कोरोना से बचाव: कोरोना से बचे गांवों में कहर ढा सकता है चुनाव

कोरोना ने इस साल देश के बड़े शहरों में तबाही मचा रखी है। पिछले साल भी हाल खराब थे लेकिन इस बार हालात सबसे बदतर हैं।

Written By :  Akhilesh Tiwari
Published By :  APOORWA CHANDEL
Update:2021-04-26 19:59 IST
मरीजों का इलाज करते डॉक्टर्स फाइल फोटो (साभार- सोशल मीडिया)

लखनऊ: कोरोना महामारी के प्रकोप से ग्रामीण क्षेत्र बचे हुए हैं लेकिन जिन राज्‍यों में चुनाव कराए गए हैं वहां तेजी के साथ कोरोना संक्रमित बढ़े हैं। ऐसे में उत्‍तर प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में भी कोरोना महामारी का खतरा मंडरा रहा है जहां पंचायत चुनाव कराए जा रहे हैं। बीएचयू के इंस्‍टीट़यूट ऑफ एनवायरमेंट एंड सस्‍टेनबल डवलपमेंट के असिस्‍टेंट प्रोफेसर का मानना है कि कम आबादी और खुले वातावरण की वजह से ग्रामीण क्षेत्र अब तक कोरोना से बचे हुए हैं।

एक साल पहले के मुकाबले कोरोना महामारी ने इस साल देश के बड़े शहरों में तबाही मचा रखी है। पिछले साल भी हाल खराब थे लेकिन इस बार हालात सबसे बदतर हैं। इसके बावजूद अब तक देश के गांव कोरोना के प्रकोप से बचे हुए हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी गांवों को बचाने की अपील की है। ऐसे में बड़ा सवाल है कि आखिर गांवों में कोरोना का प्रकोप वैसा क्‍यों नहीं है जैसा बड़े शहरों में है। इसका जवाब बनारस हिंदू विश्‍वविद्यालय के असिस्‍टेंट प्रोफेसर डॉ कृपा राम के पास है। वह बताते हैं कि गांवों में मौजूद कम आबादी और खुला वातावरण इसमें मददगार साबित हो रहा है। कम आबादी और एक ही स्‍थल पर एक साथ कई लोगों की मौजूदगी नहीं होने का फायदा गांव वालों को मिल रहा है।

डॉ कृपा राम एक विश्वप्रख्यात पर्यावरण वैज्ञानिक (फोटो-न्यूजट्रैक) 

ग्रामीण क्षेत्रों में हवा का आवागमन यानी वायु संचार पूरी तरह से अवरोध मुक्‍त है। इसके विपरीत शहरी क्षेत्रों में ऊंची इमारतों के साथ ही छोटे –छोटे मकान एक ही लाइन से बने हुए हैं। गलियों से होकर ही हवा का आना-जाना होता है। ऐसे में जब कई लोग एक साथ संक्रमित होते हैं तो कोरोना के ड्रॉप्‍लेटस हवा में देर तक बने रह जाते हैं। इसके विपरीत ग्रामीण क्षेत्रों में खुला वातावरण होने की वजह से ड्रॉपलेटस बड़ी जल्‍दी के साथ हवा में घुल जाते हैं और वायु विरलता अधिक होने की वजह से लोगों को संक्रमित करने में सफल नहीं हो पाते हैं। उन्‍होंने बताया कि इस बात को ऐसे भी समझा जा सकता है कि कई शोध सामने आए हैं जिसमें बताया गया है कि बंद कमरे या बंद कार में कोरोना संक्रमण का खतरा अधिक है। जबकि खुले स्‍थान पर इसका खतरा कम है।

 छींक के साथ में निकलने वाले ड्रॉपलेट का खतरा (फोटो-सोशल मीडिया)

ग्रामीण क्षेत्रों में कम संक्रमण 

वह बताते हैं कि इस मैकेनिज्‍म को समझने की जरूरत है। अगर आप इंडोर एरिया में हैं तो छींक के साथ ही पूरे कमरे में वायरस फैलने का खतरा है। छींक के साथ में जो ड्रॉपलेट निकल रहे हैं वह एक साइज के नहीं होते हैं। बड़े ड्रॉपलेट तो जमीन पर गिर जाएंगे लेकिन छोटे ड्रॉपलेट देर तक हवा में फैले रहेंगे जो बार-बार ली जाने वाली सांस के जरिये शरीर में प्रवेश कर सकते हैं। जबकि अगर आप खुले स्‍थान में हैं तो छोटे ड्रॉपलेट तेजी के साथ हवा में उड़ जाएंगे। यही वजह है कि ग्रामीण क्षेत्रों में संक्रमण के मामले कम आ रहे हैं। गांवों में लोग काम करने के लिए भी खेत पर जाते हैं और एक ही खेत में काम करने के दौरान भी दूर –दूर रहकर काम करते हैं। केवल बाजारों में ही खतरा बढ़ता है लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में लोग हर रोज बाजार नहीं जाते हैं और कम लोग होते हैं जो किसी एक दुकान पर ज्‍यादा देर तक रुकें। इसके बावजूद ग्रामीण क्षेत्रों में भी खतरा बना हुआ है। संक्रमित रोगी ग्रामीण क्षेत्रों में भी मिल रहे हैं। अगर ग्रामीण क्षेत्रों में कोरोना के मामले उतनी तेजी से नहीं बढ़ रहे हैं जितने लखनऊ, दिल्‍ली, मुंबई जैसे बड़े महानगरों में तो इसकी वजह केवल ग्रामीण क्षेत्रों की वह परिस्थितियां हैं जो वायु संचार को तेज बनाए रखने में मददगार हैं। बंद कमरे में छींकने या खांसने के साथ जो ड्रॉपलेट जमीन पर गिरते हैं उनसे भी खतरा बना रहता है। इसलिए बंद कमरों में सैनिटाइजेशन की सलाह दी जाती है।

पंचायत चुनाव से मंडरा रहा है खतरा

ग्रामीण क्षेत्रों में भी पंचायत चुनाव के साथ ही कोरोना महामारी का खतरा मंडरा रहा है। चुनाव ही वह मौका है जब ग्रामीण क्षेत्रों में दारु और नॉनवेज दावतें हो रही हैं। लोग एक –दूसरे के करीब आ रहे हैं। मतदान के मौके पर भी कई घंटों तक लाइन में लग रहे हैं। ऐसे में कोरोना संक्रमण बढ़ने का खतरा बना हुआ है। सभी अनुकूलताओं के बावजूद अब गांवों में बीमारी बढ़ सकती है लेकिन इतना तय है कि कम आबादी और पर्याप्‍त वेंटीलेशन की वजह से ही गांव अब तक महामारी से बचे हुए हैं।

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