कांग्रेस को प्रियंका से अब भी करिश्मे की उम्मीद, बन रही रणनीत

Update:2019-06-21 12:23 IST

धनंजय सिंह

लखनऊ: कांग्रेस की हालत देख कर सियासी हलकों में एक सवाल बहुत तेजी से उठ रहा है कि क्या कांग्रेस अब कभी नहीं उठ पाएगी? कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी जिस तरह से अध्यक्ष पद छोडऩे की ठाने बैठे हैं उससे यह सवाल भी उठ रहा है कि यदि वह राजी नहीं हुए तो गांधी परिवार से कांग्रेस की सियासी बागडोर संहालने के लिए आगे कौन आएगा। वैसे चुनावी हार के बाद हताश कांग्रेसियों को अब भी प्रियंका से उम्मीदें हैं। इंदिरा युग को याद करते हुए काफी कांग्रेसी याद करते हैं कि आपातकाल के बाद जब चुनाव हुए तो पार्टी का पूरे प्रदेश में सूपड़ा साफ हो गया था, लेकिन इंदिरा गांधी ने पुनर्वापसी करते हुए 1980 में फिर सत्ता हासिल की थी।

इस बार भी हालात 1977 जैसे ही दिख रहे हैं। 1980 के चुनाव में ही इंदिरा गांधी आयरन लेडी बनकर उभरी थीं। लोग तो कांग्रेस का असली नाम भूलकर इंदिरा कांग्रेस कहने लगे थे। हाल के घटनाक्रम पर गौर करें तो साफ हो जाएगा कि कांग्रेस प्रियंका गांधी वाड्रा को आगे लाकर लड़ाई लडऩे की तैयारी में है जिसकी शुरुआत यूपी से होने की संभावना है।

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प्रियंका ने पिछले दिनों मुखर होकर जिस तरह से कांग्रेस की पराजय की समीक्षा की है उससे इस बात को बल मिल रहा है कि वह दूसरी आयरन लेडी की भूमिका में आने को तैयार हैं। कांग्रेस आलाकमान को भी लग रहा है कि प्रियंका गांधी कुछ करिश्मा कर सकती हैं। यही कारण है कि हाईकमान प्रियंका गांधी को पूरे प्रदेश की कमान सौंपकर फिर से 1980 वाली कांग्रेस की स्थिति लाने की कोशिश में है।

राहुल की हार पर हो रहा मंथन

अमेठी सीट गंवाने के बाद प्रियंका गांधी ने यूपी के संगठन को मथना शुरू कर दिया है। यूपी में लगातार घट रहे मत प्रतिशत और सीटों की संख्या से घबराई कांग्रेस अब एक-एक बिंदु पर विचार कर उस पर आगे की रणनीति बनाने के मूड में है। उसके इस मंथन का प्रमुख कारण अमेठी में राहुल गांधी का हार जाना और रायबरेली में सोनिया गांधी का कम अंतर से जीतना प्रमुख है।

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अब कांग्रेस की महासचिव को लगने लगा है कि यदि हालात यही रहे तो इस बार भाई राहुल गांधी ने सीट गंवाई तो अगली बार मां सोनिया गांधी की सीट भी हाथ से निकल जाएगी। कांग्रेस के विश्वस्त सूत्रों के अनुसार प्रियंका गांधी 80 की तर्ज पर यूपी में कांग्रेस को संजीवनी देने के लिए जल्द ही प्रदेश की योगी सरकार के खिलाफ सडक़ों पर उतरने जा रही हैं।

प्रियंका के चेहरे पर दांव लगाएगी कांग्रेस

कांग्रेस को लग रहा है कि लोकसभा चुनाव में प्रियंका गांधी वाड्रा को पूर्वी उत्तर प्रदेश का प्रभार देने में देरी के कारण पार्टी को वह संजीवनी नहीं मिल पाई जिसकी उसे दरकार थी। इसी का असर यह हुआ कि कांग्रेस का मत प्रतिशत पिछले चुनाव से भी कम हो गया क्योंकि प्रियंका को काम करने का वक्त ही नहीं मिला। इसी कारण कांग्रेस यूपी के विधानसभा चुनाव के मद्देनजर प्रियंका गांधी को अभी से ही पूरी यूपी को मथने के लिए आगे लाने के मूड में आ गयी है। अब तक राहुल गांधी को आगे कर चुनावी समर में कूद रही कांग्रेस ने यूपी के अगले विधानसभा चुनाव में उनकी बहन प्रियंका गांधी वाड्रा के चेहरे पर दांव लगाने का फैसला किया है। पिछले दिनों रायबरेली में हुए मंथन में तय हुआ कि यूपी में 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव में प्रियंका को ही आगे कर कांग्रेस मैदान में उतरेगी। कांग्रेसियों ने सोनिया की मौजूदगी में हुई बैठक में कहा कि राहुल ही ज्यादातर मोर्चा संभाले रहे। प्रियंका कुछ जगहों पर ही गईं और राहुल के मुकाबले कम ही जनसभाएं कीं। ऐसे में अगर प्रियंका खुद मैदान में अकेले दम पर उतरें और आक्रामक प्रचार करें तो इसका वोटरों पर जबरदस्त असर पडऩे की उम्मीद है। इसके बाद ही सैद्धांतिक रूप से तय हुआ कि प्रियंका के चेहरे को पहले 2022 में यूपी में ट्राई किया जाएगा। ऐसे में यह भी साफ है कि प्रियंका अब महज पूर्वी यूपी की प्रभारी महासचिव नहीं रहेंगी और पूरी तरह यूपी की कमान वो संभाल सकती हैं।

