बसपा में हो रहा नेताओं का अभाव, कैसे पार होगी विधानसभा चुनाव में नैया

बहुजन समाज पार्टी ने दो विधायकों लालजी वर्मा और रामअचल राजभर को बाहर का रास्ता दिखा दिया है।

Reporter :  Shreedhar Agnihotri
Published By :  Raghvendra Prasad Mishra
Update: 2021-06-03 16:24 GMT

बसपा सुप्रीमो मायावती, फाइल तस्वीर (फोटो साभार-सोशल मीडिया)

Bahujan Samaj Party News: बहुजन समाज पार्टी ने आज जब अपनी पार्टी के विधायकों लालजी वर्मा और रामअचल राजभर को बाहर का रास्ता दिखाया तो राजनीतिक क्षे़त्र में कोई अचरज नहीं हुआ। बस खास बात यह रही कि इस बार बसपा सुप्रीमो मायावती ने पार्टी विधानमंडल दल के नेता लालजी वर्मा को ही बाहर कर दिया। जबकि वह तो कई वर्षों से पार्टी विधानमंडल दल के नेता रहने के साथ ही बसपा सरकार में संसदीय कार्य मंत्री भी रह चुके हैं। साथ ही रामअचल राजभर भी लगातार विधायक होने के साथ ही प्रदेश अध्यक्ष भी रहे।

अब सवाल इस बात का है कि यूपी में जब विधानसभा चुनाव होने में कुछ ही महीने बाकी है तो फिर पार्टी नेताओं को हटाने के बाद बसपा चुनाव में कैसे अन्य दलों का मुकाबला कर सकेगी।

अभी कुछ ही महीनों पहले तो मायावती के सख्त रवैये से नाराज होकर विधानसभा के बजट सत्र के दो घंटे पहले बसपा के विधायकों असलम राइनी (भिनगा श्रावस्ती), असलम अली (ढोलाना हापुड), मुजतबा सिद्दीकी (प्रतापपुर-प्रयागराज), हाकिम लाल बिंद (प्रयागराज), हरगोविंद भार्गव (सिधौली-सीतापुर), सुषमा पटेल (मुंगरा-बादशाहपुर) और वंदना सिंह (सगड़ी-आजमगढ़) ने विधानसभा अध्यक्ष से मांग की कि उन्हें सदन में बसपा से अलग बैठाया जाए। यह सारे विधायक समाजवादी पार्टी के सम्पर्क में लगातार बने हैं। यहां यह भी बताना जरूरी है कि राज्यसभा चुनाव के दौरान सपा से सम्पर्क साधने के कारण मायावती इन विधायकों को निलम्बित कर एक पत्र विधानसभा अध्यक्ष को भेज चुकी हैं।

बहुजन समाज पार्टी में ऐसे कई मामले हैं जिनमें बसपा के कद्दावर नेताओं को बाहर किया जाता रहा है। भले ही वह पार्टी के लिए कितना ही उपयोगी क्यों न हो। बसपा की स्थापना से लेकर अबतक कई नेताओं ने अपना अलग दल बनाकर सियासी पारी खेली तो कई पार्टी से बाहर होने के बाद फिर बसपा में लौट आए। यहां तक कि पार्टी के कद्दावर नेता रामवीर उपाध्याय को भी बसपा सुप्रीमो मायावती बाहर का रास्ता दिखा चुकी हैं। कुछ ऐसा ही हाल स्वामी प्रसाद मौर्या का रहा।

अतीत पर गौर करें तो पार्टी की स्थापना के कुछ वर्षों बाद पार्टी संस्थापक कांशीराम के खासमखास रहे जंग बहादुर और राजबहादुर ने खुद पार्टी छोड़ दी थी। राजबहादुर ने बसपा (राजबहादुर) पार्टी बनाई और जंगबहादुर सपा में शामिल हो गए। यहीं नहीं मायावती के बढ़ते प्रभाव के चलते ही डॉ. मसूद ने पार्टी छोड़ी और बाद में राष्ट्रीय लोकतान्त्रिक पार्टी बनाई। इसके बाद वह सपा में शामिल हो गए।

प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाए गए डॉ. सोनेलाल पटेल को भी उसी दौरान वर्ष 1995 में बसपा से बाहर किया गया। तब उन्होंने अपना दल की स्थापना की। इसके बाद भी यह सिलसिला यहीं नहीं रुका और वर्ष 2001 में बरखूराम वर्मा और आरके चैधरी को बसपा से बाहर किया गया। आरके चौधरी ने राष्ट्रीय स्वाभिमान पार्टी बनाई।

वर्ष 2013 में वह फिर बसपा में वापस आ गये। लेकिन उनका बसपा में एक बार फिर जब मन नहीं लगा तो उन्होंने पार्टी छोड़ दी। इसी तरह ओमप्रकाश राजभर भी वर्ष 2002 में बसपा से बाहर हुए और फिर उन्होंने सुहेलदेव समाज पार्टी बनाई और वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव के बाद प्रदेश की सत्ता में शामिल हुए। इनके अलावा दददू प्रसाद, बाबू सिंह कुशवाहा, नसीमुददीन सिददीकी, इन्दरजीत सरोज भी बसपा से बाहर हुए।

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