सिंधिया को तोड़कर बुरा फंसे शिवराज, मध्यप्रदेश की राजनीति में आया भूचाल
मध्य प्रदेश इस समय राजनीति का अखाड़ा बना हुआ है। पूरे देश की निगाहें यहां की राजनीतिक हलचल पर हैं। हर एक शख्स की निगाह कमलनाथ, ज्योतिरादित्य व शिवराज पर लगी है। इन सारे कयासों के बीच सत्ता के करीब पहुंच कर भी शिवराज सिंह चौहान बेचैन हैं और उनकी बेचैनी की वजह कोई और नहीं खुद ज्योतिरादित्य सिंधिया हैं।
रामकृष्ण वाजपेयी
मध्य प्रदेश इस समय राजनीति का अखाड़ा बना हुआ है। पूरे देश की निगाहें यहां की राजनीतिक हलचल पर हैं। हर एक शख्स की निगाह कमलनाथ, ज्योतिरादित्य व शिवराज पर लगी है। इन सारे कयासों के बीच सत्ता के करीब पहुंच कर भी शिवराज सिंह चौहान बेचैन हैं और उनकी बेचैनी की वजह कोई और नहीं खुद ज्योतिरादित्य सिंधिया हैं।
मध्य प्रदेश की राजनीति में सिंधिया के ग्वालियर घराने के राजनीतिक दुश्मनों की बात करें तो पहले नंबर राजा दिग्विजय सिंह का नाम लिया जाता है। जिनके राजघराने की सिंधिया घराने से अदावत दो सौ साल से भी अधिक पुरानी है। यही वजह है कि एक ही पार्टी में रहने के बावजूद दिग्विजय सिंह ने माधवराव सिंधिया को मध्यप्रदेश की राजनीति में केंद्रीय भूमिका में आने से रोके रखा।
राजमाता विजयाराजे सिंधिया पहले जनसंघ और फिर भाजपा में रहने के बावजूद मध्यप्रदेश की राजनीति में दिग्विजय सिंह की भूमिका में नहीं आ सकीं। और अब उनके पौत्र और माधवराव सिंधिया के पुत्र ज्योतिरादित्य की मध्यप्रदेश की राजनीति में पैठ को सफलतापूर्वक काटकर एक बार फिर दिग्विजय सिंह ने अपनी प्रासंगिकता सिद्ध कर दी है।
खानदानी लड़ाई में पराजित युवा नेतृत्व
कहा जा सकता है कि कांग्रेस के इन दो दिग्गजों की वर्चस्व की लड़ाई में बुजुर्ग नेतृत्व से पराजित होकर युवा नेतृत्व भाजपा यानी धुर विरोधी की शरण में चला गया है। लेकिन बात यहीं खत्म नहीं हो रही है क्योंकि ज्योतिरादित्य सिंधिया की अभी अग्निपरीक्षा होनी बाकी है।
अगर मध्य प्रदेश की राजनीति में भाजपा के शीर्ष नेतृत्व में शुमार शिवराज सिंह चौहान के जुमले ‘विभीषण’ को सच मान लें तो इसमें ज्योतिरादित्य की भावना भी झलकती है। वह कहीं न कहीं अंतरमन से ज्योतिरादित्य को अपने लिए खतरा मान रहे हैं। इसलिए वह कभी नहीं चाहेंगे कि ज्योतिरादित्य का भाजपा की राजनीति में कद बढ़े।
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यहां एक बात जान लेना जरूरी है कि जिस समय प्रधानमंत्री पद के लिए योग्य उम्मीदवार की तलाश चल रही थी उस समय भाजपा के शीर्ष नेतृत्व लालकृष्ण आडवाणी की पसंद में शिवराज सिंह चौहान शामिल थे। शिवराज सिंह चौहान भी अपनी महत्वाकांक्षा के चलते उस दौड़ में शामिल हो गए थे। जिस आधार पर बाद में यह कहा जाता रहा कि भाजपा के वर्तमान नेतृत्व की पसंद में वह शुमार नहीं रहे हैं।
शिवराज की मुसीबत
शिवराज सिंह चौहान मध्य प्रदेश की राजनीति में भाजपा के जमीनी नेता रहे हैं इसलिए उन्होंने अपनी पकड़ कमजोर नहीं होने दी। लेकिन यदि ज्योतिरादित्य का कद बढ़ता है तो शिवराज का चौकन्ना होना स्वाभाविक है।
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वास्तविकता यह है कि शिवराज को माधवराव सिंधिया की बहन यशोधराराजे से कोई खतरा नहीं है। न ही वसुंधराराजे से खतरा है क्योंकि वसुंधराराजे राजस्थान को लीड करती हैं। ज्योतिरादित्य दिल्ली में रहते हैं तो शिवराज को कोई चिंता नहीं लेकिन मध्यप्रदेश में प्रासंगिकता बढ़ती है तो शिवराज को गलत नहीं कहा जा सकता।
यही बात वसुंधराराजे और यशोधराराजे के लिए कही जा रही है कि ज्योतिरादित्य के भाजपा में आने से उनकी सुप्रीमेसी पर असर पड़ना स्वाभाविक है लेकिन इसे हजम कर पाना मुश्किल।
अनुत्तरित सवाल, जवाब वक्त देगा
इसके अलावा ये सवाल अभी भी अनुत्तरित है कि विधायकों का बेंगलुरु से आने के बाद क्या रुख रहेगा। वह ज्योतिरादित्य के साथ चलेंगे या घर वापसी कर लेंगे।
उधर कांग्रेस में ज्योतिरादित्य को हाशिये पर लाने की घटना कोई नई नहीं है इससे पहले दिग्गज कांग्रेसी नेता रहे अर्जुन सिंह के पुत्र अजय सिंह राहुल को भी हाशिये पर डाला जा चुका है। कांग्रेस व भाजपा के दिग्गज नेता अब अपने पुत्रों को अगली पारी में उतारने की तैयारी कर रहे हैं ऐसे में ज्योतिरादित्य फैक्टर क्या गुल खिलाएगा ये वक्त बताएगा।
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बहरहाल राज्यपाल लालजी टंडन ने एक बार फिर 17 मार्च की डेट विश्वास मत लेने के लिए दे दी है जबकि विधानसभा अध्यक्ष सत्र 26 मार्च तक स्थगित कर चुके हैं। मामला अदालत की दहलीज पर भी जा सकता है। ऐसे में नतीजा चाहे जो हो, लेकिन होगा बहुत रोचक।