शहीद दिवस: आजादी के दीवानों ने चूमा फांसी का फंदा, हंसते हुए लगाया मौत को गले

भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान क्रांतिकारी भगत सिंह और उनके साथियों राजगुरु और सुखदेव को 1931 में आज ही के दिन फांसी दी गई थी।

Update: 2021-03-23 07:08 GMT
शहीद दिवस: आजादी के दीवानों ने चूमा फांसी का फंदा, हंसते हुए लगाया मौत को गले

लखनऊ: अपनी मातृभूमि के लिए जान दे देना बड़े गर्व की बात होती है और देश के हर नागरिक का यह कर्तव्य है कि अगर जीवन में कभी ऐसा मौका कभी आये तो पीछे न हटे। भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान क्रांतिकारी भगत सिंह और उनके साथियों राजगुरु और सुखदेव को 1931 में आज ही के दिन फांसी दी गई थी।

जलियांवाला बाग कांड

28 सितंबर 1907 में जन्मे भगत सिंह मात्र 12 साल के थे जब जलियांवाला बाग कांड हुआ। इसने उनके मन में अंग्रेजों के खिलाफ गुस्सा भर दिया। आजादी के लिए अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई में वह महात्मा गांधी के अहिंसात्मक तरीकों से सहमत नहीं थे। उन्होंने अपने लिए क्रांति का रास्ता चुना। और अंग्रेजों के खिलाफ आजादी की जंग का एलान कर दिया।

काकोरी कांड से हिल गई थी अंग्रेजी हुकूमत

देश की आजादी की लड़ाई में काकोरी कांड की बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका थी। इस कांड ने अंग्रेजी हुकूमत को हिलाकर रख दिया था। जिसमें रामप्रसाद बिस्मिल के साथ चार और क्रांतिकारियों को फांसी की सजा मिलने पर उनका गुस्सा और बढ़ गया। इस मामले में 16 और क्रांतिकारियों को जेल की सजा सुनाई गई। उसके बाद भगत सिंह चन्द्रशेखर आजाद के साथ हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन में शामिल हो गए।

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साइमन कमीशन का बहिष्कार

आजादी की लड़ाई में 1928 में साइमन कमीशन के बहिष्कार के लिए जबरदस्त प्रदर्शन हुए। इसी दौरान लाठी चार्ज में लाला लाजपत राय को गंभीर चोटें आईं और बाद में उनकी मौत हो गई। इसका बदला लेने के लिए भारतीय क्रांतिकारियों ने पुलिस सुप्रिटेंडेंट स्कॉट की हत्या की योजना बनाई। 17 दिसंबर 1928 को लाहौर कोतवाली के सामने स्कॉट की जगह अंग्रेज अधिकारी जेपी सांडर्स पर हमला हुआ, जिसमें उनकी जान चली गई।

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सेंट्रल एसेंबली में बम फेंके गए

आठ अप्रैल 1929 को भगत सिंह ने अपने क्रांतिकारी साथी बटुकेश्वर दत्त के साथ मिलकर ब्रिटिश भारत की दिल्ली स्थित तत्कालीन सेंट्रल एसेंबली में बम फेंके। हालांकि इस हमले का मकसद अंग्रेज सरकार को डराना था इसलिए बम सभागार के बीच में फेंके गए जहां कोई नहीं था।

घटना के बाद वहां से भागने के बजाय वह खड़े रहे और खुद को अंग्रेजों के हवाले कर दिया। करीब दो साल जेल में रहने के बाद 23 मार्च 1931 को भगत सिंह को राजगुरु और सुखदेव के साथ फांसी पर चढ़ा दिया गया। बकुटेश्वर दत्त को आजीवन कारावास की सजा मिली।

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