इस जस्टिस ने भगत सिंह को फांसी देने से किया था इनकार,दिया था इस्तीफा

Update: 2016-03-22 08:59 GMT

सहारनपुरः शहीद भगत सिंह की कई यादें सहारनपुर शहर से जुड़ी हुई है। अंग्रेजी फौज द्वारा पीछा करने पर भगत सिंह सहारनपुर के एक मंदिर में कई दिनों तक छिपे रहे। अंग्रेजी फौज के जाने के बाद शहीद भगत सिंह यहां से निकले थे। शहीद भगत सिंह को फांसी देने वाले अकेले जस्टिस आगा हैदर ने शहीद भगत सिंह को फांसी दिए जाने संबंधी दस्तावेज पर हस्ताक्षर करने से मना कर दिया था।

जस्टिस आग़ा हैदर ने दिया इस्तीफा

-8 अप्रैल 1929 को शहीद भगत सिंह ने अपने साथियों के साथ असेंबली हॉल में बम फेंका था।

-आज़ादी के लिए 'इंकलाब जिंदाबाद' का नारा लगाया तभी उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था।

-उन पर विशेष ट्रिब्यूनल द्वारा केस दर्ज किया गया था।

-इसे लाहौर षड्यंत्र केस (1929-1930) के रूप में जाना जाता है।

-सहारनपुर के निवासी जस्टिस आगा हैदर ट्रिब्यूनल में एकमात्र भारतीय सदस्य थे।

-ट्रिब्यूनल में सभी जज अंग्रेज़ थे।

-7 अक्टूबर1930 को भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी द्वारा मृत्युदण्ड की सजा सुनाई गई।

-ब्रिटिश हुकूमत के इस फैसले पर जस्टिस आगा हैदर को हस्ताक्षर करने के लिये कहा गया।

-जस्टिस आगा हैदर ने इससे इनकार कर दिया।

-अंग्रेज़ों का दबाव पड़ने पर जस्टिस हैदर ने देश की आज़ादी की ख़ातिर न्यायमूर्ति के पद से इस्तीफा दे दिया।

-अंग्रेज़ों ने न्यायाधीश शादी लाल से मृत्युदण्ड के आदेश पर हस्ताक्षर करवाया।

-23 मार्च 1931 को सेंट्रल जेल लाहौर में उन्हें फांसी पर लटका दिया गया।

सहारनपुर में रहे थे शहीद भगत सिंह

आजादी के आंदोलन के दौरान जब शहीद भगत सिंह के पीछे अंग्रेजी फौज लग गई तो भगत सिंह भाग कर सहारनपुर आ गए और यहां स्थित फुलवारी आश्रम के मंदिर की गुंबद में कई दिन तक छीपे रहे। अंग्रेजी फौज के जवानों ने जब पूरा आश्रम खंगाल लिया और उन्हें भगत सिंह नहीं मिले तो वह वापस लौट गए। अंग्रेजी सैनिकों के जाने के बाद शहीद भगत सिंह मंदिर की गुंबद से बाहर निकले, स्नान किया और लाहौर के लिए रवाना हो गए।

आजादी से जुड़ी घटनाओं को समेटे हुए हैं ये आश्रम

फुलवारी आश्रम के नाम के विख्यात आज भी यह स्मारक आजादी के आंदोलन से जुड़ी अनेक घटनाओं को अपने में समेटे हुए हैं। आजादी के आंदोलन के दौरान यहां पर आजादी के मतवालों ने कई सभाएं की और अंग्रेज सरकार के खिलाफ योजना बनाकर उन्हें अंजाम तक पहुंचाया।

क्या कहते हैं किरणजीत सिंह संधू

शहीद भगत सिंह के छोटे भाई स्वर्गीय कुलतार सिंह के बेटे किरणजीत सिंह संधू कहते हैं कि भगत की शहादत के समय उनके पिता की उम्र 10-12 वर्ष थी। इसी समय जब वे जेल में बंद भगत सिंह से मिलने गए तो उनकी हालत देख कुलतार की आंखों में आंसू आ गए। तब भगत सिंह ने उनसे कहा कि वे आंसू व्यर्थ बहाने के बजाए ऊर्जा बचाकर रखें क्योंकि उनके बलिदान के बाद क्रांति की मशाल जलाए रखने की जिम्मेदारी अगली पीढ़ी की होगी। इसी से प्रेरित कुलतार आजादी के आंदोलन में जेल गए और छह वर्ष की सजा काटी।

संधू परिवार को है फख्र

संधू परिवार के सदस्यों को फख्र है कि वे उस महान शख्सियत के परिवार में जन्मे, जिसे इस देश ने अपने दिलों में सम्मान दिया। वे चाहते हैं कि आने वाली पीढ़ियां अमर क्रांतिकारी भगत सिंह और उनकी शहादत को याद रखें। शहीद भगत सिंह से जुड़ी यादों के कई दुर्लभ दस्तावेज संधू परिवार की धरोहर बन चुके हैं। इनमें शहीद भगत सिंह के दुर्लभ चित्र और उनके पत्र शामिल हैं। संधू बताते हैं कि इनमें काफी रिकार्ड उनका परिवार पंजाब के नवांशहर और जालंधर के बीचोंबीच बसे शहीद भगत सिंह के पैतृक गांव खटकड़कलां में बने संग्रहालय को दे चुका है। जबकि अन्य दस्तावेज यहां उनके निवास पर बनी ‘शहीद गैलरी’ में संरक्षित हैं।

जेल में मंगाई लेनिन की पुस्तक

गुजरे दौर की ऐसी तमाम यादों का एक-एक दस्तावेज हर किसी को आज तक प्रेरित करता है। भगत सिंह, राजगुरु व सुखदेव की शहादत का मंजर कुछ ऐसा ही था, जब 23 मार्च 1931 को सुबह ही भगत सिंह का गुप्त संदेश उनके वकील प्राणनाथ मेहता को मिला-जैसे भी हो, लेनिन के नवप्रकाशित जीवन चरित्र की व्यवस्था तुरंत करें। प्राणनाथ किसी तरह पुस्तक खोजकर जेल की कोठरी में पहुंचे। एक संस्मरण में प्राणनाथ ने खुद अपने शब्दों में कहा था कि, मेरे कोठरी में पैर रखते ही उन्होंने अपने खास लहजे में कहा- आप वह पुस्तक ले आए?

मैंने किताब उन्हें थमा दी। वे बहुत प्रसन्न हुए।

प्राणनाथ- देश के लिए संदेश दीजिए।

भगत सिंह- साम्राज्यवाद मुर्दाबाद, इंकलाब जिंदाबाद!

प्रणनाथ- आज आप कैसा महसूस कर रहे हैं?

भगत सिंह- मैं बिल्कुल प्रसन्न हूं।

प्राणनाथ- आपकी अंतिम इच्छा क्या है?

भगत सिंह- यही कि फिर जन्म लूं और मातृभूमि की और अधिक सेवा करूं।

 

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