कोरोना इफेक्ट : सिर से पाँव तक बर्बादी

एक डाक्टर ने अपने अस्पताल की बीस बेड वाली इंटेन्सिव केयर यूनिट का आँखों देखा हाल बताया है जो दिल दहला देने वाला है। इस डाक्टर ने बयां किया है उसने देखा कि कोरोना वायरस किस मरीजों के सिर से पाँव तक हर अंग को जकड़ कर नष्ट कर देता है।

Update:2020-04-24 23:46 IST

लखनऊ एक डाक्टर ने अपने अस्पताल की बीस बेड वाली इंटेन्सिव केयर यूनिट का आँखों देखा हाल बताया है जो दिल दहला देने वाला है। इस डाक्टर ने बयां किया है उसने देखा कि कोरोना वायरस किस मरीजों के सिर से पाँव तक हर अंग को जकड़ कर नष्ट कर देता है। डॉक्टर जोशुआ डेन्सन ने बताया है कि उसने देखा कि इस यूनिट में किसी मरीज को दौरे पद रहे थे, कई की सांस नहीं आ रही थी, काइयों की किडनी काम नहीं कर रही थी। एक युवती का हार फेल हो गया था। इन सब मरीजों में एक समान बात थी – ये सब कोरोना संक्रमण से ग्रस्त थे।

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दुनिया भर के डाक्टर, रिसर्चर, पैथोलोजिस्ट ये समझने की कोशिश कर रहे हैं कि आखिर कोरोना वायरस पूरे शरीर में तबाही क्यों मचा देता है। वायरस के लिए फेफड़े ग्राउंड ज़ीरो हैं लेकिन उसकी पहुँच हृदय, किडनी, आंत, ब्रेन और खून की नलियों तक को बर्बाद कर देती है। विश्वप्रसिद्ध येल यूनिवर्सिटी के कार्डिओलोजिस्ट हार्लन क्रुम्होल्ज़ का कहना है कि कोविड-19 बीमारी शरीर में किसी भी चीज़ पर हमला कर सकती है। इसकी आक्रामकता जबर्दस्त और हैरतअंगेज है। कोरोना वायरस और इससे उत्पन्न बीमारी के बारे में हर हफ्ते एक हजार से ज्यादा रिसर्च पेपर ऑनलाइन प्रकाशित हो रहे हैं लेकिन अभी तक तस्वीर साफ नहीं हुई है कि ये वायरस इस तरीके से क्यों बर्ताव कर रहा है।

अनुत्तरित सवाल

- ऐसा क्या है कि मामूली लक्षण वाले केस ब्लड क्लौटिंग के कारण देखते देखते जानलेवा स्थिति में पहुँच जाते है?

- अचानक शरीर का इम्यून सिस्टम बेहद आक्रामक तरीके से क्यों काम करने लगता है?

- जिन मरीजों में सांस की तकलीफ नहीं है उनमें भी ऑक्सिजन का लेवल बहुत नीचे क्यों पाया जा रहा है?

 

संक्रमण की शुरुआत

जब कोई संक्रमित इनसान वायरस से सने ड्रोपलेट्स बाहर निकलता है या किसी इनसान में ऐसे ड्रोपलेट्स भीतर चले जाते हैं तो कोरोना वायरस नाक और गले में प्रवेश कर जाता है। वायरस को नाक की भीतरी परत में अपना घर बनाने की जगह मिल जाती है। फिर ये वायरस कोशिकाओं में चले जाते हैं और वहाँ से इनकी आबादी बढ़नी शुरू हो जाती है। जब वायरस मल्टीपलाई करना शुरू करता है तब संक्रमित व्यक्ति से बड़ी मात्रा में ये वायरस बाहर निकलते हैं। ऐसा संक्रमण के पहले एक हफ्ते के दौरान होता है। इस दौरान कोई लक्षण आ सकते हैं और नहीं भी आते। इस शुरुआती दौर में अगर इम्यून सिस्टम ने वायरस को पीट कर भगा नहीं दिया तो वायरस सांस की नली से होता हुआ फेफड़े के जाल में चला जाता है और अंत में हवा की थैलियों में जम कर बैठ जाता है। यहाँ निमोनिया का गंभीर संकट बन जाता है और सांस नहीं आती है। ये फेफड़ों पर वायरस का प्रकोप है।

