श्रीराम जन्मभूमि पर फैसले के समय ऐसी थी ग्रहों की स्थिति

श्रीराम जन्मभूमि पर सर्वोच्च न्यायालय ने आज जो फैसला सुनाया वह ज्योतिषीय दृष्टि को ध्यान में रख कर ही तय समय पर सुनाया गया।

Update:2019-11-09 17:48 IST

संजय तिवारी

लखनऊ: श्रीराम जन्मभूमि पर सर्वोच्च न्यायालय ने आज जो फैसला सुनाया वह ज्योतिषीय दृष्टि को ध्यान में रख कर ही तय समय पर सुनाया गया। शनिवार , शुक्लपक्ष द्वादशी को यदि फैसले के लिए चुना गया तो इसके पीछे सनातन संस्कृति की उस परम्परा को भी ध्यान में रखा गया जिसके आधार पर ही भारत में मंगल कार्य किये जाते हैं। भगवान् श्रीराम भगवान् विष्णु के ही स्वरुप हैं। भगवान् विष्णु अभी कल ही यानी एकादशी को जगे हैं। आज भगवान् के जागृत अवस्था का प्रथम सूर्य उदय हुआ। कल शुक्रवार था।

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आज शनिवार है। आज फैसले के साथ जो कुछ भी परिलक्षित हो रहा है वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सनातन की स्थापना की यात्रा का एक महत्वपूर्ण पड़ाव लगता है।

शनि सूर्य के पुत्र हैं और सनातन संस्कृति के लिए न्याय के ही देवता हैं

वैसे भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कार्यशैली को जो लोग थोड़ा समझते हैं , उन्हें पता है कि वह किसी भी कार्य के निर्णय या सम्पादन में ज्योतिषीय श्थितियो का पूरा सम्मान करते हैं। ग्रहों की किस अवस्था में कार्य करना है , यह वे जानते हैं और उस पर भरोसा करते हुए ही कार्य को आगे बढ़ाते हैं। अयोध्या के भूमिविवाद के निर्णय के लिए भी जो समय गया उसमे इस बात का पूरा ध्यान रखा गया।

अब ध्यान देने वाली बात है कि शनि सूर्य के पुत्र हैं और सनातन संस्कृति के लिए न्याय के ही देवता हैं। आज यानी जिस ज्योतिषीय योग में निर्णय सुनाया गया उस पर विशेष दृष्टि डालने की आवश्यकता है।

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9/11/2019 प्रातः 10:30 बजे, अयोध्या, धर्म का प्रतीक लग्नेश गुरु लग्न में ध्वजा के प्रतीक केतु और न्याय के प्रतीक शनि के साथ। धर्म भाव पंचम के स्वामी पंचमेश मंगल की पंचम पर स्वगृही दृष्टि। बुद्धिकारक बुध तथा साथ ही सूर्य की भी पंचम पर पूर्ण सप्तम दृष्टि, लग्नेश गुरु की पंचम दृष्टि। पराक्रमेश शनि की पराक्रम भाव पर तृतीय दृष्टि। पराक्रमेश शनि तथा धर्मेश पंचमेश मंगल की परस्पर पूर्ण दृष्टि।

पांच एकड़ भूमि मस्जिद के लिए देने की बात भी आयी

ग्रहस्थिति बहुत शुभ थी। मात्र अष्टमेश चंद्र का चतुर्थ भाव में होना और षष्ठेश शुक्र की छठे भाव पर पूर्ण स्वगृही दृष्टि चिंताजनक थी लेकिन इसका पूर्ण निर्णय पर कोई प्रभाव पड़ने की उम्मीद नहीं थी। इसी के कारण पांच एकड़ भूमि मस्जिद के लिए देने की बात भी आयी ।

आज यकीनन इतिहास बना है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वह मुहिम और आगे बढ़ी है जिसको सनातन की स्थापना की मुहिम के रूप में देखा जाता है। प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी जी कभी भी अयोध्या नहीं आये हैं। इस बात को लेकर लोग सवाल भी उठाते रहे हैं। अब उन लोगो को जवाब मिल गया होगा। नरेंद्र मोदी के संकल्प को समझना बहुत आसान नहीं है। यह उनके संकल्प का ही हिस्सा हो सकता है कि भगवान् श्रीराम की जन्मभूमि को मुक्त कराने के बाद ही उन्होंने श्री अयोध्या में प्रवेश का संकल्प ले रखा हो। अब वह बहुत जल्दी अयोध्या आ सकते हैं।

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आज तो गोस्वामी जी की यह पंक्तियाँ ही समीचीन लग रही हैं -

जय जय धुनि पूरी ब्रह्मांडा।

जय रघुवीर प्रबल भुजदंडा।।

बरसहिं सुमन देव मुनि बृन्दा।

जय कृपाल जय जयति मुकुंदा।।

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