प्रेम की अनोखी मिसालः इंजीनियरिंग छोड़ बन गए नेचर क्लब के योद्धा
अभिषेक बताते हैं कि जब वह 18 साल के थे, स्कूली शिक्षा के दौरान प्रकृति के विषय में अध्ययन के कारण उनके मन में प्रकृति के प्रति अगाध प्रेम हो गया। उन्होंने बचपन के दिन नदी, तालाबों, जानवरों और पखियों को निहारते हुए गुजारे हैं। नेचर साइंस के प्रति उनमें नया सीखने की जबरदस्त उत्कंठा है।
गोंडा। जिस तीव्र गति से पर्यावरण की दुर्दशा हुई है, मौजूदा समय यह हमारे लिए एक अलार्म की तरह है। मनुष्य ने अपनी उदरपूर्ति, इच्छापूर्ति और स्वाद के लिए पेड़-पौधों, वनस्पतियों व जीवों का जीवन संकट में डाल दिया है। बदलते वक्त की आंधी में तमाम अन्य पशु पक्षी, नदी, तलाब और जंगल भी विलुप्ति की कगार पर हैं। यदि हम अब भी न चेते तो विनाश की इस आंधी में बहुत कुछ नष्ट हो जाएगा। ऐसे में जिले के युवा अभिषेक दूबे पशु-पक्षियों और जैवविविधता को बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
तन मन और धन से प्रकृति और वन्यजीवों के लिए समर्पित अभिषेक स्कूल कालेज के छात्र-छात्राओं को जागरुक करते हैं। वे प्रकृति और वन्यजीव संरक्षक के तौर पर जाने जाते हैं। अभिषेक इंजीनियर थे, लेकिन प्रकृति, पक्षियों और जानवरों में उनकी दिलचस्पी ने उनका जीवन बदल दिया। अभिषेक ने प्रकृति और जैव विविधता संरक्षण का वीणा उठाया और कई वर्षों से नेचर क्लब फाउंडेशन के बैनर तले बिना रुके थके कार्य कर रहे हैं। लाक डाउन में भी अभिषेक आगे आए और उन्होंने अपने समर्थकों की मदद से लाखों रुपए खर्च कर लगातार 40 दिनों तक हजारों बेसहारा जानवर, बंदर, कुत्तों और पक्षियों को चारा, भूसा, सब्जी, रोटी, तहरी, फल खिलाया।
इंजीनियरिंग छोड़ प्रकृति से जोड़ा नाता
जनपद मुख्यालय के मोहल्ला सिविल लाइन तथा कर्नलगंज तहसील क्षेत्र में परसा महेसी गांव के मूल निवासी शिक्षक प्रसिद्ध नाथ दूबे और मंजू दूबे के इकलौते पुत्र अभिषेक दूबे ने डिप्लोमा के बाद लखनऊ के रामेश्वर प्रसाद इंजीनियरिंग कालेज से इलेक्ट्रानिक्स में बीटेक की पढ़ाई की और सिंगापुर की एक कम्पनी में इंजीनियर हो गए। लेकिन बचपन से ही प्रकृति के प्रति अगाध प्रेम के कारण साल भर बाद ही उन्होंने यह ग्लैमरस नौकरी छोड़ दी और वापस घर चले आए।
तब से अभिषेक पौधरोपण, वन्यजीवों का संरक्षण, नदियों-तालाबों की सफाई, घायल पशु पक्षियों का इलाज, स्कूल कालेजों में पर्यावरण जागरुकता और प्राकृतिक धरोहर के अध्ययन में लगातार जुटे हैं। उन्हें माता पिता और इकलौती बहन दिव्या का भी भरपूर समर्थन और सहयोग मिल रहा है। उनका कहना है कि पर्यावरण का असंतुलन अपने चरम पर है और यदि हमने प्रकृति व पशु पक्षियों को क्षति पहुंचाना बंद नहीं किया तो मानव के साथ पशु पक्षियों का भी अस्तित्व खत्म हो जाएगा।
18 साल की उम्र में हुआ प्रकृति प्रेम
