अनोखी है ये रामायण: 'ऊं' से नहीं बल्कि 'बिस्मिल्लाह' से करते हैं इसकी शुरूआत

भारत हमेशा से ही अपने गंगा-जमुनी तहजीब के लिए जाना जाता है। भारत में अलग-अलग धर्म, जाति और समुदाय के लोग रहते हैं और अपनी एकता और सौहार्द की वजह से पूरे दुनिया भर में मिसाल हैं।

Update:2020-03-02 15:17 IST

लखनऊ: भारत हमेशा से ही अपने गंगा-जमुनी तहजीब के लिए जाना जाता है। भारत में अलग-अलग धर्म, जाति और समुदाय के लोग रहते हैं और अपनी एकता और सौहार्द की वजह से पूरे दुनिया भर में मिसाल हैं। आज हम आपको एक एक ऐसे रामायण के बारे में बताने जा रहे हैं, जो भारत के गंगा-जमुनी तहजीब की मिसाल है। ये वाल्मीकि रामायण पारसी भाषा में अनुवाद की गई है, जो कि अब भी उत्तर प्रदेश के रामपुर जिले की रजा लाइब्रेरी में रखी हुई है। इस रामायण को संस्कृत भाषा से पारसी भाषा में अनुवाद किया गया है।

 

'बिस्मिल्लाह-अर्रहमान-अर्रहीम' से होती है शुरूआत

पारसी भाषा के इस रामायण को जो सबसे बड़ी खासियत है, वो ये है कि ये 'ऊं' से शुरु होने के बजाय 'बिस्मिल्लाह-अर्रहमान-अर्रहीम' से शुरू होती है। इसका मतलब होता है, अल्लाह के नाम से शुरू करता हूं, जो बेहद रहम वाले हैं। मैं उस वहदूद लाशरीक (अद्वितीय ईश्वर) के कृपा के बाद यह रामायण लिख रहा हूं।

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रजा लाइब्रेरी में मौजूद है पारसी रामायण

यह रामायण आज भी रामपुर की रजा लाइब्रेरी में मौजूद है और सुमेर चंद ने सन् 1713 में इस रामायण का संस्कृत से फारसी में अनुवाद किया था। सुमेर चंद ने यह पारसी वाल्मीकि रामायण मुगल शासक फर्रुखसियर के शासनकाल में लिखी थी।

खालिस सोने और कीमती पत्थरों से सजा है हर एक पन्ना

पारसी में लिखे गए इस वाल्मीकि रामायण का हर पन्ना खालिस सोने और कीमती पत्थरों से सजा है। इस पारसी रामायण में प्रसंगों के मुताबिक, मुगल शैली में कुल 258 चित्र बनाए गए हैं। इस रामायण की तस्वीरों में बनाए गए राम, सीता और रावण बिल्कुल अलग दिखते हैं। पारसी रामायण में रावण के 10 सिर के अलावा उसका 11वां सिर भी दिखाया गया है, जो गधे का है और वो सबसे ऊपर दिखाया गया है। इसके अलावा चित्रों में जिस तरह से पात्रों के आभूषणों, कला, वास्तुकला, वेशभूषा हैं, वो मध्ययुगीन काल में भारत की संस्कृति को झलकाते हैं।

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रामायण में झलकती है मुगल शैली

पारसी के इस रामायण की शुरुआत में लिखा है 4 हजार रूपये में आप इस किताब को खरीद सकते हैं। वहीं इसमें रामायण की शुरूआत बिस्मिल्लाह से होती है। इस रामायण में सीता, राम-लक्ष्मण मुगल शैली के राजसी वस्त्रों में दिखाए गए हैं। पात्रों के सिर की टोपी भी मुगल शैली को दर्शाते हैं। इस रामायण में कुछ पात्रों के हाथों में धनुष की जगह तलवारों को दिखाया गया है। इस रामायण में मुगल शैली साफ-तौर पर झलकती है।

पारसी रामायण का हिंदी में भी किया गया अनुवाद

रजा लाइब्रेरी के लाइब्रेरियन अबु साद इस्लातही बताते हैं कि इस पारसी रामायण का बाद में हिंदी में भी अनुवाद किया गया, जिसे प्रो. शाह अब्दुस्सलाम और डॉ. वकारुल हसल सिद्दीकी ने किया है। हिंदी में अनुवाद की गई रामायण भी रजा लाइब्रेरी में मौजूद है।

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