रामलला ने स्वयं जीता है अपना मुकदमा: चंपत राय
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, अवध प्रान्त द्वारा लॉक डाउन के दौरान सोशल मीडिया के सकारात्मक प्रयोग द्वारा विगत कुछ दिनों में विभिन्न सामाजिक, शैक्षिक, पर्यावरण, कला- लोक कला से संबंधित विषयों पर फेसबुक लाइव के माध्यम से व्याख्यान का आयोजन किया जा रहा है।
लखनऊ: अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, अवध प्रान्त द्वारा लॉक डाउन के दौरान सोशल मीडिया के सकारात्मक प्रयोग द्वारा विगत कुछ दिनों में विभिन्न सामाजिक, शैक्षिक, पर्यावरण, कला- लोक कला से संबंधित विषयों पर फेसबुक लाइव के माध्यम से व्याख्यान का आयोजन किया जा रहा है।
श्री राम जन्मभूमि तीर्थ ट्रस्ट क्षेत्र के महासचिव व विहिप के अंतरराष्ट्रीय उपाध्यक्ष चंपत राय ने राम जन्मभूमि से जुङे पहलुओं को उजागर करते हुए कहा कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय के निर्णय के पश्चात रामजन्मभूमि से संबंधित केस की सुनवाई सर्वोच्च न्यायालय की 5 जजों की बेंच में शुरु हुई।
इस मामले की सुनवाई 40 दिनों तक निरंतर रूप से 170 घण्टे चली। जो कि सामान्य परिस्थितियों में नही होता है। निर्णय इसलिए ऐतिहासिक है क्योंकि सभी जजों ने आपसी सहमती से इस निर्णय को दिया।
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उन्होंने विवाद को बताते हुए कहा कि यह विवाद अयोध्या में राम कोट नाम के मुहल्ले में 14000 स्क्वायर फ़ीट के स्थान को लेकर था। हिन्दू इस जगह को रामजन्मभूमि मानते हैं और कहते हैं कि यहाँ एक मंदिर था लेकिन 1528 में बाबर ने इस मंदिर को तोड़कर उसी के मलबे से तीन गुम्बदों वाली मस्जिद बनवायी।
इसी विवाद को देखते हुए भारत सरकार व राष्ट्रपति ने 1993 में सर्वोच्च न्यायालय को चिट्ठी लिखते हुए कहा कि सर्वोच्च न्यायालय अध्ययन कर बताए कि जिस भूखण्ड पर विवाद है वहाँ कभी मंदिर था या नही था?
राष्ट्रपति चिट्ठी का संज्ञान लेते हुए 5 जजों की कमेटी बनी। वह मुकदमा 1993 में 12 महीने और 1994 में 10 महीने कुल मिलाकर 22 महीने चला किंतु इसके पश्चात भी भारत सरकार इस पशोपेश में उलझ गई कि मंदिर था या नही था।मंदिर को लेकर हजारों किताबें, आर्टिकल, यात्रा वृतांत साक्ष्य के रुप में न्यायालय में प्रस्तुत किये गये।
साथ ही उच्च न्यायालय के माध्यम से जमीन के नीचे फोटोग्राफी करने वाले कनाडाई विशेषज्ञों से जमीन के नीचे की फोटोग्राफी कराई गई। उन्होंने रिपोर्ट दी कि जमीन के नीचे 16 फ़ीट जाने पर एक ढांचा दिखाई देता है जो यह साबित करता है कि जमीन बंजर नही है। इसके पश्चात उच्च न्यायालय के आदेश पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा फोटोग्राफी के आधार पर खुदाई की गई।
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रामलला के लिए 4 मुकदमें लड़े जा रहे थे
इसके पश्चात उन्होंने जो रिपोर्ट दी उसमे यह स्पष्ट कहा गया कि यहाँ मंदिर था। जिसे आधार मानते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया। उन्होंने मुकदमें की बारीकियों को समझाने की कोशिस करते हुए कहा कि मुख्यरूप से राम जन्मभूमि के लिए 4 मुकदमें लड़ें जा रहे थे।
इन 4 वादियों में 3 हिन्दू पक्षकार व 1 मुस्लिम पक्षकार था। 1 हिन्दू पक्षकार 1950 का है, दूसरा 1959 और सबसे अंतिम हिन्दू पक्षकार 1989 का है। मुस्लिमों का केस 1962 का है।
सुप्रीम कोर्ट ने यह निर्णय भगवान के पक्ष में दिया है।भगवान के पक्ष में निर्णय होने का अर्थ है 1987 में जो मुकदमा दायर हुआ वह पक्ष जीत गया। 1962 का जो मुस्लिम पक्ष है सर्वोच्च न्यायालय ने भी उनके पक्ष को खारिज करते हुए कहा की इन्हें 5 एकड़ जमीन दी जाए।
इस पूरे मुकदमें में एक चीज ध्यान देने योग्य है कि कोर्ट ने माना है कि भगवान जीवित स्वरूप है और नाबालिग है इसलिए उनको पक्षकार माना गया है। इस मुकदमे को विश्व हिंदू परिषद या संघ ने नही जीता बल्कि प्रभु श्रीराम ने जीता है जिसे हम रामलला विराजमान कहते है।
जो बुद्धिमान कहते है कि इस स्थान पर कुछ और बनाकर विवाद खत्म कीजिये तो उनके लिए इस मुकदमे को इस तरह समझिए कि आप कही तीर्थ करने निकले और आपके जाने के बाद कोई आ कर आपके घर पर कब्जा कर लेता है।
वो आपसे ज्यादा बलशाली है आपको घर मे घुसने नही दे रहा है तो क्या आप घर छोड़ देंगे या प्रतिकार करेंगे। एक बात और जन्मभूमि कभी नही बदलती। यह स्वाभिमान का भी प्रतीक है।
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