देश की सबसे तेज चलने वाली रेलगाड़ी थी 'फ्रंटियर मेल', पंजाब मेल से है रिश्ता
अंग्रेजों द्वारा चलाई गई कुछ चुनिंदा रेलगाड़ियों में से एक है जो आज भी अस्तित्व में हैं। बेशक समय के अंतराल में इसकी दूरी कम और नाम बदल गया है, लेकिन यह ट्रेन अब भी भारतीयों की सेवा में तत्पर है। हालांकि, इस समय इसके पहिये थम गए हैं, लेकिन इसके साथ एक गौरवशाली इतिहास अब भी सांसें ले रहा है।
दुर्गेश पार्थसारथी
अमृतसर: रोजाना रात को 21:25 पर अमृतसर से चल कर मुंबई सेंट्रल को जाने वाली फ्रंटियर मेल एक सितंबर को अपना 93 साल का सफर पूरा करने जा रही है, लेकिन कोरोना काल की वजह से एक महीने से ज्यादा समय से इसके पहिये थम गए हैं। यह अंग्रेजों द्वारा चलाई गई कुछ चुनिंदा रेलगाड़ियों में से एक है जो आज भी अस्तित्व में हैं। बेशक समय के अंतराल में इसकी दूरी कम और नाम बदल गया है, लेकिन यह ट्रेन अब भी भारतीयों की सेवा में तत्पर है। हालांकि, इस समय इसके पहिये थम गए हैं, लेकिन इसके साथ एक गौरवशाली इतिहास अब भी सांसें ले रहा है।
कब और क्यों शुरू हुई यह फ्रंटियर मेल
रेल डिवीजन फिरोजपुर के डिवीजनल ऑपरेटिंग मैनेजर कम रेलवे हैरिटेज एसपी सिंह के अनुसार फ्रंटियर मेल तत्कालीन रेल सेवा बांबे, बडोदरा एंड सेंट्रल इंडिया रेलवे की सोच का परिणाम थी। इस ट्रेन को 1 सितंबर 1928 को ग्रेट इंडियन पेनिनसुला रेलवे के पंजाब मेल के जवाब में शुरू किया गया था। तब यह रेलगाड़ी मुंबई के बल्लार्ड पियर मोल स्टेशन से पेशावर के बीच चलती थी। जब बल्लार्ड स्टेशन को बंद किया गया तो इसका आरंभिक स्टेशन कोलाब टर्मिनस कर दिया गया।
72 घंटे में पहुंचाती थी पेशावर
एसपी सिंह रेलवे के पुराने रिकाॅर्डको दिखाते हुए बताते हैं कि उस समय पंजाब मेल को जहां पेशावर पहुंचने में कई दिन लगते थे, वहीं फ्रंटियर मेल 72 घंटे में यात्रियों को मुंबई से पेशावर पहुंचाती थी। उस समय यह ट्रेन मुंबई और दिल्ली के बीच 1393 किमी व बंबई और पेशावर के बीच करीब 2335 किमी का सफर 72 घंटे में तय करती थी। इस बात का आंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 1930 में लंदन के द टाइम्स ने इसे ब्रिटिश साम्राज्य के भीतर चलने वाली एक्सप्रेस ट्रेनों में सबसे प्रसिद्ध बताया था।
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यात्रियों के साथ चिट्ठियां भी लाती है
आज के समय में इस ट्रेन का नाम और इंजन दोनों बदल गया है, लेकिन इसका काम अभी भी वही है जो 91 साल पहले था। रेलवेअभिलेखागार के मुताकि उस समय बल्लार्ड पीयर मोल स्टेशन यूरोप से पीएंड ओ स्टीमर से आई डाक का लदान स्टेशन भी था। उस समय फ्रंटियर मेल को मुंबई से यात्रियों व डाक को दिल्ली ले जाने के लिए शुरू किया गयाा था। इसके बाद नार्थ वेस्टर्न रेलवे के सहयोग से यह गाड़ी पेशावर तक जाती थी।
आज भी पुराने रूट पर ही चलती है
