महाश्वेता देवीः मजलूमों की आवाज बनने में जो हो गईं विद्रोही

महाश्वेता देवी बंगला में लेखन करने वाली एक भारतीय लेखिका और एक्टिविस्ट थीं। उनके सबसे चर्चित उपन्यास हजार चौरासी मां, रुदाली और अरण्येर अधिकार हैं। महाश्वेता देवी ने देश के प. बंगाल, बिहार, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ राज्यों के आदिवासियों के सशक्तिकरण और उनके अधिकारों के लिए काम किया।

Update:2021-01-13 12:01 IST
महाश्वेता देवीः मजलूमों की आवाज बनने में जो हो गईं विद्रोही

रामकृष्ण वाजपेयी

लखनऊ: महाश्वेता देवी बंगला में लेखन करने वाली एक भारतीय लेखिका और एक्टिविस्ट थीं। उनके सबसे चर्चित उपन्यास हजार चौरासी मां, रुदाली और अरण्येर अधिकार हैं। महाश्वेता देवी ने देश के प. बंगाल, बिहार, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ राज्यों के आदिवासियों के सशक्तिकरण और उनके अधिकारों के लिए काम किया। महाश्वेता देवी को विभिन्न साहित्यिक सम्मानों से नवाजा गया जैसे साहित्य अकादमी अवार्ड (बंगाली में), ज्ञानपीठ अवार्ड और रमन मैगासेसे अवार्ड के साथ नागरिक सम्मानों पद्मश्री और पद्म विभूषण से भी सम्मानित किया गया।

साहित्यिक रूप से समृद्ध थी पारिवारिक पृष्ठभूमि

महाश्वेता देवी की पारिवारिक पृष्ठभूमि वैचारिक और साहित्यिक रूप से बहुत समृद्ध थी। उनका जन्म 14 जनवरी 1926 को अखंड भारत के ढाका (अब ढाका, बांग्लादेश) में हुआ था। उनके पिता, मनीष घटक, कल्लोल आंदोलन के एक प्रसिद्ध कवि और उपन्यासकार थे, वह उपनाम जुबांशवा (बंगाली: শনাব্ব) का इस्तेमाल लेखन में किया करते थे। घटक के भाई जाने माने फिल्म निर्माता ऋत्विक घटक थे।

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सामाजिक कार्यकर्ता थीं महाश्वेता देवी की माँ

इनकी माँ, धरित्री देवी, लेखिका और सामाजिक कार्यकर्ता थीं, भाई प्रख्यात मूर्तिकार संकेत चौधरी और भारत के आर्थिक और राजनीतिक साप्ताहिक के संस्थापक-संपादक, सचिन चौधरी थे। महाश्वेता देवी की आरंभिक शिक्षा ढाका में ईडन मोंटेसरी स्कूल (1930) में हुई, बाद में इनका परिवार पश्चिम बंगाल (अब भारत में) चला गया। बाद में इन्होंने मिदनापुर मिशन गर्ल्स हाई स्कूल (1935) में पढ़ाई की। उसके बाद उसे शांतिनिकेतन (1936 से 1938) में गईं।

प्रसिद्ध नाटककार बिजोन भट्टाचार्य से शादी

लेखिका और कार्यकर्ता ने बेलताला गर्ल्स स्कूल (1939-1941) से मैट्रिक किया। इसके 1944 में I.A. आशुतोष कॉलेज से और फिर रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा स्थापित विश्व-भारती विश्वविद्यालय से बी.ए. (ऑनर्स) अंग्रेजी में, और फिर कलकत्ता विश्वविद्यालय से अंग्रेजी में एमए किया। 27 फरवरी 1947 को, उन्होंने प्रसिद्ध नाटककार बिजोन भट्टाचार्य से शादी की, जो इंडियन पीपुल्स थिएटर एसोसिएशन आंदोलन के संस्थापकों में से एक थे। 1948 में, उन्होंने नबारुण भट्टाचार्य को जन्म दिया, जो उपन्यासकार और राजनीतिक आलोचक बने।

