Delhi Ramlila Maidan History: सैंकड़ों राजनीतिक हलचल का गवाह बना रामलीला मैदान, क्या है इसका इतिहास?

Delhi Ramlila Maidan Ka Itihas: रामलीला मैदान का नामकरण और प्रसिद्धि का कारण रामलीला मैदान का नाम यहाँ आयोजित होने वाली पारंपरिक रामलीला से पड़ा।;

Written By :  Akshita Pidiha
Update:2025-02-20 17:09 IST

Delhi Ramlila Maidan Ka Itihas (Photo - Social Media)

History Of Ramlila Maidan: भूमिका रामलीला मैदान, दिल्ली के दिल में स्थित एक विशाल सार्वजनिक स्थल है, जो न केवल सांस्कृतिक और धार्मिक आयोजनों के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि भारतीय राजनीति में भी इसका एक विशेष स्थान है। स्वतंत्रता संग्राम से लेकर आधुनिक राजनीति तक, यह मैदान अनेक ऐतिहासिक क्षणों का साक्षी रहा है। इस लेख में हम रामलीला मैदान के इतिहास, भौगोलिक संरचना, इसके राजनैतिक महत्त्व, और यहाँ घटी प्रमुख घटनाओं का विस्तार से विश्लेषण करेंगे।

भौगोलिक संरचना

रामलीला मैदान की भौगोलिक संरचना और निर्माण रामलीला मैदान पुरानी दिल्ली के अजमेरी गेट के पास स्थित है।


इसका क्षेत्रफल लगभग 30 एकड़ में फैला हुआ है, जो इसे दिल्ली के सबसे बड़े सार्वजनिक स्थलों में से एक बनाता है। चारों ओर से सुरक्षित बाउंड्री और एक विशाल मंच इसकी प्रमुख विशेषताएँ हैं।

तालाब को बनाया गया मैदान

इस मैदान का निर्माण ब्रिटिश काल के दौरान हुआ, जब दिल्ली के नागरिक आयोजनों के लिए एक बड़े खुले स्थान की आवश्यकता महसूस की गई। पहले यह क्षेत्र एक निम्न क्षेत्र था, जहाँ जलभराव की समस्या थी। ब्रिटिश प्रशासन ने यहाँ की भूमि को समतल कर, जल निकासी की उचित व्यवस्था की और इसे एक सार्वजनिक आयोजन स्थल में परिवर्तित किया।


स्वतंत्रता के बाद, दिल्ली नगर निगम (MCD) द्वारा इसे एक औपचारिक आयोजन स्थल के रूप में और विकसित किया गया, जिसमें मंच, दर्शक दीर्घा, हरियाली और सुरक्षा की समुचित व्यवस्था की गई।

रामलीला नाम कैसे

कुछ मान्यताओं के अनुसार, रामचरित मानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास ने ही यहां रामलीला की शुरुआत की थी। 1947 में स्वतंत्रता के बाद, इस मैदान में आजादी का पर्व मनाया गया। इसके बाद, यह राष्ट्रीय और प्रादेशिक आंदोलनों का भी केंद्र बना। 


रामलीला मैदान का नामकरण और प्रसिद्धि का कारण रामलीला मैदान का नाम यहाँ आयोजित होने वाली पारंपरिक रामलीला से पड़ा। हर साल दशहरे के अवसर पर यहाँ भव्य रामलीला का आयोजन होता है, जिसमें रावण दहन मुख्य आकर्षण होता है। हजारों दर्शक इस धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम का आनंद लेने यहाँ आते हैं। इसके अलावा, यहाँ विभिन्न मेलों, धार्मिक सभाओं और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का भी आयोजन होता है, जिसने इसे एक सांस्कृतिक केंद्र बना दिया है।

राजनीति का मुख्य केंद्र

भारतीय राजनीति में रामलीला मैदान का महत्त्व रामलीला मैदान भारतीय राजनीति का एक प्रमुख केंद्र रहा है। यह वह स्थान है जहाँ न केवल बड़े पैमाने पर रैलियाँ और सभाएँ आयोजित होती हैं, बल्कि जहाँ से कई ऐतिहासिक आंदोलनों की शुरुआत भी हुई। यह मैदान जनता और नेताओं के बीच सीधा संवाद स्थापित करने का एक माध्यम बना रहा है।

आपातकाल (1975-77): रामलीला मैदान में आपातकाल के दौरान अनेक विरोध प्रदर्शन हुए। जयप्रकाश नारायण और अन्य नेताओं ने यहीं से इंदिरा गांधी सरकार के खिलाफ आवाज उठाई। आपातकाल के दौरान रामलीला मैदान लोकतंत्र की बहाली के संघर्ष का केंद्र बना रहा।


