Gomti River front scam: अखिलेश यादव के करीबी हैं आलोक रंजन, बनाते हैं सपा की रणनीति

Lucknow: गोमती रिवरफ्रंट घोटाले की जांच कर रही सीबीआई की टीम ने राज्य सरकार से आलोक रंजन और दीपक सिंघल के खिलाफ भी जांच की अनुमति मांगी है।

Update: 2022-06-26 10:12 GMT

Alok Ranjan। (Social Media)

Lucknow: गोमती रिवरफ्रंट घोटाले (Gomti Riverfront scam) की जांच की आंच अब दो पूर्व बड़े नौकरशाहों के दहलीज तक पहुंच गई है। आरोपों के मुताबिक 1400 करोड़ से ज्यादा के इस घोटाले की जांच कर रही सीबीआई की टीम (CBI Team) ने राज्य सरकार से सपा सरकार (SP Government) में मुख्य सचिव रहे आलोक रंजन (Alok Ranjan) और दीपक सिंघल (Deepak Singhal) के खिलाफ भी जांच की अनुमति मांगी है। सपा सरकार में हुए इस घोटाले में अब तक कई बड़े नाम सामने आ चुके हैं, लेकिन अब पूर्व मुख्य सचिव आलोक रंजन का नाम आते ही उनके सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव (SP Chief Akhilesh Yadav) से गहरे रिश्तों की चर्चा भी शुरू हो गई है। न्यूजट्रैक के प्रधान संपादक योगेश मिश्र ने 9 जून 2017 को ही यह अंदेशा जताते हुए इस पर खबर लिखी थी कि गोमती रिवर फ्रंट घोटाले (Gomti Riverfront scam) की जांच में पूर्व मुख्य सचिव आलोक रंजन भी लपेटे में आ सकते हैं और अब करीब 5 साल बाद इनकी यह भविष्यवाणी सच साबित हुई है। चलिए आपको बताते हैं कि पूर्व सीएस आलोक रंजन कौन हैं और अखिलेश सरकार में उनका क्या रुतबा था।

पूर्व आईएएस आलोक रंजन को जानिए?

1978 बैच के रिटायर्ड आईएएस अफसर आलोक रंजन (Alok Ranjan) का सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव (SP Chief Akhilesh Yadav) से काफी करीबी रिश्ता है। 2022 के चुनाव में वह उनके लिए पर्दे के पीछे कार्य कर रहे थे। चुनाव से ऐन वक्त पहले 8 फरवरी को वह समाजवादी पार्टी कार्यालय पर अखिलेश यादव के साथ मंच पर भी दिखाई दिए। आलोक रंजन के नेतृत्व में सपा ने 'मिशन 2022' की रणनीतियों को तैयार की थी और यह समाजवादी पार्टी के 'वचन पत्र' के रूप में सामने आया। अखिलेश यादव ने आलोक रंजन के साथ 88 पेज का 'वचन पत्र' जारी किया था। यूपी चुनाव नतीजों के बाद आलोक रंजन के नाम की चर्चा उस वक्त फिर से तेज हो गई जब यूपी में राज्यसभा चुनाव की रणभेरी बजी। सपा के पास तीन सदस्य को जिताने का मत था। जिसमें आलोक रंजन का नाम भी मीडिया में कई दिनों तक चला लेकिन किसी कारणवश वह राज्यसभा प्रत्याशी नहीं बनाए गए। उसके बाद एमएलसी को लेकर भी चर्चा हुई कि अखिलेश उन्हें विधान परिषद भेज सकते हैं, यहां भी सिर्फ उनका नाम ही चला एमएलसी दूसरे बन गए।

2014 में सुर्खियों में आए आलोक रंजन

आलोक रंजन (Alok Ranjan) आईएएस अफसर थे वह यूपी के कई बड़े पदों पर कार्य भी कर चुके थे। लेकिन वह पहली बार सुर्खियों में उस वक्त छाए जब 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने मुलायम सिंह यादव के करीबी नौकरशाह जावेद उस्मानी से मुख्य सचिव की कुर्सी छीनकर आलोक रंजन को सौंप दी थी। उसके बाद से आलोक रंजन ने सरकार की योजनाओं को जमीन पर उतारने का बेहतरीन कार्य किया। इससे अखिलेश यादव का भरोसा उन पर और बढ़ गया। यही वजह है कि उनके रिटायर होने के बाद भी अखिलेश ने उन्हें अपना निजी सलाहकार नियुक्त कर लिया था। सरकार के हर फैसले में आलोक रंजन शामिल रहते थे।

2017 के बाद भी नहीं छूटा साथ

2017 के विधानसभा चुनाव में सपा को शिकस्त मिलने के बाद भी अखिलेश यादव और पूर्व सीएस आलोक रंजन के रिश्तों में कोई नरमी नहीं दिखी। वह अखिलेश यादव के साथ मिलकर उनके लिए आज भी कार्य कर रहे हैं। चाहे वह 2019 का लोकसभा चुनाव रहा हो या फिर 2022 का विधानसभा चुनाव सपा के लिए आलोक रंजन हमेशा उपलब्ध रहते हैं। यूपी चुनाव के दौरान उन्हें अक्सर सपा कार्यालय आते और जाते देखा जाता था। वह सीधे अखिलेश यादव को रिपोर्ट करते हैं। फिलहाल अब गोमती रिवरफ्रंट घोटाले की जांच उन तक भी पहुंच चुकी है तो मुश्किलें बढ़ती नजर आ रही हैं। 

दीपक सिंघल को भी जानिए?

दीपक सिंघल का कई विवादों से नाता रहा है। वह 1982 बैच के आईएएस अधिकारी हैं और सात जुलाई 2016 को उन्हें आलोक रंजन के सेवानिवृत्त होने के बाद प्रदेश का मुख्य सचिव बनाया गया था। दीपक सिंघल पर तमाम भ्रष्टाचार के आरोप भी लग चुके है। उनका नाम प्रदेश के 10 सबसे भ्रष्ट अधिकारियों की लिस्ट में भी आया था। सिंघल पर आरोप था कि उन्होंने अपने रिश्तेदारों की कंपनी को काली सूचि से निकालकर फिर से सुचारू करने में मदद की थी।

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