चौकाघाट-लहरतारा पर निर्माणाधीन फ्लाईओवर, भ्रष्टाचार और लापरवाही का पुल

Update:2023-08-27 23:47 IST

आशुतोष सिंह

वाराणसी: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में चौकाघाट-लहरतारा रुट पर बन रहा फ्लाईओवर लापरवाही की नई मिसाल बन चुका है। ये बात यूं ही नहीं कही जा रही है। निर्माणाधीन पुल के पास गुजरना है तो आपको जान हथेली पर लेकर जाना होगा। भ्रष्टाचार और कमीशनखोरी के आंकठ में डूबे अधिकारियों ने इसे बनने से पहले ही मौत के पुल के रूप में तब्दील कर दिया है। साल भर पहले की ही बात है। पुल के नीचे से गुजरते लोगों पर दो बीम गिरने से 15 लोगों की जान चली गई थी। इसके बावजूद निर्माणाधीन पुल पर हादसों का दौर बदस्तूर जारी है। पिछले दिनों जब शटरिंग के दौरान लोहे की प्लेट राहगीरों पर गिरी तो अधिकारियों की लापरवाही फिर सामने आ गई। एक के बाद एक हो रहे हादसों के बाद इस पुल के निर्माण को लेकर सवाल उठने लगे हैं। सवाल सिर्फ क्वालिटी को लेकर ही नहीं उठ रहे हैं बल्कि पुल के निर्माण की समय सीमा और उस पर आने वाली लागत को लेकर भी उठ रहे हैं।

तीन बार बदली गई तारीख

बनारस के लिए बेहद संवेदनशील इस पुल को बनाने के लिए अधिकारी तीन बार तारीख बदल चुके हैं। कभी हादसा तो कभी बारिश का बहाना बनाकर अधिकारी अपनी गर्दन बचा लेते हैं। 1800 मीटर लंबे फ्लाईओवर को 30 महीने में तैयार हो जाना था, लेकिन मई 2018 तक महज 40 फीसदी ही काम हो सका है। उसी महीने में हादसे के बाद निर्माण कार्य की रफ्तार थम गई। निर्माण में लगे मजदूर भाग गए तो अधिकारी विभागीय और पुलिस कार्रवाई की चपेट में आ गए। इस दौरान लगभग पांच महीने तक काम अटका रहा।

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पुरानी डिजाइन के मुताबिक मार्च 2020 तक काम पूरा होना था। हादसे के बाद डिजाइन बदली गई और नई तारीख मार्च 2019 रखी गई, लेकिन आठ महीने गुजर जाने के बाद भी एक लेन तक तैयार नहीं हो पाया है। जानकारों के मुताबिक अगर निर्माण की रफ्तार यही कायम रही तो पुल को पूरी तरह तैयार होने में सालभर तक का भी वक्त लग सकता है। इस बीच पुल निर्माण को लेकर काशी के लोगों का सब्र छलकने लगा है। निर्माणाधीन पुल की वजह से कैंट स्टेशन के सामने आए दिन जाम के हालात बने रहते हैं। लोगों को आने-जाने में परेशानी का सामना करना पड़ता है। आए दिन हो रहे हादसों के बाद तो कुछ लोग इस पुल को बनारस की ‘पनौती’ बताने लगे हैं।

हादसों से नहीं लिया सबक

15 मई 2018 को निर्माणाधीन पुल के दो बीम गिरने से 15 लोगों की मौत हो गई थी। इस हादसे के बाद भी राज्य सरकार की ओर से बड़े-बड़े दावे किए गए। संबंधित अधिकारियों पर कार्रवाई भी की गई, लेकिन फिर वही ढाक के तीन पात। निर्माण में लापरवाही का खेल पहले जैसे ही जारी है। नतीजा ये हुआ कि 11 अक्टूबर को फिर से शटरिंग गिरने से दो लोग जख्मी हो गए। घायलों में सेना का जवान भी शामिल था जो ग्वालियर जाने के लिए निकला था। स्थानीय लोगों के मुताबिक हादसा और बड़ा रूप ले सकता था। वो तो शुक्र है कि सिक्किम के राज्यपाल की फ्लीट गुजारने के लिए रोड को कुछ देर के लिए ब्लॉक किया गया था। लापरवाही का आलम ये है कि सेतु निर्माण के अधिकारियों की ओर से स्ली गार्डर की लांचिंग से लेकर ढलाई तक के लिए यातायात ब्लॉक नहीं किया गया।

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निर्माण के दौरान न तो डायवर्जन का कोई ठोस प्रावधान है और ना ही वेडिंग जोन में लगने वाली दुकानों का। नगर निगम और यातायात विभाग एक-दूसरे पर जिम्मेदारी डालकर बचते नजर आते हैं। हादसों को रोकने के लिए निर्माणस्थल पर यातायात और पटरी दुकानदारों को रोकने के लिए प्रशासन ने 100 टीआरबी जवानों की तैनाती स्वीकृत की है। जबकि निर्माण स्थल के पास मात्र बीस से पच्चीस जवान ही पटरी और यातायात को संभालते हैं। 11 अक्टूबर को हादसे के दिन भी कुछ ऐसे ही हालात दिखे। जिस जगह पर हादसा हुआ, उसके ठीक नीचे सैकड़ों दुकानें सजी रहती है। पास में ही ऑटो स्टैंड है। हैरानी इस बात की है कि ये सबकुछ ट्रैफिक पुलिस और सिगरा पुलिस की नाक के नीचे होता है। सवाल इस बात का है कि आखिर किसकी इजाजत से निर्माणस्थल के आसपास दुकानें लगाई जाती हैं।

