मौत का जहाज: जिसने एक तिहाई आबादी का किया था खात्मा, ऐसे लौटी महामारी

अक्टूबर 1347 की बात है, जब 12 जहाज इटली के सिसली बंदगाह पर लगे और फिर शुरुआत हुई इस घातक बीमारी की। जब जहाज आए तो उन पर गए लोगों के परिवार किनारे खड़े होकर उनका इंतजार कर रहे थे।

Update:2020-04-20 13:22 IST
मौत का जहाज: जिसने एक तिहाई आबादी का किया था खात्मा, ऐसे लौटी महामारी

नई दिल्ली: चीन से फैले कोरोना वायरस ने पूरी दुनिया को अपनी चपेट में ले लिया है। इस वायरस से अब तक दुनिया भर में 24 लाख से ज्यादा लोग संक्रमित हो चुके हैं। वहीं डेढ़ लाख से ज्यादा लोगों की मौत हो गई है। कोरोना वायरस के इलाज के लिए सभी वैक्सीन की खोज में लगे हुए हैं। इसके साथ ही लोगों इसके बचाव के उपायों के बारे में भी बताया जा रहा है। लेकिन करीब सैकड़ों साल पहले एक महामारी बहुत बुरे तरीके से फैली थी, लेकिन उस वक्त इस महामारी से बचाव और रोकथाम के तरीके को एक-दूसरे तक पहुंचाने का कोई साधन भी नहीं मौजूद था। ये महामारी इतनी घातक थी कि उसे ब्लैक डेथ के नाम से जाना जाने लगा।

अक्टूबर 1347 से शुरुआत हुई इस घातक बीमारी की

अक्टूबर 1347 की बात है, जब 12 जहाज इटली के सिसली बंदगाह पर लगे और फिर शुरुआत हुई इस घातक बीमारी की। जब जहाज आए तो उन पर गए लोगों के परिवार किनारे खड़े होकर उनका इंतजार कर रहे थे। जब जहाज तट पर काफी देर तक लगी रही और उसमें से कोई भी व्यक्ति बाहर नहीं आया तो किनारे खड़े लोग ऊपर पहुंचे। जहाज का दृश्य देख लोगों चीखने-चिल्लाने लगे। दरअसल, जहाज पर लाशों का ढेर लगा हुआ था। केवल कुछ ही लोग उसमें जिंदा बचे थे, उन्हें उठाकर लाया गया और उनके ठीक होने का इंतजार किया जाने लगा।

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धीरे-धीरे सभी लोग होने लगे थे इस बीमारी के शिकार

जो लोग जिंदा बचे थे उनकी भी हालात काफी नाजुक थी, उनके शरीर पर गिल्टियां हो गई थीं, जिनमें से पस और खून बह रहा था। वो लोग ठीक नहीं हुए लेकिन उनकी देखभाल कर रहे लोग बीमारी होने लगे। इटली आए उन 12 जहाजों के कारण अगले 5 सालों में यूरोप की में करीब 20 मिलियन लोगों की मौत हो गई थी। मौतों का आंकड़ा एक दम सटीक तो नहीं बताया जा सका लेकिन ऐसा कहा जाता है कि इस बीमारी के चलते यूरोप की करीब एक तिहाई आबादी खत्म हो गई थी। बाद उन जहाजों को डेथ शिप कहा जाने लगा।

चीन से हुई थी प्लेग की शुरुआत

दरअसल, इस बीमारी (प्लेग) की शुरुआत चीन से ही हुई थी। इतिहासकारों का मानना है कि करीब 2 हजार साल पहले चीन के चलते दूसरे देशों में प्लेग का एक खास प्रकार पहुंचा। ये बीमारी अक्सर व्यापार के लिए आने-जाने वाले जहाजों से ही फैलता था। साल 1340 के बाद चीन में दोबारा प्लेग नामक बीमारी ने दस्तक दी थी, लेकिन इस बार ये बहुत ही तेजी से के साथ दूसरे महाद्वीपों तक पहुंच गया। साल 1346 में यूरोप के 12 जहाज चीन की सीमा पर जाकर लगे थे, तब चीन में प्लेग चल रहा था।

