कोरोना वायरस के बारे में अब तक हो चुके हैं ये बड़ खुलासे
कोरोना वायरस महामारी की शुरुआत हुए आधा साल बीत चुका है। पिछले छह महीनों से वैज्ञानिक इस नए वायरस को समझने में लगे हुए हैं और काफी कुछ समझ भी चुके हैं। इस वायरस ने काए नए आयाम भी दिखा दिये हैं।
नई दिल्ली: कोरोना वायरस महामारी की शुरुआत हुए आधा साल बीत चुका है। पिछले छह महीनों से वैज्ञानिक इस नए वायरस को समझने में लगे हुए हैं और काफी कुछ समझ भी चुके हैं। इस वायरस ने काए नए आयाम भी दिखा दिये हैं।
कोरोना की शुरुआत
बातें चाहे जो बताईं जा रहीं हों लेकिन सच्चाई यही है कि आज तक ठीक तरह से इस बात का पता नहीं चल सका है कि इस बीमारी की शुरुआत कहां से हुई। बताया जाता है कि शुरुआत चीन के एक मीट बाजार से हुई लेकिन जानवर से इंसान में संक्रमण का पहला मामला कौन सा था, यह आज भी रहस्य ही बना हुआ है।
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वायरस की शक्ल
इस नए कोरोना वायरस के जेनेटिक ढांचे का पता तो चीनी वैज्ञानिकों ने रिकॉर्ड समय में लगा लिया था। 21 जनवरी को उन्होंने इस जानकारी को वैज्ञानिक जर्नल्स में प्रकाशित किया और तीन दिन बाद विस्तृत जानकारी भी दी। इसी के आधार पर दुनिया भर में वायरस को मारने के लिए टीके बनाने की मुहिम शुरू हुई है।
कैसी होगी वैक्सीन
कोरोना वायरस की सतह पर एस-2 नाम के प्रोटीन होते हैं जो इनसान के शेरी में प्रवेश करने के बाद सेल्स यानी कोशिकाओं से चिपक जाते हैं और संक्रमित व्यक्ति को बीमार करने के लिए जिम्मेदार होते हैं। किसी भी तरह की वैक्सीन हो, उसका काम इस प्रोटीन को निष्क्रिय करना या किसी तरह ब्लॉक करना होगा। फिलवक्त, 6 से 18 महीने के बीच टीका आने की बात कही जा रही है। लेकिन अगर टीका इतनी बन भी जाए तो पूरी आबादी तक उन्हें पहुंचाने में भी वक्त लग जाएगा। फिलहाल अलग अलग देशों में 160 वैक्सीन प्रोजेक्ट पर काम चल रहा है। टीबी की वैक्सीन को बेहतर बना कर इस्तेमाल लायक बनाने की कोशिश भी चल रही है। भारत के सीरम इंस्टीइट्यूट ने प्रोडक्शन की तैयारी कर ली है। इंतजार है तो सही फॉर्मूला मिल जाने का। जून 2020 के अंत तक पांच टीकों का ह्यूमन ट्रायल हो चुका है। इंसानों पर टेस्ट का मकसद होता है यह पता करना कि इस तरह के टीके का इंसानों पर कोई बुरा असर तो नहीं होगा। हालांकि यह असर दिखने में भी काफी लंबा समय लग सकता है।
दवाई की स्थिति
अब तक कोरोना वायरस से निपटने का कोई सटीक इलाज नहीं मिला है। पहले मलेरिया की दवा काफी चर्चा में रही फिर अब रेमदेसिविर का नाम लिया जा रहा है। बहरहाल, डॉक्टर कुछ दवाओं का इस्तेमाल जरूर कर रहे हैं लेकिन ये सभी दवाएं लक्षणों पर असर करती हैं।
हर्ड इम्यूनिटी
जब आबादी के एक बड़े हिस्से को किसी बीमारी से इम्यूनिटी मिल जाती है तो उसके फैलने का खतरा बहुत कम हो जाता है। जून के अंत तक दुनिया के एक करोड़ लोग कोरोना से संक्रमित हो चुके थे लेकिन 7.8 अरब की आबादी में एक करोड़ हर्ड इम्यूनिटी बनाने के लिए काफी नहीं है।
