सदस्य बनने के पश्चात् आगामी वर्षों में मुंबई के हित का प्रबल रूप से समर्थन करने में उनकी सहायता की।

विधायी और संसदीय जीवन

श्री मनोहर जोशी का विधायी और संसदीय जीवन 1972 में प्रारंभ हुआ, जब वे महाराष्ट्र विधान परिषद के लिए निर्वाचित हुए। विधान परिषद् में तीन बार कार्यकाल पूरा करने के पश्चात्, वर्ष 1990 में श्री जोशी महाराष्ट्र विधान सभा के लिए निर्वाचित हुए। वे वर्ष 1995-99 के दौरान महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रहे। उनकी तीक्ष्ण राजनैतिक दूरदर्शिता, नेतृत्व के गुण और प्रशासनिक क्षमताओं ने उन्हें कुशलता के साथ राज्य का शासन चलाने में समर्थ बनाया।

पूर्व में, वर्ष 1990-91 के दौरान वे राज्य विधान सभा में विपक्ष के नेता भी रहे। श्री जोशी अपने बेबाक और स्पष्टवादी विचारों के लिए प्रसिद्ध हैं और प्रबल रूप से विश्वास करते हैं कि एक संरचनात्मक, उत्तरदायी और स्वस्थ विपक्ष लोकतांत्रिक राज व्यवस्था को मजबूत बनाने में व्यापक रूप से योगदान करता है। वे यह भी विश्वास करते हैं कि लोकतंत्र केवल तभी समृद्ध हो सकता है, जब विपक्ष और सत्ता पक्ष के बीच सहर्ष सहयोग हो। इस दृढ़ धारणा को ध्यान में रखते हुए, उन्होंने देश में एक राष्ट्रीय विपक्ष नेता संघ की शुरूआत की।

वर्ष 1999 के आम चुनावों में श्री जोशी ने मुंबई उत्तर-मध्य लोक सभा संसदीय क्षेत्र से शिव सेना की टिकट पर चुनाव लड़ा और तेरहवीं लोक सभा के लिए निर्वाचित हुए। बाद में, उन्हें केन्द्र सरकार में शामिल किया गया और उन्होंने भारी उद्योग और सार्वजनिक उपक्रम मंत्रालय का महत्वपूर्ण पदभार संभाला। केन्द्रीय मंत्री की बहुत बड़ी जिम्मेदारी निभाने में महाराष्ट्र राज्य में विभिन्न पदों पर उनके कार्य का समृद्ध अनुभव उनके काम आया। केन्द्रीय मंत्री के रूप में अनेक महत्वपूर्ण नीतिगत निर्णय लेकर उन्होंने भारी उद्योग और सार्वजनिक उपक्रम क्षेत्र को सुदृढ़ बनाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

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मनोहर जोशी, अध्यक्ष

एक हेलिकाप्टर दुर्घटना में तत्कालीन लोक सभा अध्यक्ष, जी.एम.सी. बालायोगी की दुखद मृत्यु के पश्चात्, अध्यक्ष का पद कुछ समय तक रिक्त पड़ा रहा और उपाध्यक्ष श्री पी.एम. सईद ने अध्यक्ष के कर्त्तव्यों का निर्वाह किया। 10 मई, 2002 को प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने लोक सभा के नए अध्यक्ष के रूप में श्री मनोहर जोशी के निर्वाचन की मांग करते हुए स्वयं एक प्रस्ताव पेश किया; गृह मंत्री, श्री एल.के. आडवाणी ने इस प्रस्ताव का समर्थन किया। जब यह प्रस्ताव विचार और मतदान के लिए सभा के समक्ष प्रस्तुत किया गया, तो सभा ने इसे सर्वसम्मति से स्वीकार किया और श्री जोशी सर्वसम्मति से लोक सभा के अध्यक्ष के रूप में निर्वाचित हुए।

(लोकसभा अध्यक्ष से साभार)

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