DDU Research: दवाएं न डॉक्टर, पूर्वांचल में देश की तुलना में एमडीआर टीबी के 20% अधिक रोगी

DDU Research: दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के प्राणी विज्ञान विभाग के सहायक आचार्य डॉ सुशील कुमार, शोध छात्रा नंदिनी सिंह और बाबा राघव दास मेडिकल कॉलेज के माइक्रोबायोलॉजी विभाग के अध्यक्ष डॉ. अमरेश कुमार सिंह द्वारा किया गया है।

Update: 2024-04-24 02:02 GMT

DDU Research (सोशल मीडिया) 

DDU Research: टीबी के मरीजों के बेहतरी के लिए तमाम दावों के उलट स्थितियां बेहद खराब है। अस्पतालों में न तो दवाएं मिल रही हैं न ही मरीजों की जांच ही हो रही है। गोरखपुर यूनिवर्सिटी के शोध में जो तथ्य समाने आए हैं उससे साफ दिख रहा है कि स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही किस कदर है। पूर्वांचल को लेकर हुए शोध से साफ हुआ है कि यहां देश के औसत एमडीआर टीबी की तुलना में पूर्वांचल में करीब 20 प्रतिशत अधिक रोगी हैं। दवाओं के लंबे कोर्स को बीच में ही छोड़ देने वाले मरीज भी इसके एक प्रमुख कारक हैं।

‘रिसर्च जर्नल ऑफ फार्मेसी एंड टेक्नोलॉजी’ 

दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के प्राणी विज्ञान विभाग के सहायक आचार्य डॉ सुशील कुमार, शोध छात्रा नंदिनी सिंह और बाबा राघव दास मेडिकल कॉलेज के माइक्रोबायोलॉजी विभाग के अध्यक्ष डॉ. अमरेश कुमार सिंह द्वारा किया गया है। शोध ‘रिसर्च जर्नल ऑफ फार्मेसी एंड टेक्नोलॉजी’ के मार्च 2024 के अंक में प्रकाशित भी हो चुका है।

11 फीसदी एमडीआर टीबी के मामले 

गोरखपुर यूनिवर्सिटी के डॉ. सुशील कुमार ने बताया कि अनुसंधान के तहत बाबा राघव दास मेडिकल कॉलेज के आईआरएल लैब में 498 मामलों की जांच की गई। इनमें से कुल 299 (60 प्रतिशत) नमूने पॉजिटिव पाए गए, उन्हें आगे एक अन्य परीक्षण लाइन प्रोब एसे के लिए चुना गया। इनमें से हमें 34 (11.7 प्रतिशत) मामले मिले, क्योंकि आइसोनियाज़डि नामक दवा से प्रतिरोधी थे। इनमे से 11 (4.2 प्रतिशत) ऐसे मामले थे जो एमडीआर टीबी के थे। शोध करने वाली टीम ने बताया कि टीबी की दवाइयां चार से छह महीने तक लगातार चलती हैं। इतने लंबे उपचार काल के दौरान मरीज अक्सर किन्हीं कारणों वश या फिर यूं कहें कि लापरवाही बरतते हुए अपनी दवाइयां अधूरी छोड़ देते हैं। ये इस बीमारी के जीवाणु को दवा से प्रतिरोधी बना देता है। जीवाणु के अंदर पाए जाने वाले जीन्स में उत्परिवर्तन हो जाता है, जो दवाइयों को बेअसर कर देता है। यह स्थिति चिंताजनक होती है।

कम उम्र में बन रहे टीवी के मरीज

इनसे पीड़ित मरीज सामान्य टीबी रोगियों की तुलना में कम उम्र के थे। एमडीआर टीबी के मरीजों की औसत आयु 33.8 वर्ष थी। सामान्य टीबी रोगियों की औसत आयु 36.8 वर्ष थी। यदि लिंग अनुपात की बात की जाए तो पुरुषों की संख्या एमडीआर टीबी और सामान्य टीबी दोनों में ही अधिक पाई गई। देश में एमडीआर टीबी के मरीजों की संख्या 2.7 प्रतिशत है, जबकि पूर्वांचल में 3.5 प्रतिशत है। 

Tags:    

Similar News