BJP MP कमलेश को हुई सजा: 17 साल बाद कोर्ट का बड़ा फैसला, ट्रेन रोकने पर सजा

भाजपा सांसद कमलेश पासवान तब समाजवादी पार्टी से मानीराम विधानसभा से विधायक थे। पार्टी की तरफ से चल रहे आंदोलन में उन्होंने अपने इलाके में नकहा रेलवे स्टेशन से आगे ट्रेन रोकी थी।

Update: 2021-01-28 04:57 GMT
BJP MP कमलेश को हुई सजा: 17 साल बाद कोर्ट का बड़ा फैसला, ट्रेन रोकने पर सजा (PC: social media)

गोरखपुर: बांसगांव से भाजपा सांसद कमलेश पासवान, पूर्व पार्षद राजेश कुमार समेत उनके दर्जनों समर्थकों के खिलाफ एमपी एमएलए कोर्ट का पहला फैसला आया है। कोर्ट ने 18 दिसम्बर 2004 में गोरखपुर में रेलवे ट्रैक जाम करने के मामले में फैसला सुनाया है।

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भाजपा सांसद कमलेश पासवान तब समाजवादी पार्टी से मानीराम विधानसभा से विधायक थे। पार्टी की तरफ से चल रहे आंदोलन में उन्होंने अपने इलाके में नकहा रेलवे स्टेशन से आगे ट्रेन रोकी थी। करीब ढाई घंटे तक रोकी गई ट्रेन से मानीराम रूट पर ट्रेन के संचालन में काफी असर पड़ा था। कई गाड़ियों को निरस्त करना पड़ा था। 2004 में परिवाद के रूप में दर्ज इस केस में 17 साल बाद फैसला आया है।

17 साल पुराना है मामला

मामला 18 दिसंबर 2004 का है। तत्कालीन सपा विधायक कमलेश पासवान और नकहा के सभासद रहे राजेश कुमार यादव 50-60 की संख्या में लोगों को लेकर नकहा रेलवे स्टेशन से आगे किलोमीटर संख्या 04/01 पर पहुंच गए और ट्रेन संख्या 222 डाऊन नकहा जंगल स्टेशन से 9.33 बजे के बाद जैसे ही रवाना हुई उसे रोक दिया। कमलेश के समर्थक पटरियों पर लेट गए। सुबह 9.33 बजे से दोपहर 11.55 बजे तक ट्रेन रोकी गई थी। जिससे इस रूट की कई ट्रेनों को स्थगित करना पड़ा था। इस मामले में ट्रेन चालक और गार्ड ने संयुक्त रूप से आरपीएफ को तहरीर दी थी।

RPF ने दर्ज किया था केस

RPF ने नकहा जंगल पोस्ट पर 174 रेल अधिनियम के तहत केस दर्ज किया था। एसीजीएम रेलवे गोरखपुर कोर्ट में इसकी सुनवाई शुरू हुई। एसीजीएम रेलवे कोर्ट ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद प्रथमदृष्टया पत्रावली में साक्ष्य पाते हुए 14 सितम्बर 2011 को आरोप पर सुनवाई के लिए तैयार हुआ। कोर्ट की तरफ से अभियुक्तों को आरोप पढ़कर सुनाया और समझाया गया लेकिन अभियुक्तों ने दोषी होना स्वीकार नहीं किया और परीक्षण की मांग की।

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उधर, पिछले साल सांसद, विधायक के केस में जल्द से जल्द सुनवाई के लिए एमपी एमएलए कोर्ट बनाया गया। बीते 11 दिसम्बर 2020 को यह केस उसी कोर्ट में आया जिसमें आठ लोगों के बयान तथा दस्तावेज पर उपलब्ध साक्ष्य के आधार पर कोर्ट ने यह फैसला दिया। वरिष्ठ अधिवक्ता शैलेश त्रिपाठी ने बताया कि एमपी एमएलए कोर्ट का यह पहला फैसला आया है।

रिपोर्ट- पूर्णिमा श्रीवास्तव

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