एसपी सिंह के मुताबकि ब्रिटिश भारत में यह बड़ोदारा, रतनाम, मथुरा, दिल्ली, अमृतसर, लाहौर और रावलपिंडी के रास्ते पेशावर तक जाती है। रावलपिंडी तब कश्मीर जाने वाले यात्रियों के आखिरी रेलवे स्टेशन हुआ करता था। एसपी सिंह कहते हैं यह ट्रेन भारत की आखिरी सीमा तक जाती थी। इसलिए इसका नाम अंग्रजों ने फ्रंटियर मेल रखा था, जिसे बदल कर 1996 में गोल्डन टेंपल मेल कर दिया गया। वर्तमान यह ट्रेन इसी नाम से उसी पुराने रूट पर चल रही है।
15 मिनट लेट होने पर बिठा दी गई थी जांच
डिवीजनल मैनेजर एसपी सिंह कहते हैं कि यह ट्रेन उस समय अपने समय की इतनी पाबंद थी कि लोग कहते थे कि घड़ी गलत हो सकती है, लेकिन फ्रंटियर लेट नहीं हो सकती। पुराने दस्तावेजों को दिखाते हुए वे कहते हैं कि एक बार यह ट्रेन 15 मिनट लेट होगई थी तो इसके जांच के आदेश दे दिए गए थे।
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1934 में पहली बार जोड़ा गया था एसी कोच
डीओएम एसपी सिंह भाटिया कहते हैं कि इस ट्रेने में अंग्रेज अधिकारियों के लिए पहली बार एसी कोच जोड़ा गया था। इस कोच को ठंडा रखने के लिए उस समय बर्फ का इस्तेमाल किया जता था। इसके साथ इसी इमें पेंट्री कार व डाॅनिंग कोच भी जोड़े गए। शायद यह हिंदुस्तान की पहली एसी कोच वाली रेल गाडी़ थी।
सुभाष चंद्र बोस ने भी इसी ट्रेन से की थी यात्रा
एसपी सिंह भाटिया कहते हैं कि इस ट्रेन का इस्तेमाल स्वतंत्रता संग्राम में भी खूब किया गया। वे कहते हैं 1944 में नेता जी सुभाष चंद्र बोस इसी ट्रेन से पहले पेशावर और फिर काबुल होते हुए जर्मनी चले गए थे। इसका उल्लेख नेता जी सुभाष चंद्र बोस द फाॅरगाॅटन हीरो में भी किया गया है। यही नहीं इससे पहले 1919 में फ्रंटियर मेल से ही बंबई से लाहौर जाते समय गांधी जी को भी पलवल में गिरफ्तार कर लिया गया था। यह गिरफ्तारी राजनीतिक रूप से महात्मा गांधी की पहली गिरफ्तारी थी।
नाम बदला पर सेवाएं वही हैं
एसपी सिंह कहते हैं कि आजादी व देश विभाजन के बाद बेशक फ्रंटियर मेल की दूरी अब 2335 किमी से कम हो कर 1883 किमी में सिमट गई हो लेकिन आज भी फ्रंटियर ‘गोल्डन टेमल मेल’ के प्रति लोगों का विश्वास पहलेकी ही तरह कायम है।
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फ्रंटियर मेल की कुछ खास बातें
रेलवे अभिलेखागार के मुताबिक जब फ्रंटियर मेल मुंबई पहुंचती थी तो इसके सुरक्षित आगमन की जानकारी के लिए उंची-उंची इमारतों से 36 वर्ग किमी की दूरी में विशेष लाइटिंग की जाती थी। यही नहीं जब यह गाड़ी दिल्ली पहुंचती थी तो वहां से मुंबई टेलीग्राम किया जाता था यह सुरक्षित पहुंच चुकी है।
– महत्वपूर्ण रेलवे स्टेशनों पर पहुंचेही इस गाड़ी में सफर कर रहे अंग्रेज अधिकारियों को न्यूज से अपडेट करने के लिए समाचार एजेंसी राॅटर के साथ टेलीग्राफ न्यूज की विशेष व्यवस्था की जाती थी।
– पहली बार इसी ट्रेन में अंग्रेज अधिकारियों के लिए रेडियो की व्यवस्था की गई थी। यही नहीं मनोरंजन के लिए प्लेइंकार्ड भी उपलब्ध करवाया जाता था।
(1919 में फ्रंटियर मेल से ही बंबई से लाहौर जाते समय गांधी जी को भी पलवल में गिरफ्तार कर लिया गया था। नेट से साभार।)