Nilgiri Mountains: जानिए नीलगिरी हिल्स और कुन्नूर के बारे में, जानें मौसम का कैसा रहता है हाल यहां
Nilgiri Mountains: नीलगिरी हिल्स (Nilgiri Hills) को जाने वाले ट्रैकिंग अभियानों के लिये एक आदर्श स्थल माना जाता है।
Nilgiri Mountains: कुन्नूर दक्षिण तमिलनाडु (Tamil Nadu) के नीलगिरी (Nilgiri )जिले में है और ये इलाका घने जंगल वाला है। ये पूरा इलाका दूर दूर तक फैले पहाड़ों (Mountains)और चाय बागानों (Tea Gardens)के लिए जाना जाता है। कुन्नूर (coonoor) में साल भर मौसम ठंडा (thand mausam) रहता है और यहां खराब मौसम और कुहासा बहुत आम बात है। कुन्नूर समुद्र सतह से 1850 मीटर की ऊंचाई पर स्थित नीलगिरी पर्वतमाला (Nilgiri ranges) का ऊटी के बाद दूसरा सबसे बड़ा पर्वतीय स्थल है। यह नीलगिरी हिल्स (Nilgiri Hills) को जाने वाले ट्रैकिंग अभियानों के लिये एक आदर्श स्थल माना जाता है। यहां से निकटतम एयरपोर्ट कोयंबटूर (coimbatore airport ) में लगभग 56 किमी दूर स्थित है। सेना की मद्रास रेजिमेंट (Madras Regiment of Army)का रेजिमेंटल मुख्यालय यहीं पर है। इसके अलावा यहां पड़ोस की वेलिंग्टन छावनी में रक्षा सेवा स्टाफ कॉलेज (डीएसएससी) भी है।
नीलगिरी (Nilgiri)
नीलगिरी दक्खन के पठार में स्थित 24 पहाड़ियों का एक समूह है। यह सभी पहाड़ियां समुद्र तल से करीब 2000 मीटर (6,562 फुट) की ऊंचाई पर हैं। मशहूर पर्यटन स्थल ऊटी, कुन्नूर व कटागिरी नीलगिरी की पहाड़ियों में ही आते हैं। तमिलनाडु के पश्चिमी छोर पर नीलगिरी की पहाड़ियां कर्नाटक व केरल तक जाती हैं। ये पहाड़ियां पश्चिमी घाट का हिस्सा हैं।
नीलगिरी की पहाड़ियां उत्तर में अन्नामलाई और दक्षिण में पालनी पहाड़ों से घिरी हैं। 130 किमी चौड़ाई और 185 किलोमीटर लंबाई में फैली नीलगिरी की पहाड़ियों का कुल क्षेत्रफल 2,479 वर्ग किमी है। मुकुर्थी नेशनल पार्क सहित यहां का कुछ हिस्सा युनेस्को की विश्व धरोहरों में आता है। 2,637 मीटर (8,652 फुट) ऊंचा डोडाबेटा यहां का सबसे ऊंचा पहाड़ है। कुलकुडी की ऊंचाई 2,439 मीटर है और सबसे छोटी पहाड़ी हुलीकल दुर्ग की ऊंचाई 562 मीटर है। कन्नड़ में हुलीकल दुर्ग का अर्थ टाइगर रॉक फोर्ट है और संस्कृत में इसे बकासुर पर्वत के नाम से जाना जाता है।
भारत में नीलगिरी पहाड़ इसलिए मशहूर है क्योंकि यहां 100 साल से चाय उगाई जा रही है। नीलगिरी पहाड़ पर कई तरह के चाय के पौधे होते हैं।
नीलगिरी में तैयार हो रही है न्यूट्रीनो टनल (neutrino tunnel)
नीलगिरी की पहाड़ियों को नीचे से खोदकर डेढ़ किलोमीटर की एक सुरंग बनाई जा रही है। ये सुरंग तमिलनाडु के थेनी जिले में है। ये कुन्नूर से करीब सवा सौ किलोमीटर दूर है। ये सुरंग बिल्कुल उसी तरह की है, जिस तरह की साइंटिफिक सुरंग स्विट्जरलैंड में बनी है, जहां वैज्ञानिक गॉड ऑफ पार्टिकल पर काम कर रहे हैं। लेकिन भारत में बन रही सुरंग जो पार्टिकल्स बनाने जा रही है, उन्हें करामाती पार्टिकल्स या न्यूट्रीनो भी कहा जाता है। इसमें दुनिया का सबसे बड़ा चुंबक लगाया जाएगा। ये उस चुंबक से चार गुना ज्यादा बड़ा जो जिनेवा की सर्न लैब में है। गॉड ऑफ पार्टिकल्स बनाने वाली सर्न लैब में लगे हुए चुंबक का वजन 12.50 टन है। जबकि नीलगिरी प्रोजेक्ट में डिटेक्टर के तौर पर जो चुंबक लगाया जा रहा है, उसका वजन 50 हजार टन है।
इस प्रोजेक्ट में जिस न्यूट्रीनो नाम के पार्टिकल पर काम होगा, उसे पर्यावरणवादी और इलाके के लोग किलर पार्टिकल कहते हैं। आशंका है कि जब ये लैब शुरू होगी तो इलाके में रेडिएशन बढ़ेगा। उन्हें ये भी लगता है कि न्यूट्रीनो ऐसा कण है, जो किसी भी तरह के संहार में सक्षम है। माना जाता है कि ब्रह्मांड से धरती पर पहुंचने वाले सबसे गतिशील और ऊर्जावान अणु हैं। वे ब्रह्मांड में हर जगह विचरण करते रहते हैं। उन्हें देखना और पकड़ना नामुमकिन है। ये तभी नजर आते हैं, जब नाभिकीय प्रतिक्रियाएं हों। न्यूट्रीनो उन मूल कणों में से एक है जिनके द्वारा पदार्थों तथा ब्रह्माण्ड की रचना हुई है।
पर्यावरण की तबाही (paryavaran ki tabahi)
क्लाइमेट चेंज (climate change) का असर नीलगिरी पहाड़ों पर भी बहुत पड़ा है। मई 2020 में यहां कार्बनडाईऑक्साइड का स्तर 417 प्रति दस लाख पाया गया था जो तीस लाख वर्षों में उच्चतम माना जा रहा है। ग्लोबल वार्मिंग के कारण इस क्षेत्र में अत्यधिक तीव्र मौसमी स्थितियां बनती रहती हैं। बीते दस साल में पश्चिमी घाट आठ तूफानों को झेल चुके हैं। आये दिन यहां छोटे तूफान और अतिवृष्टि होती है।