ये हैं मौलाना साद: ऐसे बने तबलीगी जमात के प्रमुख, पूरी देश में मचाया हड़कंप

तबलीगी जमात के मरकज में कोरोना फैलने की खबर के बाद से ये जमात देशभर में सुर्खियां बटोर रहा है। पूरे देश को लॉकडाउन किया गया है, इसके बाद भी यहां पर 2000 लोग से ज्यादा लोग इकट्ठा हुए, जिसके बाद जमात की लापरवाहियों को लेकर सवाल किए जा रहे हैं।

Update: 2020-04-01 12:24 GMT

नई दिल्ली: दिल्ली के निजामुद्दीन स्थित तबलीगी जमात के मरकज का कोरोना कनेक्शन सामने आने के बाद से ही हड़कंप मचा हुआ है। तबलीगी जमात के मरकज में कोरोना फैलने की खबर के बाद से ये जमात देशभर में सुर्खियां बटोर रहा है। पूरे देश को लॉकडाउन किया गया है, इसके बाद भी यहां पर 2000 लोग से ज्यादा लोग इकट्ठा हुए, जिसके बाद जमात की लापरवाहियों को लेकर सवाल किए जा रहे हैं।

तबलीगी जमात के मौलाना साद के खिलाफ मुकदमा दर्ज

वहीं कोरोना जमात के मरकज में कोरोना वायरस फैलने के बाद दिल्ली पुलिस ने तबलीगी जमात के मौलाना साद और अन्य के खिलाफ महामारी कानून 1897 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया है। फिलहाल इस मामले की जांच दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच को सौंपी गई है। बता दें कि मौलाना साद तबलीगी जमात के मुखिया (अमीर) हैं।

इससे पहले भी तबलीगी जमात घिर चुकी है विवादों में

बता दें कि ये पहला मौका नहीं है, जब मौलाना साद और तबलीगी जमात विवादों में आई हो। इससे पहले भी जमात सुर्खियों में घिर चुका है। तीन साल पहले जमात में ऐसा विवाद हुआ था कि उसने उसे दो गुटों में बांट दिया था। इसके बाद ही मौलाना साद ने खुद को पुरानी तबलीगी जमात का अमीर यानि मुखिया करार दे दिया था।

दूसरा गुट दिल्ली के तुर्कमान गेट पर चला रहा जमात

वहीं जमात का दूसरा गुट 10 सदस्यों की सूरा कमेटी बनाकर दिल्ली के तुर्कमान गेट पर मस्जिद फैज-ए-इलाही से अपनी अलग तबलीगी जमात चला रहा है। इस दूसरे गुट से मौलाना इब्राहीम, मौलाना अहमद लाड और मौलाना जुहैर समेत कई इस्लामिक स्कॉलर जुड़े हुए हैं।

दूसरे गुट ने 1 मार्च को ही बंद कर दिया था सारा काम

बता दें कि दूसरे गुट यानि मस्जिद फैज-ए-इलाही ने कोरोना संक्रमण के खतरे को देखते हुए सरकार की चेतावनी के बहुत पहले ही तबलीगी जमात का काम रोक दिया था। दूसरे गुट ने अपना सारा काम एक मार्च को ही बंद कर दिया था।

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निजामुद्दीन मरकज में 13 मार्च को रखा गया कार्यक्रम

वहीं दूसरी ओर निजामुद्दीन मरकज में जमात का काम सरकार की चेतावनी के बाद भी जारी रखा गया। 13 मार्च को मौलाना साद ने मरकज में जोड़ का एक कार्यक्रम रखा था, जिसमें शामिल होने के लिए न केवल भारत बल्कि विदेशों से भी काफी लोग आए थे। आयोजन में शामिल होने के लिए लॉकडाउन के बाद भी तबलीगी जमात के मरकज में हजारों की संख्या में लोग शामिल थे।

1927 में हुआ था तबलीगी जमात का गठन

बता दें कि मौलाना साद के परदादा यानि मौलाना इलियास कांधलवी ने ही सन् 1927 में तबलीगी जमात का गठन किया था। मौलाना इलियास कांधलवी यूपी के शामली जिले के कांधला के निवासी थे। इसी वजह से वो अपने नाम के साथ कांधलवी लगाते थे।

इलियास की चौथी पीढ़ी हैं मौलाना साद

मौलाना साद, मौलाना इलियास कांधलवी के परपोते हैं, जो कि उनकी चौथी पीढ़ी से हैं। इसके अलावा मौलाना इलियास के बेटे और मौलाना साद के दादा मौलाना युसुफ थे, जो मौलाना इलियास के निधन के बाद अमीर (मुखिया) बने थे।

