गाजियाबाद लोकसभा सीटः राजनीतिक दलों ने जताया बाहरी चेहरों पर भरोसा
GhaziabadNews: इतिहास गवाह है कि तमाम मुखालफत और बहस के बाद गाजियाबादियों ने हर बार परदेसियों से ही आंखें मिलाई हैं।
Ghaziabad News: लोकतंत्र के सबसे बडे़ महापर्व के आगाज होने से पहले ही सांसद के बाहरी व घर का होने को लेकर घमासान मचने लगा है। खासकर भाजपा में अपनों ने ही इसको लेकर बिगुल बजा दिया है। लेकिन बता दें कि यह हल्ला बेवजह ही हो रहा है। इतिहास गवाही दे रहा है कि तमाम मुखालफत और बहस के बाद गाजियाबादियों ने हर बार परदेसियों से ही आंखें मिलाई हैं। सिर्फ मतदाताओं को ही नहीं बल्कि राजनीतिक दलों को भी बाहरी चेहरे ही भाये हैं और बाहरी चेहरों के माध्यम से ही सियासी दलों ने चुनावी वैतरणी को पार किया है।
2009 में वजूद में आई गाजियाबाद लोकसभा सीट
गाजियाबाद जिला बनने से पहले भी यही हालात थे और आज भी ऐसा ही नजारा है। गाजियाबाद लोकसभा सीट असल में 2009 में वजूद में आई थी। इससे पहले यह हापुड़ लोकसभा सीट हुआ करती थी। इतिहास के पन्ने पलटे तो हकीकत यही है कि आजादी के बाद से अभी तक हुए लोकसभा चुनावों में से अधिकांश में गाजियाबाद के मतदाताओं ने बाहरी उम्मीदवारों पर ही ज्यादा भरोसा जताया है। अब वह किसी सियासी दल के टिकट पर चुनाव लड़े या निर्दलीय। आजाद भारत में वर्ष 1951 में हुए पहले आम चुनाव में गाजियाबाद मेरठ दक्षिण सीट का हिस्सा था। यहां के मतदाताओं ने संसद में में अपनी नुमाइंदगी के लिए मेरठ के रोहटा निवासी कृष्ण चंद शर्मा को चुनाथा। दूसरे लोकसभा चुनाव यानि वर्ष 1957 में भी यहां के मतदाताओं ने दोबारा कृष्ण चंद शर्मा को ही जिताया। वर्ष 1962 में हुए आम चुनाव में कमला चौधरी बिजनौर से आई और यहां से चुनाव लड़ी, मतदाताओं ने उन्हें जिताया और संसद पहुंचाया।
वर्ष 1967 में हुए चौथे आम चुनाव में गाजियाबाद के मतदाताओं ने बिजनौर के ही रहने वाले आर्य समाज नेता प्रकाशवीर शास्त्री से कुछ ऐसे प्रभावित हुए कि उन्हें जिताकर संसद पहुंचा दिया। प्रकाशवीर शास्त्री यहां से निर्दलीय चुनाव लड़े थे। इसके बाद वर्ष 1972 में हुए लोकसभा चुनाव में अलीगढ़ के रहने वाले बीपी मौर्य ने कांग्रेस से चुनाव लड़ा। इस बार फिर जनमानस ने उन्हें अपना भाग्यविधाता चुन लिया। वर्ष 1976 में गाजियाबाद के जिला बनने के बाद यहां पहली बार वर्ष 1977 के लोकसभा चुनाव हुए। इस बार दादरी के रहने वाले कुंवर महमूद अली को जनता पार्टी का टिकट दिया गया। लोगों ने उन्हें भी जिताकर संसद भेजा।
वर्ष 1980 के संसदीय चुनाव में बुलंदशहर के निवासी अनवार अहमद को संसद भेजा। वर्ष 1984 के चुनाव में एक बार फिर गाजियाबाद के लोगों ने बाहरी पर भरोसा जताया। इस चुनाव में सुल्तानपुर से यहां लाए गए कांग्रेस के प्रत्याशी केदार नाथ सिंह उर्फ केएन सिंह को गाजियाबाद के मतदाताओं ने जिताया। हालांकि वर्ष 1989 में हुए लोकसभा चुनाव में गाजियाबाद के मतदाताओं का कुछ मिजाज बदला और और उन्होंने जनता दल के टिकट पर मोरटा के रहने वाले केसी त्यागी को सांसद बनाया। इसके बाद हापुड़ लोकसभा सीट पर आगरा के निवासी प्रोफेसर रमेश चंद तोमर को भाजपा से टिकट दिया गया। इन पर तो गाजियाबाद के लोग इतने मेहरबान हो गए कि उन्हें लगातार 1991, 1996, 1998 और 1999 के चुनाव में चार बार लगातार जिताकर संसद भेज दिया।
वर्ष 2009 में गाजियाबाद लोकसभा सीट अस्तित्व में आई और इस बार मिजार्पुर के रहने वाले एवं भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह को चुनावी मैदान में उतारा गया। राजनाथ सिंह को गाजियाबादियों ने भारी बहुमत से जिताया। 2014 के लोकसभा चुनाव में राजनाथ सिंह लखनऊ चले गए और भाजपा ने गाजियाबाद लोकसभा में इतिहास फिर दोहरा दिया। इस बार सेना के सर्वोच्च पद से सेवानिवृत्त होकर आए जनरल वीके सिंह को टिकट दिया गया। गाजियाबाद की जनता ने उन्हें स्वीकार किया और उन्हें संसद भेजा। जनता के इस भरोसे का सरकार ने भी ध्यान रखा और जनरल वीके सिंह को केंद्र सरकार में राज्य मंत्री बना दिया। इसके बाद बारी आई वर्ष 2019 के आम चुनाव की तो जनरल ने पीएम मोदी की टीम में दोबारा वापसी की और इस बार तो गाजियाबाद के मतदाताओं ने जनरल पर ऐसी कृपा बरसाई कि उन्हें रिकॉर्ड मतों से जिताकर संसद भेजा। सरकार ने दोबारा भरोसा जताते हुए उन्हें केंद्रीय राज्यमंत्री बनाया और इस बार कई मंत्रालयों की जिम्मेदारी सौंपी। अब आम चुनाव 2024 का बिगुल बजने जा रहा है तो घर व बाहरी प्रत्याशी का हल्ला फिर मचने लगा है।