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चूहों से जहाज पर मौजूद सभी लोगों को हुआ संक्रमण

दरअसल, प्लेग से जो चूहे संक्रमित हुए, वो जहाज पहुंच गए और लगभग 4 हफ्तों के सफर में चूहों से जहाज पर मौजूद सभी आदमी इस बीमारी से ग्रसित हो गए। इस जहाज पर व्यापारी से लेकर, नाविक और दूसरे कर्मचारी भी मौजूद थे। बहुत जल्द ही जहाज पर मौजूद सभी लोग बीमार होते चल गए और जहाज पर लाशों के ढेर लग गए। जब ये जहाज इटली पहुंचे तो यह बीमारी जहाज के द्वारा दूसरे लोगों तक भी पहुंच गई। लगभग 8 महीनों के अंदर ही ये बीमारी इटली, स्पेन, अफ्रीका, ऑस्ट्रिया, हंगरी, स्विट्‌जरलैंड, जर्मनी, इंग्लैंड, फ्रांस, स्कैन्डिनेविया और बॉल्टिक पहुंच गई।

क्या थे इस बीमारी के लक्षण

हालांकि इस बारे में कोई ठोस सबूत तो नहीं है लेकिन बाद में इटके के एक लेखक Giovanni Boccaccio ने लिखा था कि यूरोप में 2 तरह के प्लेग पाए गए ते। पहला था न्यूमौनिक, इस बीमारी में तेज बुखार और खून की उल्टी होती और करीब 3 दिन के अंदर ही मरीज की मौत हो जाती थी। दूसरा था, ब्यूबौनिक प्लेग, इसमें मरीज की जांघों और बगलों में गिल्टियां हो जातीं, तेज बुखाने आने के साथ उनमें मवाद भर जाता और कुछ ही दिनों में पीड़ित व्यक्ति की मौत हो जाती, इसे ही ब्लैक डेथ का नाम दिया गया था। ये बीमारी इतनी तेजी से फैली कि स्वस्थ लोगों की भी रातोंरात मौत होने लगी।

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इस तरीके से किया जाता था प्लेग का इलाज

उस वक्त प्लेग का इलाज अजीबोगरीब तरीके से किया जाता था, जैसे गिल्टियों पर उबलता पानी डाल दिया जाता था या फिर उस हिस्से को गर्म सलाख से दागा जाता था। इसमें ज्यादातर मरीजों की इलाज के दौरान ही मौत हो जाती थी। बीमारी को यूरोप के लोग ईश्वर की नाराजगी का नाम देने लगे। जिसके चलते वहां के लोगों ने अजीब प्रथा शुरु कर दी। ईश्वर की नाराजगी को दूर करने और उससे बचने के लिए लोग खुद को कोड़े मारने लगे, उन्हें Flagellants कहा जाता था। ये लोग 33 दिनों तक दिन में रोज 3 बार खुद को कोड़े मारते थे। धीरे-धीरे ये प्रथा लोकप्रिय होती चली गयी, लेकिन लोगों को तब भी प्लेग से छुटकारा नहीं मिला।

ऐसे हुई क्वारनटीन की शुरुआत

इस बीमारी से लगभग 5 सालों तक यूरोप के लोग ग्रसित होते रहे। फिर एक तरीका खोजा गया, वो था आइसोलेशन का। लोगों ने चीन या एशिया से व्यापार करत लौटे जहाजों को आइसोलेट करना शुरु कर दिया। ताकि ये पता लग सके कि ये लोग संक्रमित हैं या नहीं। पहले आइसोलेशन पीरियड 30 दिन का होता था, जिसे trentino कहा जाता था। इस टर्म को ही कोरोना वायरस के वक्त में क्वारनटीन कहा जाता है। फिलहाल अब प्लेग का कहर लगभग खत्म हो चुका है। लेकिन वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन (WHO) के मुताबिक, इस बीमारी से हर साल 3 हजार से ज्यादा लोग संक्रमित होते हैं।

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