Right to Sit Rule: केरल के बाद तमिलनाडु में भी शो रूम में बैठकर कर सकेंगे काम
Tamil Nadu Mein Baithne Ka Adhikar: तमिलनाडु की दुकानों और व्यवसायिक प्रतिष्ठानों में काम करने वाले कर्मचारियों को ‘बैठने का अधिकार’ मिल गया है। तमिलनाडु ऐसा कानून लाने वाला दूसरा राज्य बन गया है।
Tamil Nadu Mein Baithne Ka Adhikar: आप किसी शोरूम, मॉल या बड़ी दुकान में जाएं, ज्यादातर जगह सभी कर्मचारी खड़े ही दिखते हैं। कर्मचारियों को ड्यूटी टाइम में बैठने की इजाजत नहीं होती है, पूरे समय खड़े रहना पड़ता है। चूँकि ये सेवा शर्तों में शामिल है सो कर्मचारी कुछ कर नहीं पाते। वे दस-दस घंटों तक खड़े हो कर दुकानों में काम करते हैं।
ऐसे में तमिलनाडु (Tamil Nadu) में एक नई शुरुआत हुई है। तमिलनाडु की दुकानों और व्यवसायिक प्रतिष्ठानों में काम करने वाले कर्मचारियों को 'बैठने का अधिकार' (Baithne Ka Adhikar) मिल गया है। तमिलनाडु ऐसा कानून लाने वाला दूसरा राज्य बन गया है। इससे पहले केरल यह नियम (Kerala Mein Niyam) लागू कर चुका है। श्रमिकों के स्वास्थ्य की रक्षा के लिए यह देर से उठाया गया स्वागत योग्य कदम है।
बैठने का अधिकार खासकर महिला कर्मचारियों के लिए फायदेमंद साबित हो रहा है। कानून के मुताबिक स्टोर मालिकों से कहा गया है कि वे कर्मचारियों की बैठने की व्यवस्था करें। कर्मचारियों को काम के दौरान जब भी संभव हो आराम करने का मौका दें। कर्मचारी बताते हैं कि ड्यूटी शिफ्ट के दौरान एकमात्र आराम का समय 20 मिनट के लंच ब्रेक में मिलता था।
कुछ भी हो, आप बैठ नहीं सकते हैं। अगर पैरों में दर्द हो तो शेल्फ के सहारे टिक जाने के अलावा कोई चारा नहीं होता। ग्राहक नहीं होने पर भी फर्श पर बैठने की इजाजत नहीं होती है। भारत में यह एक ऐसा नियम हो जो समान रूप से सभी कर्मचारियों पर लागू होता है। तमिलनाडु समेत दक्षिणी राज्यों में तमाम बड़े घराने ज्वेलरी, साड़ी और कपड़ों के रिटेल स्टोर चलाते हैं। इनमें आमतौर पर महिला ग्राहकों को अटेंड करने के लिए गरीब परिवारों की महिलाओं को काम पर रखते हैं।
केरल में कानून
2018 में केरल ने इसी तरह का कानून (Kerala Right To Sit) लागू किया था। राज्य में कपड़े के स्टोर में काम करने वाले कर्मचारियों ने इस अधिकार () की मांग को लेकर प्रदर्शन किया था। पेशे से दर्जी पी. विजी ने केरल में बैठने का अधिकार आंदोलन (Baithne Ka Adhikar Andolan) को शुरू किया था। उन्होंने एक यूनियन का गठन किया, यह खासकर ऐसे कर्मचारियों के लिए था, जो असंगठित क्षेत्र जैसे कि दुकानों में सहायक के तौर पर काम करते हैं।
विजी के अनुसार, चूंकि महिलाओं को काम पर बैठने की अनुमति (Baithne Ki Anumati) नहीं दी जा रही थी, इसलिए वे अपने सिर पर कुर्सियां लेकर विरोध में चल पड़ीं। विजी का कहना है कि असली परीक्षा इसको लागू करना है। एक यूनियन के रूप में हम लगातार दुकानों की जांच करते हैं। अगर बैठने की सुविधाएँ नहीं हैं तो हम शिकायत दर्ज करते हैं। अगर कोई कानून लागू नहीं किया जाता है, तो उसका कोई मतलब नहीं है।
तमिलनाडु के श्रम सचिव आर किर्लोश कुमार कहते हैं,"इंस्पेक्टर जांच करने दुकानों पर जाएंगे ताकि कानून को लागू किया जा सके। स्टोर मालिकों की तरफ से कानून का अनुपालन सुनिश्चित किया जाएगा। दूसरी ओर यूनियन नेताओं और महिला अधिकार आंदोलनकर्ताओं का कहना है कि बैठने में सक्षम नहीं होना दुकान के कर्मचारियों के सामने आने वाली दैनिक कठिनाइयों में से एक है। दुकान के कर्मचारियों को अक्सर न्यूनतम वेतन से कम भुगतान किया जाता है।उन्हें सप्ताह के सातों दिन काम करने के लिए मजबूर किया जाता है। उन्हें लगातार निगरानी और प्रतिबंधों का सामना करना पड़ता है। आरोप तो यह भी लगते हैं कि महिला कर्मचारियों को बाथरूम के इस्तेमाल से भी रोका जाता है।"
अभी बहुत सी मांगें बाकी
कर्मचारियों का कहना है कि बैठने के अधिकार के अलावा न्यूनतम सुविधाएं मिलना अभी बाकी है। उचित वेतन, उचित टॉयलेट ब्रेक, लंच की जगह, रेस्ट रूम, और बीमा जैसी सामाजिक सुरक्षा लेने की लड़ाई जारी है। कर्मचारियों पर निगरानी के लिए दुकान मालिक सीसीटीवी लगाते हैं। कर्मचारियों की जासूसी करते हैं। केरल में यूनियन सीसीटीवी निगरानी पर रोक (CCTV Camera Par Ban) लगाने की मांग कर रहे हैं। यूनियन के सदस्य कहते हैं कि इसका इस्तेमाल कर्मचारियों को आपस में बात करने या कुछ समय के लिए अपनी जगह छोड़ने के लिए दंडित करने के लिए किया जाता है।
दोस्तों देश और दुनिया की खबरों को तेजी से जानने के लिए बने रहें न्यूजट्रैक के साथ। हमें फेसबुक पर फॉलो करने के लिए @newstrack और ट्विटर पर फॉलो करने के लिए @newstrackmedia पर क्लिक करें।