लाकडाउन में नहीं मिल रहा सेनेटरी पैड्स, ऐसा करने के लिए मजबूर महिलाएं
माहवारी 9 से 13 वर्ष की लड़कियों के शरीर में होने वाली एक सामान्य हॉर्मोनियल प्रक्रिया है। इसके फलस्वरूप शरीर में महत्वपूर्ण परिवर्तन होते हैं।
गोंडा: भारत में 33 करोड़ से अधिक महिलाएं माहवारी से होती हैं। जिसमें से 36 प्रतिशत यानि लगभग 12 करोड़ से अधिक सैनेटरी पैड का इस्तेमाल करती हैं। हर महिला व किशोरी के लिए खाने-पीने के साथ नैपकिन भी जरूरी है। कोरोना काल में जहां पूरा देश लॉकडाउन में बाजार में सैनेट्री नैपकिन की उपलब्धता चुनौती बनी हुई है। लॉकडाउन के कारण सेनेटरी पैड की अनुपलब्धता ने इन रजस्वला महिलाओं, बालिकाओं को पेरशानियों का सामना करना पड़ा। ऐसे में महिलाओं एवं लड़कियों को डिस्पोजेबल पैड की जगह कपड़े के पैड इस्तेमाल करने पर बाध्य किया है।
लॉकडाउन के चलते पैड की उपलब्धता में आई बाधा
माहवारी 9 से 13 वर्ष की लड़कियों के शरीर में होने वाली एक सामान्य हॉर्मोनियल प्रक्रिया है। इसके फलस्वरूप शरीर में महत्वपूर्ण परिवर्तन होते हैं। यह प्राकृतिक प्रक्रिया सभी लड़कियों में किशोरावस्था के अंतिम चरण से शुरू होकर (रजस्वला) उनके संपूर्ण प्रजनन काल (रजोनिवृत्ति पूर्व) तक जारी रहती है। आज भी बहुत सी किशोरियां मासिक धर्म के कारण स्कूल नहीं जाती हैं। महिलाओं को आज भी इस मुद्दे पर बात करने में झिझक होती है। लोगों को लगता है कि मासिक धर्म अपराध है। समाज में फैली मासिक धर्म संबंधी गलत भ्रांतियों को दूर करने के साथ साथ महिलाओं और किशोरियों को माहवारी के बारे में सही जानकारी देने के लिए 28 मई को विश्व माहवारी स्वच्छता दिवस के रूप में मनाया जाता है। 28 मई की तारीख निर्धारित करने के पीछे उद्देश्य है कि मई वर्ष का पांचवां महीना होता है। यह सामान्यतः प्रत्येक 28 दिनों के पश्चात होने वाले स्त्री के पांच दिनों के मासिक चक्र का परिचायक है। कई राज्यों एवं जिलों में सरकार द्वारा स्कूलों में सेनेटरी पैड का वितरण किया जाता है।
ये भी पढ़ें- श्रमिकों के लिए नया कानून: बदल देगा मजदूरों की परिभाषा, मिलेंगी ये सुविधाएं
लेकिन लॉकडाउन के कारण स्कूलों के बंद होने से बहुत-सी लड़कियों एवं उनके परिवार के अन्य सदस्यों को सेनेटरी पैड उपलब्ध नहीं हो पा रहे हैं। लॉकडाउन के कारण सेनेटरी पैड का निर्माण भी बाधित हुआ है। जिससे ग्रामीण स्तर के रिटेल पाइंट्स पर पैड की उपलब्धता भी बेहद प्रभावित हुयी है। गांव के जो लोग जिला स्तर से सेनेटरी पैड की खरीदारी कर सकते थे, वह भी लॉकडाउन के कारण यातायात साधन उपलब्ध नहीं होने से वहां तक आसानी से पहुंच नहीं पा रहे हैं। सेनेटरी पैड की आसान उपलब्धता में होल सेलर्स को भी दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है, निरंतर दो महीने तक देशव्यापी लाकडाउन के कारण सेनेटरी पैड का होलसेल वितरण काफी प्रभावित हुआ है। यद्यपि धीरे-धीरे इसे पुनः नियमित करने का प्रयास किया जा रहा है। अभी सेनेटरी पैड के सीमित उत्पादन की संभावना बनी रहेगी। क्योंकि फैक्ट्री के अंदर मजदूरों को सामाजिक दूरी का ख्याल रखना होगा। इसके साथ ही जिन फैक्ट्रियों में प्रवासी मजदूरों की संख्या अधिक थी, वहां मजदूरों की कमी की समस्या बढ़ सकती है।
एमएचआई ने किया खुलासा
यह खुलासा वाटर ऐड इंडिया एंड डेवलपमेंट सौलूशन द्वारा समर्थित मेंसटूअल हेल्थ अलायन्स इंडिया (एमएचएआई) द्वारा माहवारी स्वच्छता जागरूकता एवं उत्पाद से जुड़े संस्थानों से इस वर्ष के अप्रैल माह में किए गए सर्वेक्षण में हुआ है। एमएचएआई भारत में मासिक धर्म स्वास्थ्य और स्वच्छता पर काम करने वाले गैर सरकारी संगठनों, शोधकर्ताओं, निर्माताओं और चिकित्सकों का एक नेटवर्क है। सर्वेक्षण में महामारी के दौरान सेनेटरी पैड का निर्माण, पैड का समुदाय में वितरण, सप्लाई चेन में चुनौतियां, सेनेटरी पैड की समुदाय में पहुंच एवं जागरूकता संदेश जैसे विषयों पर राय ली गयी। माहवारी स्वच्छता जागरूकता एवं उत्पाद को लेकर एमएचएआई द्वारा कराये गए सर्वे में देश एवं विदेश के 67 संस्थानों ने हिस्सा लिया। कोविड-19 के पहले माहवारी स्वच्छता जागरूकता एवं उत्पाद से जुड़े 89 फीसदी संस्थान सामुदायिक आधारित नेटवर्क एवं संस्थान के माध्यम से समुदाय तक पहुंच रहे थे,
