स्वाति प्रकाश
लखनऊ। देश में लगातार सिजेरियन ऑपरेशन बढ़ते जा रहे हैं। नेशनल फॅमिली हेल्थ सर्वे के मुताबिक पिछले 2 साल में देश में सिजेेरियन डिलीवरी 8 फीसदी से बढ़कर 17 .2 फीसदी हो गई है। निजी अस्पतालों में इस तरह से प्रसव का कुछ ज्यादा ही जोर है। हेल्थ सर्वे (एनएफएचएस -4) के मुताबिक निजी अस्पतालों में 74 .9 फीसदी सिजेेरियन ऑपरेशन हुए हैं। इसी सर्वे के मुताबिक तमिलनाडु में 34 फीसदी, पुडुचेरी में 34 फीसदी, केरल में 36 फीसदी, आंध्र प्रदेश में 40 फीसदी, महाराष्ट्र में 50 फीसदी और तेलंगाना में 58 फीसदी डिलिवरी सिजेेरियन से होती है। हैरत की बात है कि डॉक्टर इस स्थिति के लिए गर्भवती महिलाओं और उनके परिवार वालों को ही जिम्मेदार ठहराते हैं। डाक्टरों का तर्क है कि प्रसूता के मन में डर और रिस्क न उठाने की प्रवृत्ति जिम्मेदार है।
क्या है वजह
मैटर्नल एन्ड न्यूबॉर्न हेल्थ प्रोग्राम की इंडिया कंट्री कोऑर्डिनेटर मीनाक्षी गौतम की एक स्टडी के मुताबिक दक्षिण भारत के राज्यों में सिजेरियन के बढ़ते मामलों का एक खास कारण है कि वहां मेडिकल कॉलेजों की अधिकता है। एक शहर में 8 से 10 मेडिकल कॉलेज होने के कारण नए डॉक्टरों की संख्या बहुत ज्यादा है। इनकी मेडिकल एजुकेशन कॉस्ट बहुत ज्यादा होती है। पढ़ाई पर खर्च हुए इन पैसों को डॉक्टर मरीजों से वसूलते हैं। बढ़ते सिजेरियन ऑपरेशन का भी यही कारण है।
यूपी में तेजी से बढ़ रहे सिजेरियन के केस
उत्तर प्रदेश में भी हालात कुछ खास अलग नहीं हैं। लखनऊ के क्वीन मैरी हॉस्पिटल की डॉक्टर रेखा वर्मा बताती हैं कि उनके अस्पताल में अब तो सिजेरियन के केस 40 प्रतिशत होते हैं। दो साल पहले तक यह आंकड़ा 5 से 10 प्रतिशत था। डॉ. वर्मा के अनुसार उनके यहां रेफर केस में सिजेरियन के मामले ज्यादा आते हैं जबकि उनके रेग्युलर मरीजों में यह केवल 10 प्रतिशत है। झलकारीबाई अस्पताल की सीएमएस डॉ सुधा वर्मा के अनुसार, उनके अस्पताल में पिछले एक साल में सिजेरियन के मामले बढ़ रहे हैं। पहले 10 प्रतिशत से कम केस में सिजेरियन होता था, अब यह बढ़कर 30 प्रतिशत के पार हो चुका है। इनमें से कुछ महिलाओं को प्रेग्नेंसी में दिक्कत के कारण सी सेक्शन करवाना पड़ता है तो कुछ लेबर पेन के डर से खुद ऑपरेशन करवाती हैं।
डिलिवरी का डर
डफरिन हॉस्पिटल की सीएमएस डॉ. नीरा जैन के मुताबिक उनके अस्पताल में सिजेरियन के मामले पहले के मुताबिक काफी बढ़े हैं। पहले ये 5 प्रतिशत से भी कम था, लेकिन आज यह आंकड़ा 30 प्रतिशत के ऊपर पहुंच चुका है। सरकारी अस्पताल होने के बाद भी उनके अस्पताल में कुछ महिलाएं यह कहकर भर्ती होती हैं कि उन्हें ऑपरेशन करवाना है क्योंकि वह लेबर पेन नहीं झेल सकतीं। इसके पीछे उनके पास अजीब कारण होते हैं, जैसे उनका शरीर कमजोर है या फिर उनकी वैजाइना का आकार बिगड़ जाएगा। कुछ को लगता है कि नॉर्मल डिलिवरी के दौरान उन्हें जान का जोखिम हो सकता है, थोड़ा कॉम्प्लिकेशन में भी महिलाएं और परिवारवाले रिस्क लेने से डरते हैं। ऐसे में उनकी काउंसलिंग करके उन्हें समझाना पड़ता है कि नॉर्मल डिलिवरी मां और बच्चे दोनों के स्वास्थ्य के लिए बेहतर है जबतक कोई बड़ा रिस्क न हो हम ऑपरेशन नहीं करते। डॉ. नीरा जैन के मुताबिक उनके अस्पताल में 70 प्रतिशत डिलिवरी नॉर्मल होती हैं।
