आगरा : मैं राष्ट्रपिता हूं...मैं गांधी हूं...मैं बापू हूं...मैं अहिंसा वादी हूं। यह सब नाम मुझे यहीं पर मिले। मगर हे राम! मैं आज बदहाल हूं। कहीं मेरे सहारे की लाठी टूट गई है तो कहीं चश्मा की डंडी टूट गई है। मेरा बदन भी खस्ताहाल है।
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मेरा भारत ऐसा नहीं था। अरे! मेरे नाम की माला जपने वाले और मेरे नाम पर राजनीति करने वाले मुझ पर कुछ तो तरस खाओ। मेरे नाम से अपनी राजनीति चमकाने वाले कुछ तो मुझे भी चमकाओ। मेरा भी ख्याल रखो। मेरी भी सही से देखभाल करो।
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अगर महात्मा गांधी जी आज जिन्दा होते तो अपनी प्रतिमाओं की दुर्दशा पर यही कहते। क्या 2 अक्टूबर को ही सबको मेरी याद आती है? फिर सब भूल जाते हैं।शहर में तीन जगह लगी और रखी गांधी जी की प्रतिमाओं की हालात का जायजा लिया तो चौंकाने वाली हकीकत सामने आई।