मौलाना साद के बारे में बात की जाए तो उनका जन्म 1965 में हुआ था। इनके पिता का नाम मौलाना मोहम्मद हारून था। मौलाना साद की शुरुआती पढ़ाई 1987 में मदरसा कशफुल उलूम, हजरत निजामुद्दीन में हुई। इसके बाद वो सहारनपुर चले गये, जहां पर उन्होंने आलमियत की डिग्री प्राप्त की।

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इनामुल हसन की मृत्यु के बाद बने जमात के प्रमुख

वहीं मौलाना साद ने साल 1990 में सहारनपुर के मजाहिर उलूम के मोहतमिम (वीसी) मौलाना सलमान की बेटी से शादी रचाई। उसके बाद साल 1995 में तबलीगी जमात के सर्वेसर्वा मौलाना इनामुल हसन की मृत्यु हो जाने के बाद मौलाना साद ने मरकज की जिम्मेदारियां संभाली और तभी से मौलाना साद तबलीगी जमात के अमीर बने हुए हैं।

तबलीगी जमात में मिलता है खूब सम्मान

तबलीगी जमात में मौलाना साद का बहुत सम्मान किया जाता है। मौलाना साद के बयानों और उपदेशों को मुस्लिम समुदाय सुनना काफी पसंद करता है। यहीं नहीं तबलीगी जमात के इज्तिमा में उनकी एक झलक देखने के लिए सब बेकरार रहते हैं।

मौलाना इलियास बने जमाते के पहले अमीर

बता दें कि जब भारत में अंग्रेजी हुकूमत आने के बाद आर्य समाज द्वारा एक शुद्धिकरण अभियान शुरु किया गया था, जिसमें हिंदू से मुस्लिम बने लोगों को फिर से हिंदू बनाने के लिए पहल की गई। इसके चलते मौलाना इलियास कांधवी यानि मौलाना साद के परदाद ने 1926-27 में तबलीगी जमात का गठन किया। इसके साथ ही वो जमात के पहले मुखिया बने। मौलाना इलियास पहली जमात मेवात लेकर गए।

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उसके बाद मौलाना यूसुफ मौलाना इलियास की मृत्यु के बाद जमात के सर्वेसर्वा बने। वहीं साल 1965 में मौलाना यूसुफ की एकाएक मृत्यु हो गई। जिसके बाद मौलाना इनामुल हसन ने तबलीगी जमात की जिम्मेदारी संभाली। इनामुल हसन के नेतृत्व में जमात का सबसे अधिक विस्तार हुआ। 30 साल तक वो तबलीगी जमात के प्रमुख बने रहे। इस दौरान उन्होंने देश से लेकर दुनियाभर में जमात के काम का प्रचार किया।

इसके बाद मौलाना इनामुल हसन ने साल 1993 में 10 सदस्यों की एक कमेटी बनाई, जिसमें दुनिया के अलग-अलग देशों को भी शामिल किया गया। भारत से इसमें मौलाना इनामुल हसन, मौलाना साद, मौलाना जुबैर और मौलाना अब्दुल वहाब को जगह दी गई। इस क. मेटी का मुख्यतौर पर काम था दुनियाभर में तबलीगी जमात के कामकाज को देखना।

साल 1995 में मौलाना इनामुल हसन का निधन हो गया। जिसके बाद तबलीगी जमात के प्रमुख को लेकर विवाद छिड़ गया। इसके चलते किसी को भी जमात का प्रमुख नहीं बनाया गया और 10 सदस्यों की सूरा कमेटी की देखरेख में जमात का कामकाज चलता रहा। इस कमेटी के ज्यादातर सदस्यों की मौत हो चुकी है।

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खुद को बनाया जमात का अमीर

साल 2015 में मौलाना जुबैर की मृत्यु हो जाने के बाद सूरा कमेटी में अब्दुल वहाब बचे थे। इसके बाद जमात में लोगों ने कहा कि कमेटी में सदस्यों के निधन से जो जगहें खाली है, उन्हें भरा जाए। लेकिन इसके लिए मौलाना साद तैयार नहीं थे और उन्होंने खुद को ही तबलीगी जमात का अमीर घोषित कर दिया।

इस फैसले से तबलीगी जमात में काफी विवाद हो गया। दोनों गुटों के बीच न केवल विवाद हुआ, बल्कि लाठियां और डंडे भी बरसे। ये मामला इतना बढ़ गया कि पुलिस तक जा पहुंचा। इसके बाद से ही दूसरे गुट ने मरकज से अलग होकर तुर्कमान गेट पर मस्जिद फैज-ए-इलाही से जमात का काम शुरू कर दिया।

हालांकि, मुस्लिम समुदाय का बड़ा हिस्सा जो तबलीगी जमात से जुड़ा हुआ है वो आज भी निजामुद्दीन स्थिति मरकज को ही अपना केंद्र मानता है।

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