अभिषेक बताते हैं कि जब वह 18 साल के थे, स्कूली शिक्षा के दौरान प्रकृति के विषय में अध्ययन के कारण उनके मन में प्रकृति के प्रति अगाध प्रेम हो गया। उन्होंने बचपन के दिन नदी, तालाबों, जानवरों और पखियों को निहारते हुए गुजारे हैं। नेचर साइंस के प्रति उनमें नया सीखने की जबरदस्त उत्कंठा है। नोबेल पुरस्कार विजेता और अमेरिका के पूर्व उप राष्ट्रपति अल्बर्ट अर्नाल्ड गोरे (अल्गोरे) द्वारा वर्ष 2006 में ग्लोबल वार्मिंग पर बनाई गई फिल्म ‘एन इनकनविनियंट ट्रुथ‘ (।द प्दबवदअमदपमदज ज्तनजी) ने उनके जीवन में टर्निंग प्वाइंट का काम किया।
2009 में फिल्म देखने के बाद उनके सामने प्रकृति और जैवविविधता का अनोखा संसार खुल गया। अभिषेक कहते हैं कि गांव में बचपन में बड़े-ब़ड़े पेड़, सालों साल पानी से लबालब नदी तालाब और अनेक प्रकार की चिड़ियों को देखकर मुझे बहुत अच्छा लगता था। पढ़ाई में शुरुआती दौर से ही विज्ञान प्रगति आदि पुस्तकों का अध्ययन से प्रकृति, पेड़ पौधों और पशु पक्षियों के व्यवहार की जानकारी ली। निश्चित है कि हम प्रकृति की रक्षा करें तो प्रकृति हमारी रक्षा करेगी।
जीवन संगिनी भी प्रकृति प्रेमी
कहते हैं कि मनुष्य नहीं, जोड़ियां ऊपर वाला बनाता है। प्रकृति के लिए अपना शानदार कैरियर न्यौछावर करने वाले इंजीनियर अभिषेक दूबे के साथ भी यही हुआ और वर्ष 2018 में उन्हें पशु अधिकारों के लिए संघर्षरत मशहूर संस्था ‘वीगन आउटरीच‘ से जुड़ी रुषी दूबे जीवन संगिनी के रुप में मिलीं। अब अभिषेक की पत्नी रुषी दूबे के साथ-साथ नेचर क्लब से जुड़े अजय वर्मा, यामिनी सिंह, मोहित महंत, अंकित सिंह और अंबरीश शुक्ला, अनुराग आचार्य, आयुश पांडेय, दीपिका त्रिपाठी, दिवाकर द्विवेदी, मुकीम अहमद, नेहा मिश्रा, विकास राय चंदानी, राहुल कुमार जैसे कई सक्रिय सदस्य भी पशु-पक्षियों और पर्यावरण की मदद के लिए हमेशा तैयार रहते हैं। रुषी दूबे और यामिनी सिंह नेचर क्लब के रेस्क्यू सेंटर से दुर्घटना अथवा किसी अन्य कारणों से घायल दर्जनों पशु-पक्षियों का इलाज कर उन्हें पुर्नजीवन दे चुकी हैं।
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10 साल पहले बनाया नेचर क्लब फाउंडेशन
पर्यावरण संरक्षण के कार्य को अभिषेक व्यक्तिगत रूप से भी कर सकते थे, लेकिन इस महत्वपूर्ण काम को भावी पीढ़ियों तक ले जाने के लिए उन्होंने पर्यावरण संरक्षण के लिए समान विचारधारा वाले सहयोगियों की एक अनुशाषित टीम बनाने की सोची ताकि पर्यावरण संरक्षण व संवर्धन के लिए शुरु की गई इस मुहिम को ऊंचाइयों तक पहुंचाया जा सके। इसी के तहत अभिषेक ने 10 साल पहले वर्ष 2010 में पढ़ाई के दौरान ही नेचर क्लब फाउंडेशन संस्था का गठन किया। यह फाउंडेशन एनजीओ चैरिटी पशुपालन, डेयरी और मत्स्य पालन, कृषि, पेयजल, पर्यावरण और वन, नई और नवीकरणीय ऊर्जा, वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान, जल संसाधन के प्रमुख मुद्दों पर भी काम कर रहा है।
