लगी शर्त! #बजट तो बहुत देखे होंगे आपने, लेकिन इन शब्दों का अर्थ नहीं जानते होंगे आप

Update: 2019-07-05 04:58 GMT
बजट 2019

नई दिल्ली: देश की पहली महिला वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण आज सुबह 11 बजे लोकसभा में बजट पेश करने वाली हैं। यह बजट मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल का पहला बजट है। इस बार बजट में न्यू इंडिया की झलक देखने को मिल सकती है। हालांकि, न्यू इंडिया के सामने काफी चुनौतियां भी हैं।

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बजट आने से पहले जानते हैं इन शब्दों का अर्थ, जोकि बजट में प्रयोग होते हैं:

टैक्स (कर)

अपने खर्चों को पूरा करने के लिए सरकार टैक्स से आमदनी करती है. टैक्स अनिवार्य भुगतान होता है। हर टैक्सपेयर का सरकार को टैक्स देना जरुरी होता है। टैक्स दो तरह के होते हैं, प्रत्यक्ष कर और अप्रत्यक्ष कर।

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प्रत्यक्ष कर

टैक्स जिसे करदाता से सीधे तौर पर वसूला जाता है। इनकम टैक्स, कॉरपोरेट टैक्स, शेयर या दूसरी संपत्तियों से आय पर कर, प्रॉपर्टी टैक्स आदि डायरेक्ट टैक्स प्रत्यक्ष कर हैं।

अप्रत्यक्ष कर

एक्साइज ड्यूटी (देश में तैयार की गई वस्तुओं पर लगने वाला उत्पाद शुल्क), कस्टम ड्यूटी (इंपोर्ट-एक्सपोर्ट किए जाने वाले वस्तुओं पर लगने वाले सीमा शुल्क), सर्विस टैक्स आदि अप्रत्यक्ष कर हैं।

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उपकर और अधि‍भार

सेस या उपकर किसी टैक्स के साथ किसी विशेष उद्येश्य के लिए धन इकठ्ठा करने के लिए, टैक्स बेस यानी कर आधार पर ही लगाया जाता है।

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इसमें स्वच्छ भारत सेस, कृषि कल्याण सेस, स्वच्छ पर्यावरण सेस आदि शामिल हैं। अधिभार या सरचार्ज कर के ऊपर लगने वाला कर है, जिसकी गणना कर दायित्व के आधार पर की जाती है। इसलिए इसे इनकम टैक्स के ऊपर लगाया जाता है।

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आयकर (इनकम टैक्स)

आयकर आय के स्रोत जैसे कि आमदनी, निवेश और उसपर मिलने वाले ब्याज यानि इंटरेस्ट पर लगता है।

कॉरपोरेट टैक्स

कॉरपोरेट संस्थानों या फर्मों पर कॉरपोरेट टैक्स लगाया जाता है। इससे भी सरकार की आमदनी होती है।

उत्पाद शुल्क (एक्साइज ड्यूटी)

उत्पाद शुल्क यानि एक्साइज ड्यूटी को वैसे तो जीएसटी में शामिल कर दिया गया है। उत्पाद शुल्क वो होता है जो देह के अन्दर बनने वाले सभी उत्पादों पर लगता है।

सीमा शुल्क (कस्टम ड्यूटी)

देश में आयात या निर्यात की जाने वाली वस्तुओं पर सरकार सीमा शुल्क यानि कस्टम ड्यूटी लगता है

वित्तीय वर्ष

एक अप्रैल से देश में वित्तीय वर्ष की शुरुआत होती है, जोकि अगले साल के 31 मार्च तक चलता है।

शॉर्ट टर्म

कोई व्यक्ति जब शेयर बाजार में एक साल से कम समय के लिए पैसे लगा कर लाभ कमाता है तो उसे शॉर्ट-टर्म कैपिटल गेन यानि अल्पकालिक पूंजीगत लाभ कहते हैं।