ये भी पढ़ें- श्रमिकों के लिए नया कानून: बदल देगा मजदूरों की परिभाषा, मिलेंगी ये सुविधाएं
61 फीसदी संस्थान स्कूलों के माध्यम से सेनेटरी पैड वितरित कर रहे थे, 28 प्रतिशत संस्थान घर-घर जाकर पैड का वितरण कर रहे थे, 26 प्रतिशत संस्थान आनलाइन एवं 22 प्रतिशत संस्थान दवा दुकानों एवं अन्य रिटेल शाप के माध्यम से सेनेटरी पैड वितरण कार्य में लगे थे, लेकिन महामारी के बाद 67 प्रतिशत संस्थानों ने अपनी सामान्य कार्रवाई को रोक दी है। कई छोटे एवं मध्य स्तरीय निर्माता सेनेटरी पैड निर्माण करने में असमर्थ हुए हैं जिसमें 25 प्रतिशत संस्थान ही निर्माण कार्य पूरी तरह जारी किए हुए हैं तथा 50 प्रतिशत संस्थान आंशिक रूप से ही निर्माण कार्य कर पा रहे हैं।
देश में 62 प्रतिशत युवतियां करतीं कपड़े का इस्तेमाल
केमिस्ट एण्ड ड्रगिस्ट कल्याण एसोसिएशन के अध्यक्ष राकेश सिंह के अनुसार, दूसरे देशों से आयात रोके जाने से कई सामग्रियों के लिए इससे चुनौती बढ़ी हैं। विशेषकर माहवारी कप्स के आयात में काफी मुश्किलें आयी हैं। भारत और अफ्रीका के कई मार्केटर्स यूरोप में बने कप्स को ही खरीदते हैं। ताकि आइएसओ की गुणवत्ता सुनिश्चित की जा सके। अब इनके आयात में समस्या आ रही है। डिस्पोजेबल सेनेटरी पैड के लिए जरूरी रा मेटेरियल वुड पल्प होता है। जिसकी उपलब्धता भी लाकडाउन के कारण बेहद प्रभावित हुयी है। लॉकडाउन के कारण आनलाइन बिक्री और कूरियर सेवाएं चालू नहीं थीं। इससे नियमित मांग और राहत प्रयासों दोनों को विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों के बीच उत्पाद मांग की सेवा के लिए चुनौतियों का सामना करना पड़ा। मासिक धर्म में जिन सैनिटरी पैड्स का इस्तेमाल स्वच्छता और सुरक्षा के लिए किया जाता है, वह पूरी तरह से सुरक्षित हो और उससे महिलाओं की सेहत पर बुरा असर भी न पड़े, इसके लिए सरकार ने मानक तय कर रखे हैं।
ये भी पढ़ें- मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने किया सिविल हॉस्पिटल का निरीक्षण
इंडियन ब्यूरो आफ़ स्टैंडर्ड्स ने सैनेटरी पैड के लिए यह मानक मूल रूप से सन 1969 में प्रकाशित किया था। जिसे फिर 1980 में संशोधित किया गया। समय-समय पर इसमें बदलाव भी किए जाते रहे हैं। सैनिटरी नैपकिन या सैनिटरी पैड मासिक धर्म के दौरान रक्त को सोखने के लिए उपयोग किया जाता है। मासिक स्राव के मद्देनजर तय किए गए मानक के मुताबिक पैड्स एक उचित मोटाई, लंबाई और अवशोषण क्षमता वाले होने चाहिए। अमूमन जब सैनिटरी पैड खरीदते हैं, तो ब्रांड वैल्यू पर विश्वास करते हुए पै़ड्स ख़रीद लेते हैं। जबकि सैनिटरी पैड की अच्छी गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए, भारतीय मानक ब्यूरो द्वारा सख्त विनिर्देश तैयार किए गए हैं। आईएस 5405 में मानदंडों और नियमों का विस्तृत विवरण है, जिसका सैनिटरी पैड निर्माताओ कों पालन करना होता है।
ये भी पढ़ें- आज राज्यों से बात करेंगे कैबिनेट सचिव, लॉकडाउन-5 के स्वरूप पर होगी चर्चा
चौथे राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के अनुसार उत्तर प्रदेश में 15-24 वर्ष की आयु वाली 81 प्रतिशत युवतियां माहवारी के दिनों में कपड़े का ही इस्तेमाल करती हैं। वहीं राष्ट्रीय स्तर पर यह आंकड़ा 62 प्रतिशत के आसपास है। भारत में सिर्फ 42 प्रतिशत युवतियां ही पीरियड्स के दौरान सैनिटरी पैड्स इस्तेमाल करती हैं। जिला महिला अस्पताल की स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ डा. सुवर्णा श्रीवास्तव का कहना है कि रेगुलर सेनेटरी पैड के विकल्प के रुप में कपड़े से बने पैड को भी समान रूप से प्रचारित किया जा सकता है, जैसे कपड़ों से बने पैड को 4-6 घंटे तक इस्तेमाल किया जाए। पैड बदलने से पूर्व एवं बाद में हाथों की सफाई की जाए, साफ़ सूती कपड़े से बने पैड ही इस्तेमाल में लाये जाएं और पैड को अच्छी तरह धोने के बाद धूप में सुखाया जाए ताकि किसी भी तरह के संक्रमण के प्रसार का खतरा कम हो सके।
तेज प्रताप सिंह