Raksha Bandhan 2020: कहीं भंग न कर दे कोरोना भाई-बहन का ये त्यौहार
कोरोना काल के चलते भले ही त्योहार की रौनक कम हो गई हो लेकिन लोगों के मन में त्योहार का उत्साह कम नहीं हुआ है।बहेने अपने अपने भाइयों के लिए राखियां खरीद रही है और दूर बैठे भाई भी अपनी बहेनों को प्यार भरा उपहार भेज रहे है।
' रक्षाबंधन ' इसके नाम में ही इसका अर्थ छुपा हुआ है यानी रक्षा करना।वैसे तो आप सभी जानते है कि रक्षाबंधन का त्योहार हर साल श्रावण पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है।रक्षा-बंधन का यह त्यौहार भाई-बहन के प्रेम और कर्तव्य के सम्बन्ध को समर्पित है। रक्षाबंधन अर्थात् संरक्षण का एक अनूठा रिश्ता, जिसमें बहनें अपने भाइयों को राखी का धागा बाँधती है, लेकिन मित्रता की भावना से भी यह धागा बाँधा जाता है, जिसे हम दोस्ती का धागा भी कहते हैं। भाई बहिन के स्नेह का प्रतीक रक्षाबंधन के त्योहार को अब एक दिन शेष है।
कोरोना काल के चलते भले ही त्योहार की रौनक कम हो गई हो लेकिन लोगों के मन में त्योहार का उत्साह कम नहीं हुआ है।बहेने अपने अपने भाइयों के लिए राखियां खरीद रही है और दूर बैठे भाई भी अपनी बहेनों को प्यार भरा उपहार भेज रहे है।
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रक्षा बंधन मनाने की परंपरागत विधि
इस पर्व पर बहनें सुबह स्नान करके पूजा की थाल सजाती हैं, पूजा की थाल में कुमकुम, राखी, रोली, अक्षत, दीपक तथा मिठाई रखी जाती है। उसके बाद घर के पूर्व दिशा में भाई को बैठा कर उसकी आरती उतारी जाती है, सिर पर अक्षत डाला जाता है, माथे पर कुमकुम का तिलक किया जाता है फिर कलाई पर राखी बांधी जाती है। अंत में मीठा खिलाया जाता है। भाई के छोटे होने पर बहनें भाई को उपहार देती हैं और तो और भाई बहनों को उपहार देते हैं।
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रक्षा बंधन का महत्व
यह पर्व भाई-बहन को और समीप ले आता है तथा जिनसे हमारा कोई संबंध नहीं हम उन्हें भी इस पर्व के माध्यम से भाई-बहन बना सकते हैं। राखी के पर्व का महत्व, इतिहास के इस कहानी से लगाया जा सकता है।
चित्तौड़गढ़ की रानी कर्णावती ने जब देखा की उनकी सैनिक बहादुर शाह के सैन्य बल के आगे नहीं टिक पाएगी। ऐसे में रानी कर्णावती ने बहादुर शाह से मेवाड़ की रक्षा हेतु हुमायूँ को राखी भेजा। सम्राट हुमायूँ अन्य धर्म से संबंध रखने के बावजूद राखी के महत्व के वजह से बहादुर शाँह से युद्ध कर रानी कर्णावती को युद्ध में विजय दिलवाया।
यह है शुभ मुहुर्त
तीन अगस्त को रक्षाबंधन पर्व पर सुबह नौ बजकर 28 मिनट तक भ्रदा है, ऐसे में यह काल राखी बांधने के लिए शुभ नहीं माना जाता। पंडित भरतराम तिवारी के अनुसार, भद्रा खत्म होने के बाद सुबह नौ बजकर 29 मिनट से दोपहर 12 बजकर 30 मिनट तक विशेष शूभ मुहूर्त है। इसके बाद दोपहर दो बजे से शाम छह बजे तक भी शूभमुहूर्त के अनुसार राखी पहनाई जा सकती है।
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