लॉन्ग टर्म गेन

कोई व्यक्ति जब शेयर बाजार में पैसा एक साल से अधिक समय के लिए लगाता है तो उसे लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन यानि अल्पकालिक पूंजीगत लाभ कहते हैं।

सब्सिडी

आर्थिक असमानता दूर करने के लिए सरकार की ओर से आम लोगों को दिया जाने वाला आर्थिक लाभ सब्सिडी कहा जाता है।

सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी)

एक वित्तीय वर्ष में देश की सीमा के भीतर उत्पादित कुल वस्तुओं और सेवाओं का कुल जोड़ सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी होता है।

समेकित कोष

जिसमें सरकार की सारी राजस्व प्राप्तियां, सरकार द्वारा जारी किये गए ट्रेज़री बिल्स और वसूले गए ऋण आदि को शामिल किया जाता, उसे समेकित कोष कहते हैं।

आकस्मिक कोष

इस फंड में आकस्मिक व्यय को पूरा करने के लिए एक राशि रखी जाती है। इससे खर्चा ऐसे मुद्दों पर किया जाता है जिनको टाला नहीं जा सकता है लेकिन बाद में संसद से अनुमति लेकर संचित निधि से रुपया लेकर इसमें डाल दिया जाता है। इस फंड पर राज्यों में राज्यपाल और केंद्र के संबंध में राष्ट्रपति का अधिकार रहता है।

राजस्व प्राप्तियां

राजस्व प्राप्तियां वो प्राप्तियां हैं, जिनके लौटाने का दायित्व सरकार का नहीं हो या जिनके साथ किसी संपत्ति की बिक्री नही जुड़ी हों।

पूंजीगत प्राप्तियां

पूंजीगत प्राप्तियां वो प्राप्तियां हैं, जिसमें सरकार के देनदारी में बढ़त होती है और सरकार की परिसंपत्तियों में कमी होती है।

राजस्व व्यय

राजस्व व्यय में उन खर्चों को शामिल किया जाता है जिसमें सरकार की न तो उत्पादन क्षमता का विस्तार होता है और न ही भविष्य के लिए अतिरिक्त आय सृजित होती है।

पूंजीगत व्यय

सरकार के उन खर्चों को पूंजीगत व्यय के अंतर्गत रखा जाता है जिससे सरकार की संपत्तियों में बढ़त होती है। जैसे कि सड़क, स्कूल, अस्पताल, किसी पुराने भवन की मरम्मत आदि।

योजनागत व्यय

योजनागत व्यय उस व्यय कहते हैं जिससे उत्पादन परिसंपत्ति का निर्माण होता है। यह व्यय विभिन्न आर्थिक कल्याणकारी योजनाओं से सम्बंधित होता है, जैसे स्कूल, सड़क, हॉस्प‍िटल का निर्माण आदि।

गैर योजनागत व्यय

ऐसा सार्वजनिक व्यय जिससे कि कोई विकास का काम नहीं होता है। गैर योजनागत व्यय की श्रेणी में गिना जाता है। जैसे रक्षा व्यय, पेंशन, महंगाई भत्ता, बाढ़, सूखा, ओला वृष्टि आदि पर किया गया खर्च आदि।

राजकोषीय घाटा

राजकोषीय घाटा तब होता है जब सरकार का खर्च उसकी कुल सालाना आमदनी के मुकाबले अधिक होता है।

राजकोषीय नीति

यह एक ऐसी नीति होती है कि जो कि सरकार की आय, सार्वजनिक व्यय (रक्षा, स्वास्थ्य, शिक्षा, बिजली, सड़क आदि), टैक्स की दरों (प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष), सार्वजनिक ऋण, घाटे की वित्त व्यवस्था से संबंधित होती है।

बजट घाटा

बजटरी घाटा = कुल प्राप्ति – कुल व्यय

जब कुल प्राप्ति से कुल व्यय घटाया जाता है, तब पता चलता है कि सरकार को बजट का घाटा कितना हुआ है।

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