हवा में जहर
बीमारी की शुरुआत में कहा गया था कि संक्रमित व्यक्ति के सीधे संपर्क में आने से या फिर संक्रमित सतह को छूने से ही यह वायरस फैलता है। लेकिन ताजा जानकारी से पता चला है कि फ्लू के वायरस की तरह कोरोना वायरस भी हवा से फैल सकता है। खास कर जहां एसी का इस्तेमाल हो रहा हो वहाँ ये ज्यादा अच्छी तरह हवा में फैलता है। किसी बंद जगह में बड़ी संख्या में लोगों की मौजूदगी से वायरस खतरनाक रूप से फैल सकता है। इसीलिए हर देश ने लॉकडाउन का सहारा लिया और आज भी ज्यादातर देशों में सिनेमा हॉल, जिम, स्विमिंग पूल और बड़े इवेंट बंद हैं।
बचने का तरीका
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने पहले तो कहा कि मास्क पहनना जरूरी नहीं है। लेकिन सभी देशों ने डब्लूएचओ की राय के खिलाफ जा कर सार्वजनिक जगहों पर मास्क पहनना अनिवार्य किया। लेकिन दुर्भाग्य से ज़्यादातर लोग मास्क का सही इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं। दो जरूरी बातें जो शुरू से कही जा रही हैं वे हैं - साबुन से अच्छी तरह हाथ धोना और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन। लेकिन लॉकडाउन खुलने के बाद से सोशल डिस्टेंसिंग को ले कर संजीदगी भी कम हुई है लोग लॉकडाउन खुलने को वायरस का खात्मा समझ रहे हैं। ये बहुत बड़ी मूर्खता है।
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ज्यादा खतरा
रिसर्च में पता चला है कि महिलाओं की तुलना में पुरुषों को कोरोना का खतरा ज्यादा है। ए ब्लड ग्रुप के लोगों पर इस वायरस का ज्यादा असर होता है। पहले से बीमार लोगों का शरीर वायरस का ठीक से सामना नहीं कर पाता। सांस के रोगी, मधुमेह, कैंसर और हृदय रोगियों को ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है।
इम्यूनिटी का सहारा
सभी शोध बताते हैं कि अगर आपका इम्यून सिस्टम मजबूत है तो आप वायरस के असर से बच सकते हैं। इम्यूनिती बढ़ाने के लिकये व्यायाम, खानपान और स्ट्रेस फ्री जीवन जरूरी है। कोरोना संक्रमण के बाद स्वस्थ हो जाने वाले व्यक्ति के खून में वायरस से लड़ने वाली एंटीबॉडी बनी रहती हैं। कुछ देशों में इन एंटीबॉडी का इस्तेमाल मरीजों को ठीक करने के लिए किया जा रहा है लेकिन कोरोना काल में लोग खून डोनेट करने से भी डर रहे हैं।
आईसीयू का हाल
यूरोप में जब यह वायरस फैला तो डॉक्टर जल्द से जल्द मरीजों पर वेंटिलेटर इस्तेमाल करने लगे लेकिन अब बताया जा रहा है कि वेंटिलेटर का इस्तेमाल नुकसान ही ज्यादा पहुंचा रहा है। ऐसे में अब आईसीयू केवल ऑक्सीजन लगाने पर जोर दे रहे हैं। अब मरीज के आईसीयू से निकलने के बाद बाकी के अंगों की भी जांच की जा रही है क्योंकि कई मामलों में इस वायरस को अंगों के नाकाम होने के लिए जिम्मेदार पाया गया है।