अन्ना हजारे का आंदोलन (2011): भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना हजारे के नेतृत्व में जन लोकपाल बिल की मांग को लेकर हजारों लोग इस मैदान में एकत्रित हुए। इस आंदोलन ने पूरे देश में एक नई लहर पैदा की और रामलीला मैदान को फिर से राजनीति के केंद्र में ला खड़ा किया।


अरविंद केजरीवाल और 'आप' का उदय: आम आदमी पार्टी (AAP) के गठन और उसके बाद की रैलियों ने रामलीला मैदान को दिल्ली की राजनीति का केंद्र बिंदु बना दिया। यह मैदान एक नई राजनीतिक धारा और आम जनता की आवाज का प्रतीक बन गया।

अन्य महत्वपूर्ण आंदोलन: रामलीला मैदान पर मंडल आयोग विरोध प्रदर्शन (1990), किसान आंदोलनों, शिक्षा सुधार आंदोलनों और नागरिक अधिकार आंदोलनों का भी आयोजन हुआ है।

1965 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद जब भारत ने जीत हासिल की, तब तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने रामलीला मैदान पर एक विशाल जनसभा को संबोधित किया। यहीं से उनका प्रसिद्ध नारा "जय जवान, जय किसान" पूरे देश में गूंजा।


1972 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद, जब बांग्लादेश का गठन हुआ और पाकिस्तान पर भारत की जीत हुई, तो तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने भी यहीं पर जीत का जश्न मनाया।

विश्व-विख्यात हिंदी कवि रामधारी सिंह दिनकर की पंक्तियां "सिंहासन खाली करो कि जनता आती है" भी इसी रामलीला मैदान पर गूंज चुकी हैं।

2011 का अन्ना आंदोलन, अटल बिहारी वाजपेयी की ऐतिहासिक सभाएं, बाबा रामदेव का आंदोलन—सब इसी मैदान के गवाह रहे हैं।

सिर्फ दिल्ली में ही नहीं अन्य जगह भी है यह मैदान

भारत में रामलीला मैदान केवल धार्मिक या सांस्कृतिक आयोजन स्थलों के रूप में ही नहीं, बल्कि ऐतिहासिक और राजनैतिक आंदोलनों के केंद्र के रूप में भी प्रसिद्ध रहे हैं। दिल्ली के रामलीला मैदान के साथ-साथ लखनऊ, गाजियाबाद, गोरखपुर, जयपुर और सीकर जैसे अन्य शहरों के रामलीला मैदानों का भी अपना महत्वपूर्ण स्थान है।

लखनऊ का रामलीला मैदान (ऐशबाग) लखनऊ का रामलीला मैदान ऐशबाग में स्थित है, जिसका अस्तित्व सन् 1860 में आया था। उस समय वाजिद अली शाह अवध के नवाब थे। यह एक ऐसा दौर था जब लखनऊ कला, संस्कृति और विलासिता का केंद्र था। इसी समय ऐशबाग के मैदान में धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन शुरू हुआ, जिसमें रामलीला का प्रमुख स्थान था। रामलीला के दौरान यहाँ भव्य मेले का आयोजन होता था, इसलिए इसे रामलीला मैदान कहा जाने लगा।

ऐतिहासिक रूप से, कहा जाता है कि वाजिद अली शाह ने भी रामलीला के आयोजनों में सहायता की थी। उत्तर प्रदेश के अन्य ऐतिहासिक रामलीला मैदान उत्तर प्रदेश में ऐशबाग लखनऊ के अलावा गाजियाबाद के कविनगर और गोरखपुर के अंधियारीबाग के रामलीला मैदान का भी विशेष महत्त्व है। गाजियाबाद का रामलीला मैदान सन् 1900 में उस्ताद सुल्लामन ने स्थापित किया था। वहीं, गोरखपुर का रामलीला मैदान लगभग 200 वर्षों से रामलीला का आयोजन कर रहा है। यहाँ का 'राघव शक्ति मिलन' प्रसिद्ध है। ये मैदान केवल सांस्कृतिक कार्यक्रमों के लिए ही नहीं, बल्कि राजनैतिक रैलियों और आंदोलनों के लिए भी महत्वपूर्ण स्थल रहे हैं।


राजस्थान के प्रमुख रामलीला मैदान राजस्थान के जयपुर और सीकर में भी ऐतिहासिक रामलीला मैदान स्थित हैं। जयपुर का रामलीला मैदान न्यूगेट में है, जबकि सीकर का रामलीला मैदान सन् 1953 से रामलीला का आयोजन करता आ रहा है। शेखावाटी क्षेत्र में यहाँ के रावण दहन की विशेष प्रसिद्धि है। इन मैदानों में सांस्कृतिक गतिविधियों के साथ-साथ राजनैतिक सभाओं का भी आयोजन होता रहा है।