रणनीति बनाने में जुटी पार्टी

2019 के लोकसभा चुनावों ने संदेश दिया है कि यूपी में कांग्रेस के लिए एक राजनीतिक स्थान है और अब पार्टी के प्रदर्शन को ध्यान में रखते हुए पूरी रणनीति बनाई जा रही है। जवाबदेही के साथ जिम्मेदारी तय की जाएगी और प्रियंका खुद उत्तर प्रदेश में पार्टी नेताओं, कार्यकर्ताओं के प्रदर्शन की निगरानी करेंगी। प्रियंका गांधी 2019 लोकसभा के उम्मीदवारों और महिला कांग्रेस, युवा कांग्रेस, सेवादल के लोगों से मिलेंगी। साथ ही कांग्रेस के पुराने निष्क्रिय पड़े कार्यकर्ताओं से संपर्क किया जाएगा। मिशन 2022 की तैयारी 10 दिन पहले शुरू हो गई थी, लेकिन अब इसे रायबरेली से औपचारिक रूप से शुरू किया जा चुका है। प्रियंका गांधी ने यूपी के पदाधिकारियों और जिले के नेताओं को दिल्ली में अपने आवास पर बुलाकर मिलना शुरू कर दिया है। उस क्षेत्र और जिले या बूथ स्तर पर क्या किया जाए, इस बाबत लोगों से सुझाव मांगा जा रहा है।

पिछले दिनों रायबरेली में जब सोनिया गांधी और प्रियंका वाड्रा पहुंची तो सोनिया तो नरम रहीं, लेकिन प्रियंका का रुख काफी कडक़ था। वे यही संदेश देना चाहती थीं कि अब पदाधिकारियों की मठाधीशी नहीं चलेगी। इसका कारण था, 2014 के लोकसभा चुनाव में 3,52,713 मत से जीत दर्ज करने वाली सोनिया गांधी 2019 के लोकसभा चुनाव में मात्र 1,67,178 वोट से ही जीत दर्ज कर सकीं। भाजपा उम्मीदवार दिनेश प्रताप सिंह ने जबरदस्त टक्कर दी, जो कभी उनके सबसे खास हुआ करते थे। सोनिया को जहां इस बार 5,34,918 मत मिले, वहीं दिनेश प्रताप सिंह को 3,67,740 मत मिले, जबकि 2014 में सोनिया को 5,26,434 मत मिले थे, जबकि दूसरे स्थान पर रहने वाले भाजपा के अजय अग्रवाल को मात्र 1,73,721 मत मिले थे।

सोनिया की जीत के बाद भी बढ़ी धडक़न

यदि रायबरेली में विधानसभावार सोनिया गांधी और दिनेश प्रताप सिंह के मतों को देखें तो हरचंदपुर और बछरावां में तो वे सोनिया के काफी नजदीक रहे। सोनिया गांधी को हरचंदपुर में जहां 98131 मत मिले, वहीं दिनेश को 72008 मत मिले। बछरावां में सोनिया गांधी को 101221 मत तो दिनेश को 77166 मत मिले। सदर में दिनेश प्रताप सिंह काफी ज्यादा अंतर से मात खाए। यहां वे 61405 मत से पीछे हो गये। सदर में जहां सोनिया गांधी को 123042 मत मिले, वहीं दिनेश प्रताप सिंह को 61637 मत ही मिल पाए।

मत प्रतिशत में आई काफी गिरावट

यदि पूरे यूपी में कांग्रेस के प्रदर्शन को देखें तो 2009 में 18.2 प्रतिशत मत पाकर 21 सीटों पर कब्जा जमाने वाली कांग्रेस 2019 में 6.31 प्रतिशत पाकर मात्र एक सीट पर सिमट गयी। यदि 2014 की स्थिति देखें तो उस समय भी कांग्रेस को 7.53 प्रतिशत मत मिले थे और अमेठी व रायबरेली दो सीटें उसके हाथ लगी थीं। 2019 में यह तब स्थिति थी, जब कांग्रेस को पूरी उम्मीद थी कि प्रियंका वाड्रा कांग्रेस में जान फूंकेंगी और 2014 की अपेक्षा कांग्रेस को यूपी में बढ़त भी मिलेगी। प्रियंका ने नाव यात्रा से लेकर रोड-शो के माध्यम से बहुत हद तक कांग्रेस में जान फूंकने की कोशिश भी की, लेकिन कांग्रेस को अपने अध्यक्ष की लोकसभा सीट खोने के साथ ही मत प्रतिशत में भी गिरावट देखना पड़ी।

दिनेश प्रताप को फिर पाले में करने की कोशिश

रायबरेली और अमेठी राजनीतिक जानकारों की मानें तो कांग्रेस दिनेश प्रताप सिंह को फिर अपने पाले में लाने की कोशिश कर सकती है। इस पर भी कांग्रेस के दिग्गज अभी से विचार कर रहे हैं। उस समय भी कांग्रेस ने डर कर ही संजय सिंह को कांग्रेस में मिलाया था और आज तक कांग्रेस संजय सिंह को काफी तवज्जो देती है। रायबरेली और अमेठी में हर वक्त यह ध्यान देती है कि कोई विपक्षी मजबूत होने की कोशिश कर रहा हो तो उसे अपने पाले में कर लिया जाए। इस तरह के और कई उदाहरण हैं। उसी तरह दिनेश प्रताप सिंह के बढ़ते कद को देखकर भी कांग्रेस डरी हुई है और उन्हें पुन: कांग्रेस में करने का प्रयास अंदरखाने चल रहा है।

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