ऐप्स से अरबों रुपये कमा रहा है चीन
ऐप्स का काम सिर्फ लोगों का मनोरंजन करना या उनको सुविधाएं प्रदान करना ही नहीं है। ये तो अरबों डालर का धंधा है।
लखनऊ: ऐप्स का काम सिर्फ लोगों का मनोरंजन करना या उनको सुविधाएं प्रदान करना ही नहीं है। ये तो अरबों डालर का धंधा है। इस धंधे को चीन के उद्यमियों, कंपनियों और डेवलपर्स ने बहुत अच्छी तरह समझ लिया है और आज इसका नतीजा है कि विश्व में सिर्फ ऐप्स के जरिये चीन की कमाई 40 बिलियन डालर यानी 3000 अररब रुपये सालाना से ज्यादा की है। दुनिया में ऐप से होने वाली कमाई का 40 फीसदी चीन के पास जाता है। 2016 के बाद से चीनी ऐप्स की कमाई 140 फीसदी बढ़ी है। इसमें भारत से कमाई का बड़ा हिस्सा है। जबसे भारत में इंटरनेट और स्मार्ट फोन की पैठ बढ़ी है चीन का कारोबार दिन दूनी रात चौगुनी रफ्तार से बढ़ रहा है।
मोबाइल गेम्स से पैसा कमाने में चीन आज नंबर एक स्थान पर है। और चीनी कंपनी टेंसेंट द्वारा बनाया गया गेम एरीना ऑफ वलोर ने सबसे ज्यादा कमाई करके दी है। 2018 और 2019 में इस गेम ने 728 मिलियन डालर कमा के दिये। कमाई के लिहाज से देखिएन तो टेंसेंट आज दुनिया के नंबर वन ऐप डेवलपर कंपनी है।
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जमीनी लेवल की रिसर्च
चीन के ऐप डेवलपर भारत को बहुत उर्वर बाजार के रूप में देख रहे हैं। शुरुआती विफलताओं से सीख लेते हुये चीन के उद्यमियों ने भारत में जमीनी लेवल की रिसर्च की और लोगों की जरूरतों को समझा। मिसाल के तौर पर एक चीनी डेवलपर फॉरेस्ट चेन ने न्यूज़डॉग नाम वाले एक एप को 2015 में अमेरिका में लॉंच किया लेकिन जल्द ही उनको समझ आ गया कि अमेरिका में कंप्टीशन बहुत ज्यादा है। अमेरिका में न्यूज़डॉग मात्र 10 हजार सब्सक्राइबर ही जुटा पाया था।
इसके बाद चेन ने 2016 में भारत का रुख किया। और अंग्रेजी में समाचार देने वाला ये ऐप शुरू किया। जल्द ही ये 10 भारतीय भाषाओं में समाचार देने लगा और इसके मासिक एक्टिव यूजरों की संख्या 1 करोड़ 80 लाख हो गई। फॉरेस्ट चेन के अनुसार उन्होने कस्बों और छोटे शहरों में व्यापक भ्रमण किया, आम लोगों से बातचीत की और उनकी जरूरतों को समझा। इसके बाद भारत के लिए अपना ऐप डिजाइन किया।
प्लेस्टोर के टॉप चीनी ऐप
चीनी कंपनियों ने भारत में इंटरनेट और स्मार्टफोन के तेज विस्तार को देखते हुये शुरू से ही काम किया था और नतीजा ये हुआ कि देखते देखते गूगल प्ले स्टोर में टॉप फ्री ऐप्स में चीनी कंपनी अलीबाबा का यूसी ब्राउज़र, बाइटडांस का टिकटॉक, वीगो वीडियो और शेयर इट के अलावा अन्य चीनी कम्पनियों के क्लब फैक्ट्री, क्वाई, मीतू, जेंडर, न्यूज़डॉग और यूसी न्यूज़ ने जगह बना ली।
किसके कितने यूजर
चीन की कंपनियों ने भारत के ऐप बाजार पर कब्जा करने के लिए भारी रकम भी खर्च की है। ये पैसा उपभोक्ताओं के लिए उनकी स्थानीय जरूरतों के अनुरूप ऐप डिजाइन करने पर खर्च किया गया। इसी का नतीजा है कि चीनी ऐप्स के उपभोक्ता हर महीने लाखों की तादाद में बढ़ते रहे हैं।
टिकटॉक – 61 करोड़
क्लब फैक्ट्री – 3.5 करोड़
हेलो – 4 करोड़
शेयर इट – 6 करोड़
यूसी ब्राउज़र – 13 करोड़
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चीन के ऐप और महाजनी का धंधा
भारत में सिर्फ मनोरंजन, शॉपिंग, न्यूज़ जैसी ऐप ही नहीं बल्कि चीन के ऐसे ऐप भी चल रहे हैं जो महाजनी का काम करते हैं। दरअसल चीन में लोगों को तत्काल लोन देने या महाजनी का धंधा करने वाले कई स्टार्टअप आ गए थे जो ऐप के जरिये इंस्टेंट लोन के सुविधा प्रदान करते थे। लेकिन महाजनों की तरह ऐसे ऐप चलाने वाले लोगों को फँसाने और रकम वसूलने के लिए तरह तरह के हथकंडे अपनाने लगे। नतीजतन चीन ने ऐसे ऐप पर प्रतिबंध लगा दिया। इसके बाद इन ऐप वालों ने भारत का रुख कर दिया और यहाँ महाजनी वाले ऐप लांच कर दिये। इनमें वी कैश और फिनअप सबसे आगे थे। ये ऐप दस हजार तक का लोन तत्काल देते हैं लेकिन पैसा वापसी में एक दिन का भी विलंब होने पर 300 गुना तक पेनाल्टी लगा दी जाती है।
2018 था टर्निंग पॉइंट
भारतीय स्मार्टफोनों को चीनी ऐप्स द्वारा 2018 में टेक ओवर कर लिया गया। दिसंबर 2017 को याद करें तो गूगल प्लेस्टोर में टॉप दस मोबाइल ऐप्स में चीनी ऐप मात्र दो और सबसे नीचे थे। लेकिन 2018 में टॉप दस में 5 ऐप चीनी थे। यही नहीं, 2017 में भारत में गूगल प्ले स्टोर में विभिन्न कैटेगरी के टॉप 100 ऐप में 18 चीनी ऐप थे जबकि 2018 में इनकी संख्या 44 हो गयी।
छोटे शहरों पर नजर
चीनी कंपनियों और डेवलपर्स के लिए एक ही मन्त्र रहा है - ग्रोथ चाहिए तो भारत को फतह करो। चीनी डेवलपर्स का टारगेट ग्रुप भारत के छोटे शहर और कस्बे के नए इंटरनेट यूजर्स रहे हैं। दरअसल इस टारगेट ग्रुप की पहचान सबसे पहले बंगलुरू में डेवलप किये गए ऐप शेयर चैट ने 2015 में की थी। लेकिन शेयर चैट की ग्रोथ भी चीनियों के विस्तार के बाद 2018-19 में ही हो सकी। टिकटॉक जून 2018 के बाद से भारत मे टॉप 5 में जगह बनाये हुए है। इसके 39 फीसदी यूजर भारत से हैं और मात्र 10 फीसदी अमेरिका से हैं। लेकिन 2018 में टिक टॉक के रेवेन्यू का 56 फीसदी अमेरिका से और मात्र 3 फीसदी भारत से था।
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