वर्तमान में प्रदेश के विभन्न जिलों में क्लब के सौ से अधिक सदस्य प्रकृति की सेवा में पूरी सक्रियता और तन्मयता से योगदान कर रहे है। एक ओर जहां लखनऊ, वाराणसी, अयोध्या, बाराबंकी और गोंडा में क्लब के सदस्य पक्षियों को फल व आश्रय देने वाले गूलर, इमली, महुआ, जामुन, फालसा, पाकड़, पीपल, बरगद, बड़हल, देशी आम, अमरूद जैसे विशाल आकार और लम्बी आयु वाले वृक्षों क 10 हजार से अधिक पौधों का रोपण करके पर्यावरण को संरक्षित करने और जैव विविधता के संरक्षण के लिए नदी तालाबों की साफ सफाई का प्रयास कर रहे हैं। तो वहीं दूसरी ओर दुर्घटना अथवा किसी अन्य कारणों से गंभीर रुप से घायल बेजुबान पक्षियों और जानवरों का इलाज और उनकी सेवा कर उन्हें नया जीवन दिया है। विश्व पर्यावरण दिवस पर पर्यावरण संरक्षण, जीव कल्याण के लिए कार्य कर रहे लोगों को नेचर क्लब प्रशंसा प्रमाण पत्र देकर सम्मानित भी करता है।
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पक्षियों के लिए बना रहे घोंसला
इंजीनियर अभिषेक सिर्फ पक्षियों के ही नहीं बल्कि, कछुओं और अन्य वन्य जीवों के भी मददगार हैं। पक्षी विज्ञान में कोई शोध नहीं किया है, लेकिन उनका काम पक्षियों, वन्य जीवों के लिए प्रेम की एक अनोखी मिसाल है। अभिषेक कहते हैं कि मानव जाति के विकास के साथ ही गौरैया समेत तमाम पक्षियों का विलुप्त होना भी शुरू हो गया। शहरीकरण, कीटनाशक दवाओं का प्रयोग, विकिरण, जनजागरूकता का अभाव, अवैध शिकार आदि ने इन्हें आज दुर्लभ श्रेणी में ला खड़ा किया है। शहरों में तो इनका दिखाई देना लगभग दुर्लभ सा हो गया है। चिंतन मनन के बाद उन्होंने संरक्षण के लिए अभियान चलाकर काम करने का निर्णय लिया। इसके तहत वे अब तक सैकड़ों घोंसले तैयार कर चुके हैं। मिट्टी के पात्रों से बने घोंसले उन्होंने अपने घरों में भी लगाए हैं।
घायल पक्षियों को इलाज के दौरान रखने के लिए उन्होंने एक खराब कूलर से पिंजरा बनाया। पक्षी प्रेमियों को घोंसले वितरित भी करते हैं। इसके साथ ही गली मोहल्लों में नाद बनाकर बेसहारा जानवरों के लिए पानी उपलब्ध कराते हैं। अभिषेक ने बताया कि पक्षियों को दाना पानी देने के लिए प्लास्टिक के डिब्बों का स्टैंड तैयार किया है, जिन्हें पेड़ पर टांगेंगे और प्रतिदिन इसमें साफ पानी और अनाज डाला जाएगा, जिससे पक्षियों को भोजन और पानी आसानी से मिल सके। पक्षियों को उड़ने का अभ्यास करने लायक बड़ा पिंजरा बनवाया है, जिसमें घायल और उड़ने में असमर्थ पक्षी इसमें सुरक्षित उड़ान भर पाएंगे।
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घायल बेज़ुबानों का कर रहे इलाज
अभिषेक कहते हैं कि पशु पक्षी प्रेम के चलते उनके भीतर जीवों को बचाने का जज्बा जाग उठा और उन्होंने अपने घर में ही रेसक्यू सेंटर बना दिया। वे दुर्घटना अथवा अन्य किसी कारण से घायल परिदों, वन्यजीवों का रेस्क्यू करके उनका इलाज करते हैं और स्वस्थ होते ही वन विभाग की अनुमति लेकर उन्हें जंगल में छोड़ दिया जाता है। कीड़े भरे हुए गहरे घाव को भरने के लिए नियमित आवश्यक दवाएं, घाव की साफ-सफाई और लगातार देखभाल की आवश्यकता होती है, जिसे नेचर क्लब की टीम पूरा करती है।
वर्तमान में उनके घर के रेस्क्यू सेंटर में दो गोवंश, सात कुत्ते, दो बिल्लियां, चार उल्लू के बच्चे, कौआ, एक बंदर व एक महोक पक्षी का उपचार चल रहा है। उनका कहना है कि इस भागदौड़ भरी जिंदगी में अपने मन की आवाज सुननी चाहि और प्रकृति के लिए कुछ न कुछ जरूर करना चाहिए।
जीवों की आजादी के हिमायती