हृदय पर हमला

कई अध्ययनों से पता चला है कि कोरोना वायरस से ग्रस्त कई मरीजों में हार्ट अटैक जैसे लक्षण आते हैं। हृदय खून पंप नहीं पाता, हृदय की मांसपेशियाँ कमजोर पड़ जाती हैं। हृदय सूज जाता है। वायरस हृदय पर कैसे हमलाकरता है ये अभी तक रहस्य है। ‘थ्रोम्बोसिस रिसर्च’ में प्रकाशित एक स्टडी में बताया गया कि नीदरलैंड में 184 कोरोना मरीजों में से 38 फीसदी में असामान्य रूप से खून के थक्के बन गए थे। शरीर में खून के थक्के विखंडित हो जाते हैं और फेफड़ों में चले जाते हैं। इससे धमनियां ब्लॉक हो जाती हैं और मौत हो सकती है। कोरोना के मरीजों में ऐसा हुआ भी। धमनियों से खून के थक्के मस्तिष्क में भी चले जाते हैं जिससे स्ट्रोक पड़ जाता है। कोलम्बिया यूनिवर्सिटी मेडिकल सेंटर के शोधकर्ताओं ने पाया कि कोरोना के मरीजों में खून थे ठाके के अंश मिलना बहुत कॉमन है। और यही मौतों का बड़ा कारण बनता है। इसके अलावा कोरोना वायरस संक्रमण से खून की पतली नलियाँ सिकुड़ने का भी पता चला है जिससे उँगलियों और पैर के अँगूठों में सूजन, दर्द, सड़न जैसी स्थिति बन जाती है।

बड़े रिस्क फैक्टर डाईबिटीज़, मोटापा, उम्र और हाइपरटेंशन

कोरोना के बहुत से मरीजों में देखा गया है कि उनको सांस लेने में दिक्कत नहीं थी लेकिन शरीर का ऑक्सिजन लेवल बहुत नीचे था। अनुमान है कि कोरोना वायरस ब्लड प्रेशर को नियमित करने वाले हार्मोन्स के संतुलन को बिगाड़ देता है। स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ मेडिसिन के डाक्टर जोसेफ लेविट का कहना है कि ऐसा होने पर

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आक्सीजन का व्शोशन नहीं हो पाता।

हॉस्पिटल ऑफ यूनिवर्सिटी ऑफ पेंसिल्वानिया की डाक्टर नीलम मंगलमूर्ती का कहना है कि कोरोना वायरस खून की नलियों को टारगेट करता है इसीलिए जिन लोगों के खून नलियाँ डाइबिटीज़ या हाई ब्लड प्रेशर के कारण पहले से क्षतिग्रस्त हैं उनमें कोरोना का कहर ज्यादा होता है। अमेरिका के 14 राज्यों में अस्पतालों में भर्ती कोरोना के मरीजों पर हुये अध्ययन से पता चला है कि इनमें से एक तिहाई को फेफड़ों की पुरानी बीमारी थी और इतने ही लोगों को डाईबिटीज़ थी। आधे मरीज तो पहले से हाई ब्लड प्रेशर से पीड़ित थे। डाक्टर मंगलमूर्ती इस बात पर हैरानी जताती हैं कि दमा या सांस के अन्य रोगों से पीड़ित लोग कोरोना से उतने ज्यादा प्रभावित नहीं हुए हैं। यानी कोरोना के सबसे बड़े रिस्क फैक्टर डाईबिटीज़, मोटापा, उम्र और हाइपरटेंशन हैं।

एसीई-2 रिसेप्टर

कोरोना वायरस शरीर में प्रवेश करने पर उन सेल्स को ढूँढता है जिनमें ‘एसीई-2’ इंजाइम प्रचुर मात्र में होता है। शरीर में ‘एसीई-2’ आमतौर पर ब्लड प्रेशर को रेगुलेट करता है। हाई बीपी वाले अनेक मरीजों को ऐसी दवा दी जाती है जिससे ‘एसीई-2’ का प्रॉडक्शन बढ़े और बीपी सामान्य रहे। इन्हीं ‘एसीई-2’ वाले सेल्स को कोरोना वायरस हाईजैक कर लेता है और इनका इस्तेमाल अपनी फॅमिली बढ़ाने के लिए करता है। यही इंजाइम किडनी, हृदय और खून की नलियों की भीतरी परत, फेफड़ों की हवा की थैलियों और नाक की भीतरी परत में काफी मात्रा में पाया जाता है।

वेंटिलेटर के अलावा डाइलिसिस मशीन की जरूरत

दुनिया भर में वेंटिलेटरों की कमी का आतंक मचा हुआ है और इन मशीनों की आपूर्ति भी बहुत तेजी से हुई है। लेकिन उस मशीन की तरफ ध्यान नहीं जा रहा है जिसकी भी उतनी ही जरूरत है। ये मशीन है डाइलिसिस की। न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी मेडिकल सेंटर के न्यूरोलॉजिस्ट जेनिफर फ़्रोंटेरा का कहना है कि कोरोना के बहुत से मरीजों की मौत किडनी फेल होने से हो रही है। डाक्टर जेनिफर ने कोरोना के हजारों मरीजों का इलाज किया है और उनके अस्पताल में कोरोना के मरीजों के लिए डाइलिसिस की अलग से व्यवस्था की गई है। एक स्टडी के अनुसार, वुहान, चीन में भर्ती 85 मरीजों में से 27 फीसदी की किडनी फेल हो गई। हूबेयी और शिचुआन प्रांत में भर्ती 200 मरीजों में 59 फीसदी के मूत्र में प्रोटीन की बढ़ी मात्रा और 44 फीसदी में खून पाया गया। ये सब किडनी डैमेज की निशानी हैं।

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