75 फीसदी लोग हुए पागल: कहीं आप भी तो नहीं हुए इसका शिकार, पढ़ें तुरंत ये रिपोर्ट

24 मार्च को देशव्यापी लॉकडाउन के बाद से आज तक देश पूरी तरह से अनलॉक नहीं हो पाया है। कोरोना को लेकर बदली स्थितियों की स्वीकार्यता को लेकर लोग अभी तक खुद को तैयार नहीं कर सके हैं।

Update:2020-10-29 16:43 IST
75 फीसदी लोग हुए पागल: कहीं आप भी तो नहीं हुए इसका शिकार, पढ़ें तुरंत ये रिपोर्ट

लखनऊ। वर्तमान समय में कोरोना को लेकर हर व्यक्ति डरा और सहमा हुआ है। तीन साल के बच्चे से लेकर 80 साल के बजुर्ग तक कोरोना को लेकर एक अजीब किस्म की दहशत से परेशान हैं। सरकार द्वारा शुरू किये गए ताजा कोरोना जांच अभियान से भी लोगों के कतराने की खबरें आ रही हैं। लोग जांच से बचना चाहते हैं। छत से कूद जा रहे हैं।

जनजागरूकता लाने में बुरी तरह विफल यूपी सरकार

इससे एक बात स्पष्ट हो रही है कि उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार कोरोना को लेकर जनजागरूकता लाने में बुरी तरह विफल रही है। 24 मार्च को देशव्यापी लॉकडाउन के बाद से आज तक देश पूरी तरह से अनलॉक नहीं हो पाया है। कोरोना को लेकर बदली स्थितियों की स्वीकार्यता को लेकर लोग अभी तक खुद को तैयार नहीं कर सके हैं।

नतीजतन 75 फीसदी आबादी कोविड-19 के खौफ की चपेट में है। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है लेकिन कोविड-19 ने मानव की इस मूल प्रवृत्ति पर आघात किया है। इस 75 फीसदी आबादी में बच्चों से लेकर बुजुर्ग तक शामिल हैं। जिसमें 25 फीसद बच्चे और किशोर हैं।

कोविड का सबसे अधिक असर मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ रहा है। प्रदेश के वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ. अजय तिवारी कहते हैं कि कोरोना को लेकर होने से व्यापक प्रचार और दुष्प्रचार से लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर सबसे खराब असर पड़ा है।

एक अध्ययन के मुताबिक 75 फीसदी लोग कई तरह के मानसिक बीमारियों और दबावों की गिरफ्त में हैं। जिसमें मनोवैज्ञानिक डिस्ट्रैस, डिप्रेशन, इनसेस्ट फीलिंग शामिल है।

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किशोरों में घर पर एकांत में बैठना, पबजी खेलना, COD टाइप क्रिमिनल गेम खेलना बढ़ गया। बच्चों और पेरेंट्स में तकरार बढ़ गई। बिहैवियर में चेंज आ गए। एग्रेशन बढ़ गया।

नर्सरी केजी के बच्चे भी मोबाइल की लत के शिकार

लॉकडाउन और सोशल डिस्टेंसिंग के लिए बच्चों को मोबाइल देना पेरेंट्स की मजबूरी थी लेकिन इसका सबसे खराब नतीजा ये हुआ कि तीन साल से नर्सरी केजी में जाने वाले बच्चे भी मोबाइल की लत के शिकार हो गए और उनका एग्रेशन बढ़ गया।

डॉ. अजय तिवारी का कहना है कि लॉकडाउन और कोरोना काल में सोशल डिस्टेंसिंग के चलते लोगों में निगेटिव एनर्जी बढ़ गई है। जिसका कई बार विध्वंसकारी रूप भी सामने आ जाता है। जैसे एक युवा व्यक्ति ने गुस्से में अपना 75 हजार का नया मोबाइल पटक कर तोड़ दिया।

मनोचिकित्सक का कहना है कोरोना काल में महिला मरीजों की संख्या में बहुत तेजी से इजाफा हुआ है। उनहोंने कहा कि महिलाएं कोविड काल में सफरर हैं। वह इमोशनल होती हैं। उनमें कन्वर्जन अधिक है। उन्हें दबाव में तमाम तरीके की बीमारियां खुद में महसूस होने लगी हैं। और इन बीमारियों के लक्षण महसूस करने लग जा रही हैं।

डाक्टर का कहना है कि 24 मार्च के बाद से सब कहीं अपराधों की बाढ़ आ गई है। पुलिस वालों से बात करने पर वह कहते हैं कि उनके पूरे कार्यकाल में इससे बुरा समय कभी नहीं गुजरा। हर थाने में अपराधों का ग्राफ बढ़ रहा है। मारपीट, घरेलू हिंसा, जघन्य अपराध, महिलाओं के प्रति हिंसा, निर्ममता, ये सब समाज में तेजी से बढ़ते मनोरोगों को दर्शा रहा है।

समाजविज्ञानियों का भी कहना है कि कोरोना को लेकर जो रिसर्च आ रही हैं उनसे ये प्रमाण मिल रहे हैं कि कोरोना से ठीक होने के बाद भी उनमें कुछ परेशानियां रह जाती हैं। जैसे कोरोना के शिकार लोगों के फेफड़ों का आकार बढ़ जाना। आगे चलकर ये जेनेटिक डिस्आर्डर भी पैदा कर सकता है।

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क्या करना चाहिए

डॉ. अजय तिवारी का कहना है कि सबसे पहले मेंटल हेल्थ पर ध्यान देने की जरूरत है। लोगों की काउंसलिंग की जरूरत है कि कोरोना कोई बीमारी नहीं हमारी जीवन पद्धति में बदलाव है। इसके लिए स्कूल कालेजों के अलावा आम आदमी को भी समझाए जाने की जरूरत है।

वह बताते हैं बनारस में कुछ बच्चों को काउंसर बना दिया गया। उनमें कुछ बच्चे हमारे सेंटर में आए और कहा कि हमें साइको काउंसर का कोर्स करा दीजिए हमारा काउंसर के रूप में चयन हुआ है। इन स्थितियों को सुधारना होगा।

दायरा घर तक सिमट गया है

वर्क फ्राम होम कर रहे लोग भी डिप्रेस्ड हो रहे हैं क्योंकि अब उनका दायरा घर तक सिमट गया है। जिस घर से व्यक्ति सामान्य दिनों में दस से 12 घंटे बाहर रहा करता था आज लगातार घर में रहकर वह छोटी छोटी बातों पर गौर कर रहा है। जिससे घरों में कलह बढ़ रही है। प्रेशर के चलते लोग आत्महत्या कर रहे हैं। आज सरकार के स्तर पर कोविड-19 को लेकर मानसिक स्वास्थ्य को दुरुस्त करने के लिए व्यापक स्तर पर जागरूकता अभियान चलाने की जरूरत है ताकि सामाजिक पारिवारिक विखंडन को रोका जा सके।

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