रामलीला मैदान और ब्रिटिश काल का इतिहास दिल्ली के रामलीला मैदान का उपयोग अंग्रेजों ने 1883 में अपने सैनिकों और अधिकारियों के अस्थायी शिविरों के रूप में किया था। यह स्थान उस समय एकदम शांत और निर्जन हुआ करता था, जो ब्रिटिश सैनिकों के आराम के लिए उपयुक्त था। हालांकि, जब अंग्रेजी हुकूमत कमजोर होने लगी, तो यह मैदान फिर से रामलीला और सांस्कृतिक आयोजनों का केंद्र बन गया।

रामलीला मैदान और भारतीय राजनीति रामलीला मैदानों का राजनीति में विशेष महत्त्व रहा है। 1945 में मोहम्मद अली जिन्ना की सभा से लेकर, पंडित नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री, इंदिरा गांधी, अटल बिहारी वाजपेयी, अन्ना हजारे और नरेंद्र मोदी तक, अनेक राजनैतिक दिग्गजों ने यहां से अपने विचार प्रकट किए हैं। इन मैदानों ने स्वतंत्रता संग्राम, सत्याग्रह आंदोलन, आपातकाल विरोध और भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलनों का गवाह बना है।

कहा जाता है कि साल 1945 में जब मोहम्मद अली जिन्ना इस मैदान पर पहुंचे तो मैदान में मौजूद हुजूम ने उन्हें मौलाना की उपाधि दे डाली.जिन्ना की उसी सभा में के बाद रामलीला मैदान नेताओं की पसंदीदा भाषण-स्थली ही बन गई.

प्रमुख ऐतिहासिक घटनाएँ

  1. 1979: मोरारजी देसाई के खिलाफ विपक्ष की रैली
  2. 1983: इंदिरा गांधी की चुनावी रैली
  3. 1990: वी.पी. सिंह की मंडल आयोग की घोषणा के बाद की सभा
  4. 2003: अटल बिहारी वाजपेयी की विजय रैली
  5. 2020: नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) के खिलाफ प्रदर्शन

रामलीला मैदान के सामाजिक और सांस्कृतिक पहलू यह मैदान केवल राजनीति तक ही सीमित नहीं है। यहाँ प्रतिवर्ष आयोजित होने वाली रामलीला, दशहरे का मेला, और अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रम दिल्ली की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर को दर्शाते हैं।

इसके अतिरिक्त, विभिन्न धार्मिक और सामाजिक संस्थाएँ यहाँ नियमित रूप से सामुदायिक कार्यक्रम आयोजित करती हैं, जिससे यह मैदान सामाजिक एकता का भी प्रतीक बन गया है।


यहाँ पर कई सामाजिक न्याय और समानता के मुद्दों पर भी सभाएँ आयोजित होती रही हैं, जैसे कि दलित अधिकार आंदोलन, महिला सशक्तिकरण रैलियाँ, और LGBTQ+ समुदाय के समर्थन में आयोजित कार्यक्रम।

रामलीला मैदान और मीडिया का योगदान मीडिया ने भी रामलीला मैदान को एक खास स्थान दिया है। यहाँ होने वाली हर बड़ी घटना का सीधा प्रसारण किया जाता है, जो इसे राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मंच पर प्रमुख बनाता है।

अंतर्राष्ट्रीय घटनाएँ और विदेशी मेहमान रामलीला मैदान ने कई विदेशी नेताओं की भी मेजबानी की है। 1955 में सोवियत नेता निकिता ख्रुश्चेव और निकोलाई बुल्गानिन, 1959 में अमेरिकी राष्ट्रपति ड्वाइट आइजनहावर और 1961 में महारानी एलिजाबेथ द्वितीय ने यहाँ जनसभाओं को संबोधित किया था।

भारत के प्रमुख रामलीला मैदान केवल धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजनों तक सीमित नहीं हैं, बल्कि ये भारतीय राजनीति और समाज के लिए एक जीवंत प्रतीक भी हैं। इतिहास में कई महत्वपूर्ण आंदोलनों, जनसभाओं और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के माध्यम से इन मैदानों ने देश की जनता को एकजुट करने का कार्य किया है। यह परंपरा भविष्य में भी जारी रहेगी और भारतीय लोकतंत्र की जड़ों को और अधिक मजबूती प्रदान करेगी।

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