सरकार ने पूरे किए चार साल,देर से ही सही अखिलेश ने रखा एक्सीलेटर पर पैर

Update:2016-03-14 18:01 IST

Vinod Kapoor

लखनऊ: अखिलेश यादव मंगलवार को अपनी सरकार के चार साल पूरे कर रहे हैं और अब चुनावी साल होने के कारण उन्होंने एक्सीलेटर पर पैर रख दिए हैं। 15 मार्च 2012 को टीपू अखिलेश के सुल्‍तान बनने के साथ ही राजनीतिक हलकों में इस चर्चा ने जोर पकड़ लिया था कि यूपी में एक नहीं पांच सीएम हैं। सीएम ने विधानसभा में 2016-17 का बजट पेश किया तो एक शेर भी पढ़ा ''जब से पतवारों ने मेरी नाव को धोखा दे दिया मैं भंवर में तैरने का हौसला रखने लगा।''

सीएम ने जब विधानसभा में बजट पेश करते वक्त शेर पढ़ा तो इसके कई राजनीतिक मायने निकाले जाने लगे। उनके ‘तैरने के हौसले’ तो एक के बाद एक लाई गई परियोजना के साथ सामने आ रहे थे लेकिन यह सवाल उठाया जा रहा था कि कौन ‘पतवार’ उनकी ‘नाव’ को छोड़ गया। यह कहा गया कि अखिलेश के अलावा सपा अध्यक्ष मुलायम सिंह, चाचा और लोक निर्माण मंत्री शिवपाल सिंह यादव, सपा महासचिव और एक और चाचा रामगोपाल यादव और अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री आजम खान ये पांचों मिलकर सरकार चला रहे हैं और अखिलेश अकेले कोई फैसला नहीं ले सकते।

हाल के कुछ महीने को छोड़ दिया जाए तो सपा अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव सीएम अखिलेश यादव को फटकार लगा दिया करते थे। उन्होंने कई मौकों पर उन्हें ठीक से सरकार चलाने की नसीहत भी दी थी। अब उन्होंने अपने सीएम बेटे की तारीफ शुरू की है। चाचा शिवपाल ने तो कभी सीएम के किसी फैसले के बारे में कुछ नहीं कहा लेकिन दूसरे चाचा रामगोपाल ने उनके कई फैसलों पर शुरू में उंगली उठाई थी। अखिलेश की ‘नाव’ के यही चार ‘पतवार’ माने जाते थे जिस पर उन्हें पूरा भरोसा और विश्वास था।

हालांकि अखिलेश ने चुनाव को देखते हुए अपनी नई टीम बना ली है। कैबिनेट मंत्री कमाल अख्तर जामिया मिलिया विश्वविधालय छात्र संघ से जुडे़ थे तो राज्य मंत्री अभिषेक मिश्रा आई आईएम अहमदाबाद के प्रोडक्ट हैं। यासर शाह युवा मंत्री हैं। उदयवीर सिंह जेएनयू छात्रसंघ से जुडे़ रहे हैं। रामगोपाल द्वारा पार्टी से निकाले और फिर वापस लाए गए संजय लाठी पत्रकारिता में पीएचडी हैं । इसी तरह नफीस अहमद अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से जुडे़ रहे हैं।

मोटे तौर पर ये अखिलेश की युवा टीम है जिस पर वो पूरा भरोसा करते हैं। चुनाव और सरकार के काम को जनता तक पहुंचाने की कमान भी संभवतह इसी टीम के हाथ होगी। लखनऊ में चुनाव के पहले मेट्रो और आगरा एक्सप्रेस वे को सरकार अपनी उपलब्घि में शामिल करना चाहती है ओर इसके लिए पूरा प्रयास भी कर रही है। अखिलेश को विजन वाला सीएम माना जाता है। लखनऊ में विदेशों की तरह अलग से साइकिल ट्रैक इसी विजन का नतीजा है।

चुनावी घोषणापत्र को पूरा करने के लिए अखिलेश ने छात्र-छात्राओं को लैपटाप, बेरोजगारी भत्ता, दसवीं पास मुस्लिम लड़कियों को उच्च शिक्षा के लिए 30 हजार रुपए का अनुदान जैसी योजनाएं शुरू तो हुईं लेकिन सभी धीरे-धीरे बंद करनी पड़ी। लैपटाॅप योजनाओं को बाद में मेधावी तक सीमित कर दिया गया। कन्या विद्याधन भी मेधावी तक सीमित हो गई। चुनाव को देखते हुए सीएम ने पेट्रोल-डीजल पर वैट कम कर आलोचकों का मुंह बंद कर दिया लेकिन सीमेंट पर एक प्रतिशत टैक्स बढ़ा दिया।

विपक्ष खासकर बसपा और बीजेपी के पास पूरा मौका था कानून व्यवस्था, भ्रष्टाचार और अन्य वायदों पर सवाल खड़ा करे। खासकर लोकायुक्त नियुक्ति में सुप्रीम कोर्ट की फटकार पुलिस वालों पर लगातार हो रहे हमले। लेकिन बसपा अपने मंत्रियों पर लगे भ्रष्टाचार के आरोप में फंसने से बचने के लिय चुप रही तो बीजेपी को आपसी झगडे से निपटने से ही फुरसत नहीं मिली ।सपा ने चुनाव में वायदा किया था कि बसपा के शासनकाल में हुए भ्रष्टाचार की जांच के लिए आयोग बनेगा लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ।

आयोग बने और उसमें मायावती समेत अन्य नेता फंसे इसलिए बसपा चुप रही। बीजेपी को 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में मिली जीत के गुमान में ही रही और उन्‍हें नेता आपसी गुटबाजी में ही लगे रहे। यदि मुलायम सिंह अपनी ही सरकार की आलोचना नहीं करते तो शायद सरकार को किसी तरह विरोध ही नहीं हो पाता। अखिलेश अब चुनाव को लेकर विश्वास से भरे हैं और छठा बजट भी पेश करने का दावा कर रहे हैं। वे कहते हैं कि सपा अपने काम से फिर सरकार बनाएगी और उसे इसके लिए किसी की मदद की जरूरत नहीं पडे़गी।

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