पुल निर्माण को लेकर सियासत

चौकाघाट-लहरतारा पुल अब वाराणसी के विकास पर भारी पड़ता नजर आ रहा है। पुल के निर्माण में जिस तरह से लापरवाही बरती जा रही है, उसे लेकर बीजेपी नेताओं को भी जवाब देते नहीं बन रहा है। 11 अक्टूबर को हुए दोबारा हादसे ने बनारस में विपक्ष को बीजेपी पर वार करने का मौका दे दिया। हादसे के दूसरे दिन अजय राय की अगुवाई में कांग्रेसी धरने पर बैठ गए। फ्लाईओवर की शटरिंग गिरने की घटना को लेकर अजय राय ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की। उन्होंने कहा कि पिछले साल फ्लाईओवर के दो बीम गिर गए थे, जिसमें 15 लोगों की जान चली गई थी।

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इस घटना से भी ना तो प्रशासन ने और ना ही शासन ने कोई सबक लिया। उल्टे जिम्मेदारों को बचाने के लिए कई अभियंताओं को बलि का बकरा बना दिया। दूसरी ओर मौके पर पहुंचे कैंट विधायक सौरभ श्रीवास्तव को स्थानीय लोगों के कड़े सवालों का सामना करना पड़ा। लोगों ने विधायक से पूछा कि अब कितनी जान लेगा ये पुल। सौरभ श्रीवास्तव ने लोगों के सवालों के जवाब तो नहीं दिए, लेकिन उन्होंने सेतु निर्माण के अधिकारियों पर अपनी भड़ास जरूर निकाली। उन्होंने कहा कि इस हादसे में जिसकी भी लापरवाही सामने आएगी, उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई होगी।

ढाई गुना बढ़ गई पुल की लागत

बनारस के विकास को रफ्तार देने के लिए कैंट रेलवे स्टेशन और रोडवेज के सामने फ्लाईओवर बनाने का फैसला लिया गया। ट्रैफिक व्यवस्था सुधारने के लिए यह फैसला किया गया। काम बेहद चुनौतीपूर्ण था क्योंकि दूसरे शहरों की अपेक्षा यहां पर सडक़ संकरी है और यातायात का दबाव काफी अधिक है। अक्टूबर 2015 से निर्माण कार्य शुरू हुआ, लेकिन अपने शुरुआती दिनों में ही काम में देरी होती चली गई। पुल निर्माण के लिए 77.41 करोड़ रुपए स्वीकृत किया गया। लेकिन अफसरों की लापरवाही और कमीशनखोरी ने मौजूदा वक्त में इसकी लागत ढाई गुनी बढ़ा दी। मतलब 77.41 करोड़ रुपए से बनने वाला पुल 171 करोड़ में बनकर तैयार होगा। इस दौरान निर्माण की अवधि भी तीन बार बढ़ाई जा चुकी है। फिलहाल दिसंबर तक इसके दो लेन से आवागमन शुरू करने का लक्ष्य है। काशी विद्यापीठ मार्ग पर दूसरे लेन का काम मार्च 2020 तक पूरा करना है।

अफसरों में कार्रवाई का खौफ नहीं

हादसा-दर-हादसा होने के बाद सवाल उठता है कि क्या सेतु निर्माण निगम के अधिकारियों को कार्रवाई का खौफ नहीं है? आखिर क्यों बार-बार मानकों की अनदेखी करके निर्माण कार्य कराया जा रहा है? 11 अक्टूबर को हुए हादसे के सहायक अभियंता जेसी तिवारी समेत दो अधिकारियों को सस्पेंड किया गया है। साथ ही इस मामले की मजिस्ट्रेटी जांच के आदेश दिए हैं। 15 मई 2018 को हुई घटना के बाद राज्य सरकार ने सात अभियंताओं और एक ठेकेदार के खिलाफ गैर इरादतन हत्या का केस दर्ज कर जेल भेज दिया था। लेकिन मौजूदा दौर में सभी आरोपित बहाल होकर दोबारा सेवा दे रहे हैं। इनमें हरीशचंद्र तिवारी, कुलजस राम, सूदन और गेंदालाल मुख्यालय से संबद्ध हैं। राजेश पाल सिंह, राम तपस्या सिंह यादव, लालचंद्र सिंह चंदौली और हरिद्वार में तैनात हैं। अब सवाल इस बात का है कि जिस विभाग के सात अधिकारी लापरवाही बरतने के आरोप में जेल की हवा खा चुके हैं, फिर से उसी विभाग में उसी पुल के निर्माण में इतनी बड़ी लापरवाही कैसे बरती जा सकती है? वो भी उस शहर में जिसके सांसद देश के पीएम नरेंद्र मोदी हों और जहां हर सातवें दिन सीएम योगी आदित्यनाथ चक्कर काटते नजर आते हैं। वहां के अधिकारियों में भी कार्रवाई का खौफ ना दिखना, वाकई हैरान करता है।

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