Tamil Nadu: तमिलनाडु में महंत की पालकी शोभायात्रा रोकने पर विवाद, भक्त बिफरे, सीएम स्टालिन से शिकायत

तमिलनाडु (Tamil Nadu) के मदुरै में एक प्रसिद्ध शैव मठ के महंत की पालकी शोभायात्रा पर रोक लगाने पर विवाद पैदा हो गया है। प्रशासन की ओर से इस पर रोक लगा दी गई है।

Report :  Anshuman Tiwari
Published By :  Shashi kant gautam
Update:2022-05-04 19:27 IST

तमिलनाडु: महंत की पालकी शोभायात्रा रोकने पर विवाद: Photo - Social Media

Tamil Nadu News: तमिलनाडु के मदुरै में एक प्रसिद्ध शैव मठ के महंत की पालकी शोभायात्रा पर रोक लगाने पर विवाद पैदा हो गया है। शोभायात्रा (procession) के दौरान मठ के पदाधिकारियों और अनुयायियों की ओर से महंत की पालकी को कंधे पर ले जाने की पुरानी परंपरा रही है मगर प्रशासन की ओर से इस पर रोक लगा दी गई है। प्रशासन ने इसे मानवाधिकारों का उल्लंघन (human rights violations) बताया है मगर प्रशासन के इस कदम के बाद भक्तों में गहरी नाराजगी फैल गई है। 

भक्तों की ओर से प्रशासन को चेतावनी भरे लहजे में कहा गया है कि 500 साल पुरानी इस परंपरा (500 year old tradition) को नहीं रोका जा सकता। उन्होंने इस मामले की शिकायत मुख्यमंत्री एमके स्टालिन से की है और मुख्यमंत्री से अनुरोध किया है कि वे इस मामले में दखल देकर शोभायात्रा को निकालने की अनुमति दें।

सदियों से चल रही है परंपरा 

मदुरै के पास स्थित मदुरै अधीनम को शैवों का सबसे प्राचीन मठ माना जाता रहा है और इस मठ के प्रति अनुयायियों की काफी श्रद्धा रही है। मदुरै के मीनाक्षी अम्मन मंदिर के पास स्थित मठ को देश के महत्वपूर्ण शिव शक्तिपीठों में एक माना जाता रहा है। धरमापुर अधीनम नाम से जाने जाने वाले इस मठ में सदियों से एक परंपरा का पालन किया जाता रहा है। इस परंपरा के अंतर्गत धरमापुर अधीनम के महंत को पालकी में बिठाकर कंधे पर शोभायात्रा निकाली जाती है। इस बार भी शोभायात्रा का कार्यक्रम 22 मई को तय किया गया है मगर उससे पहले प्रशासन ने शोभायात्रा पर रोक लगा दी है।

इस बाबत मठ के पदाधिकारियों और भक्तों का कहना है कि आज तक यह परंपरा नहीं रोकी गई। ब्रिटिश शासन काल और आजादी के बाद कभी इस परंपरा में दखल देने की कोशिश नहीं की गई मगर अब से रोकने का फरमान जारी किया गया है। 

धार्मिक परंपरा (religious tradition) रोकने की कोशिश

शोभायात्रा पर रोक के खिलाफ भक्तों और मठ के पदाधिकारियों ने मोर्चा खोल दिया है और उनका कहना है कि प्रशासन की ओर से धार्मिक कार्य में दखल देने का अनुचित प्रयास किया जा रहा है। उन्होंने इस बाबत मुख्यमंत्री से शिकायत करते हुए इस मामले में दखल देने का अनुरोध किया है। मठ से जुड़े लोगों का कहना है कि धर्मापुर अधीनम का शैव संप्रदाय में वही महत्व है, जो कैथोलिक ईसाइयों के लिए वेटिकन सिटी का है। पदाधिकारियों का कहना है कि अपने गुरु के प्रति सम्मान के भाव के लिए ही उन्हें पालकी में बिठाकर ले जाने की परंपरा रही है और इस पर रोक लगाने की कोशिश पूरी तरह गलत है। प्रशासन और सरकार को इस मठ की प्राचीन परंपरा को बनाए रखने के लिए उचित कदम उठाना चाहिए। 

मदुरै अधीनम के महंत ज्ञानसंवदा दसीगर ने कहा कि ब्रिटिश राज में भी इस परंपरा को नहीं रोका गया और आजादी के बाद किसी भी मुख्यमंत्री ने इसे रोकने का कदम नहीं उठाया। मानवाधिकारों का मुद्दा उठाकर इस पर रोक लगाना धार्मिक परंपराओं को रोकने की कोशिश के सिवा कुछ नहीं है। इस परंपरा को बनाए रखने के लिए अब मुख्यमंत्री को खुद दखल देना चाहिए।

शिकायत के बाद प्रशासन ने उठाया कदम 

दरअसल, यह पूरा विवाद दविड़ कड़गम और कुछ अन्य लोगों की शिकायत के बाद पैदा हुआ है। द्रविड़ कड़गम का कहना है कि यह परंपरा मानवाधिकारों का पूरी तरह उल्लंघन है और इस पर रोक लगाई जानी चाहिए। संगठन के पदाधिकारी थलपति राज का कहना है कि किसी इंसान की पालकी को इंसानों की ओर से उठाया जाना स्पष्ट। तौर पर मानवाधिकारों का उल्टा उल्लंघन है। 

उनकी ओर से शिकायत किए जाने के बाद ही रेवेन्यू ऑफिसर (revenue officer) की ओर से जारी आदेश में पालकी यात्रा पर रोक लगाई गई है। हालांकि प्रशासन की ओर से पूरे आयोजन पर रोक का कोई आदेश जारी नहीं किया गया है मगर पालकी यात्रा रोके जाने के खिलाफ भक्तों में गहरी नाराजगी दिख रही है।

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