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सिजेरियन डिलिवरी के नुकसान
डफरिन हॉस्पिटल की डॉ. लिली के अनुसार सिजेरियन डिलिवरी के बाद दूसरे बच्चे के जन्म की प्रक्रिया में कई तरह की जटिलताएं पैदा हो सकती हैं। शोध इस बात को प्रमाणित कर चुके हैं कि सिजेरियन के जरिए 39 हफ्तों से पैदा हुए बच्चों को सांस संबंधी तकलीफ होने की आशंका सामान्य रूप से जन्म लेने वाले बच्चों की तुलना में ज्यादा होती है। नॉर्मल डिलिवरी से बच्चे को एम्निओटिक फ्लूइड की सुरक्षा मिलती है, जिससे उसे पीलिया और हाइपोथर्मिया का खतरा कम होता है। वहीं सी सेक्शन से पैदा हुए बच्चे को बीमारियों का खतरा ज्यादा होता है। सी-सेक्शन करवाने वाली महिलाओं को सामान्य डिलिवरी करवाने वाली महिलाओं के मुकाबले इंफेक्शन होने का खतरा ज्यादा होता है। उन्हेंा अधिक रक्त बहने, रक्त के थके जमने, पोस्ट पार्टम दर्द, अधिक समय तक अस्पताल में रहना और डिलिवरी के बाद उबरने में अधिक समय लगना, जैसी परेशानियां हो सकती हैं।
कितना आता है खर्च
लखनऊ के सरकारी अस्पताल में नॉर्मल डिलिवरी 500 से 600 रुपए में हो जाती है जबकि सिजेरियन में 2000 से 3000 रुपए तक का खर्च आता है। प्राइवेट अस्पताल में सिजेरियन का खर्च करीब 30000 से 40000 रुपए तक आता है।
क्या है प्राइवेट अस्पतालों की राय
जावित्री हॉस्पिटल की डायरेक्टर डॉ. मंजुल के मुताबिक यह आरोप पूरी तरह गलत है कि प्राइवेट अस्पताल पैसे कमाने के लिए सिजेरियन करते हैं। अक्सर महिलाओं में मेडिकल जटिलता होती है जिसके चलते नॉर्मल डिलिवरी सम्भव नहीं हो पाती। ऐसे में प्रसूता को सी सेक्शन की जरूरत पड़ती है।
किरण हॉस्पिटल के डॉ. पीयूष अवस्थी के मुताबिक मेडिको लीगल केसेज के चलते डॉक्टर्स एक खौफ में रहते हैं। वे जोखिम नहीं लेना चाहते। वे हर चीज के बारे में मरीज को आगाह करते हैं और मरीज डरकर सिजेरियन का फैसला ले लेते हैं। कभी कभी परिवार के लोग किसी खास तारीख पर बच्चे का जन्म चाहते हैं, ऐसे में वह लेबर पेन से पहले ही ऑपरेशन करने को कहते हैं। डॉ. पीयूष ने बताया कि उनके यहां 70 प्रतिशत डिलिवरी सी सेक्शन से होती है। इसकी वजह बताते हुए वह कहते हैं कि अक्सर पहले से बिगड़े हुए मामले आते हैं। उनके यहाँ आने वाले 80 से 90 प्रतिशत केस में माँ और बच्चे को किसी तरह का खतरा होता है।
2006 से 2016 तक भारत में सिजेरियन प्रसव का प्रतिशत दोगुना हुआ है। यह जानकारी द लांसेट द्वारा जारी रिपोर्ट में सामने आई है। 9 फीसदी से बढ़कर यह 18.5 फीसदी पहुंच गया है। यह वृद्धि सी-सेक्शन डिलीवरी में वैश्विक वृद्धि ( 21 फीसदी ) के साथ मेल खाती है। रिपोर्ट में कहा गया है कि यह पैटर्न चिंताजनक है। सालाना दुनिया भर में 64 लाख अनावश्यक सिजेरिअन प्रसव में से 50 फीसदी ब्राजिल और चीन में हुए हैं. भारत में सबसे ज्यादा सी-सेक्शन दर ( 98 फीसदी ) की सूचना चंडीगढ़ से मिली है. दिल्ली में, प्रतिशत 67.83 फीसदी था। लैंसेट रिपोर्ट के मुताबिक, 6.1 फीसदी पर, दक्षिण एशिया ने पिछले पंद्रह वर्षों में सिजेरिअन प्रसव दरों में सबसे तेजी से वृद्धि देखी है। हालांकि, उपमहाद्वीप में, भारत की बांग्लादेश (30.7 फीसदी) और श्रीलंका (30.5 फीसदी) की तुलना में कम दरें हैं, लेकिन नेपाल (9.6 फीसदी) और पाकिस्तान (15.9 फीसदी) से अधिक दरें हैं।