नेचर क्लब के सदस्य कई वर्षों से पर्यावरण तथा जानवरों की मदद व जागरूकता के लिए उत्कृष्ट कार्य कर रहे हैं। वे सभी वीगन हैं अर्थात आप किसी प्रकार के पशु-उत्पाद जैसे मांस, दूध, अंडा, मछली, चमड़ा आदि का इस्तेमाल नहीं करते हैं क्योंकि वे मानते हैं कि जानवर भी हमारी तरह व्यक्तित्व हैं। उनका इस्तेमाल करना उनके अधिकारों का हनन है तथा पशु उत्पादों की मांग से पर्यावरण, जलवायु व जैवविविधता पर बड़ा खतरा उत्पन्न हो गया है। इसलिए स्वतंत्रता दिवस पर नेचर क्लब के लोग धरती के समस्त पशु पक्षियों के आजादी की मांग उठाते हैं।
उनका मानना है कि भारतीय संविधान कहता है कि जंगल, तालाब, नदियां, वन्यजीव सहित सभी तरह की प्राकृतिक पर्यावरण सम्बन्धित चीजों की रक्षा करना व उनको बढ़ावा देना हर भारतीय का कर्तव्य होगा। साथ ही प्रत्येक नागरिक को सभी जीवों के प्रति करुणा रखनी होगी।
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नदियों की सफाई, बच्चों को करते जागरुक
अभिषेक का कहना है कि नदियों के लिए बांध अभिशाप है इससे नदी का फैलाव रुक जाता है। बांधों से नदियां नालों में तब्दील हो रही हैं। नदियों का साफ रहना बहुत जरूरी है क्योंकि ये नदियां प्रकृति को बहुत खूबसूरत बनाती है और मानव, पशु, पक्षी सभी की प्यास बुझाती हैं। लेकिन हम इन्ही नदियों को गंदा कर रहे हैं। लोग जब पूजा अर्चना करने जाते हैं तो जो चीजे बच जाती हैं उसको वही छोड़ आते हैं। इससे प्रदूषण बढ़ता है, नदियां दूषित होती हैं और वह हानिकारक तत्व जल में घुल जाता है। जब पशु, पक्षी वही जल पीते हैं तो बीमार पड़ जाते हैं।
नदी आपकी है मेरी, हम सब की है और सब लोग को इसका ख्याल करना चहिये। क्योंकि अगर हम प्रकृति का ख्याल नही रखेंगे तो प्रकृति हमारा साथ छोड़ देगी और जब प्रकृति साथ छोड़ती है तब विनाश निश्चित हो जाता है। इसीलिए अभिषेक और नेचर क्लब के अन्य सदस्य अक्सर सरयू, टेढ़ी आदि नदियों की सफाई में भी संलग्न रहते हैं। इसके साथ ही तमाम स्कूल कालेजों में विभिन्न कार्यशाला के माध्यम से छात्रों को जागरूक करने में लगे रहते हैं।
वीगन वाद का चला रहे अभियान
वीगन वाद को जनमानस की दिनचर्या मे सम्मिलित करने के लिए अभिषेक लगातार जागरूकता अभियान चला रहे हैं। उनके अनुसार, वीगनवाद-वीगन एक ऐसी जीवन शैली है, जिसमें व्यक्ति मांस या उससे संबंधित किसी उत्पाद जैसे, दूध, दही, चमड़़ा, ऊन आदि का प्रयोग नहीं करता है। वीगन वाद के फायदे गिनाते हुए अभिषेक कहते हैं कि पृथ्वी के सम्पूर्ण कृषि हेतु भूमि का 50 फीसदी पशुओं के रख रखाव में खर्च होता है, जिससे मीथेन गैस की मात्रा बढती है और यह पर्यावरण को बुरी तरह प्रभावित करता है।
अभिषेक कहते हैं कि हमारे दूध, मांस और ऊन के मांग के कारण ही बेजुबान जानवरों को अत्यंत पीड़ा सहना पडता है। मानव श्रेष्ठता की नादानी भरी सोच ने करोडों पशुआंे को आवारा सडक पर बेसहारा, भूखा और लाचार होने पर मजबूर कर दिया है। लेकिन दूध, चमड़ा, ऊन आदि की वैकल्पिक व्यवस्था कर पहले से हम ज्यादा फिट और स्वस्थ रह सकते हैं।
रिपोर्टर- तेज प्रताप सिंह, गोंडा
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