15 साल तक ही रहा वैवाहिक सफर

बिजोन भट्टाचार्य के साथ उनका वैवाहिक सफर तकरीबन 15 साल का रहा। शायद दोनो का एक्टविस्ट होना और महाश्वेता देवी के छटपटाहट इस अलगाव का कारण बनी। हालांकि इस बीच घर गृहस्थी को बचाने के लिए महाश्वेता देवी ने सेल्स गर्ल से लेकर पोस्ट ऑफिस तक में काम किया लेकिन अपने वामपंथी झुकाव के कारण उन्हें कहीं टिकने नहीं दिया गया। वह अनपढ़ लोगों के लिए अंग्रेजी में चिट्ठियाँ पढ़ने और पत्र लिखने जैसे कई काम करती रहीं। अंततः इसी अंतरद्वंद्व में 1962 में, उन्होंने भट्टाचार्य के पास 14 वर्षीय पुत्र को छोड़कर उनसे तलाक ले लिया।

1965 में लेखक असित गुप्ता के साथ एक बार फिर महाश्वेता देवी ने घर बसाने का फैसला किया। लेकिन यह सफर भी एक दशक से कम का रहा और 1976 में, गुप्ता के साथ संबंध समाप्त हो गया। महाश्वेता ने इस पर कहा था कि 'दूसरी शादी का भी कोई मक़सद या सिरा नज़र नहीं आ रहा था'। इसके बाद अपने निजी जीवन को उन्होंने अपने काम के जीवन के साथ एक कर देने का निश्चय किया।

आदिवासियों के साथ भेदभाव के खिलाफ उठाई आवाज

1977 में उनका बिरसा मुंडा से प्रभावित उपन्यास अरण्येर अधिकार आया। हालांकि उनका पहला उपन्यास झांसीर रानी 1956 में ही प्रकाशित हो चुका था। महाश्वेता देवी पर वामपंथी होने का आरोप बार बार लगता रहा लेकिन महाश्वेता देवी ने हर बार आदिवासियों के साथ भेदभाव के खिलाफ लगातार आवाज उठाई। उन्होंने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) की पश्चिम बंगाल सरकार की औद्योगिक नीति के खिलाफ आंदोलन का नेतृत्व किया। उन्होंने सरकार द्वारा उपजाऊ कृषि भूमि के बड़े इलाकों की किसानों से ज़ब्ती की कड़ी आलोचना की, जो औद्योगिक घरानों को सौंप दिया गया था।

उन्होंने 2011 के पश्चिम बंगाल विधान सभा चुनाव में ममता बनर्जी की उम्मीदवारी का समर्थन किया, जिसके परिणामस्वरूप सीपीआई (एम) के 34 साल के लंबे शासन का अंत हुआ। उन्होंने रबींद्रनाथ टैगोर के शांतिनिकेतन के व्यवसायीकरण से नीति को जोड़ा था, जहां उन्होंने अपने प्रारंभिक वर्षों में बिताया था। नंदीग्राम आंदोलन में उनकी अगुवाई में कई बुद्धिजीवियों, कलाकारों, लेखकों और रंगमंच के कार्यकर्ताओं ने विवादास्पद नीति के विरोध में एक साथ शामिल हुए।

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विवादित बयान

27 दिसंबर 1997 को महाश्वेता देवी ने हस्तलिखित अपील में सीपीआई एमएल से बिहार में बदला लेने का आह्वान किया था। रणवीर सेना पर उस वक्त एक सामूहिक नरसंहार का आरोप लगा था, उसके बाद महाश्वेता देवी ने यह अपील की थी। उस वक्त महाश्वेता देवी किससे बदला लेने के लिए उकसा रही थीं; ऊंची जाति के उन गरीब लोगों पर जो निरीह थे। इसकी व्यापक आलोचना भी हुई थी। लेकिन महाश्वेता देवी पर किसी तरह की कोई कार्रवाई नहीं हुई क्योंकि उनको गरीबों का मसीहा माना जाता था।

अंत में यही कहा जा सकता है कि महाश्वेता देवी रचनाकार से पहले कहीं अधिक एक सामाजिक कार्यकर्ता थीं। बांग्ला भाषा में अपने बेहद संवेदनशील और वैचारिक लेखन से उन्होंने संपूर्ण भारतीय साहित्य को समृद्धशाली बनाया। वहीं लेखन के साथ-साथ उन्होंने पूरी जिंदगी स्त्री अधिकारों, दलितों और आदिवासियों के हितों के लिए व्यवस्था से संघर्ष किया।

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