Gorakhpur: छह दशक से मिठास बढ़ा रही ‘बुढ़ऊं चाचा की बर्फी’ की दुकान, चीनी कम है इसकी खासियत

Gorakhpur News: गोरखपुर में विश्व प्रसिद्ध गोरखनाथ मंदिर से करीब 4 किलोमीटर दूरी पर स्थित बरगदवां चौराहे के पास बुढ़ऊं चाचा की बर्फी बहुत मशहूर है। जो कभी 56 साल पहले खोली गई थी।

Update: 2024-08-02 02:07 GMT

'बुढ़ऊं चाचा की बर्फी’ की दुकान  (photo: social media )

Gorakhpur News: उत्तर प्रदेश के गोरखपुर से भारत-नेपाल के सोनौली बॉर्डर की तरफ बढ़ेंगे तो कड़ाही में खौलते दूध को हिलाती हुई अराधना चौधरी और उनका परिवार दिख जाता है। ये बर्फी बनाते हुए दिख जाते हैं। कम चीनी वाली बर्फी की कीमत 56 साल में 5 रुपये से बढ़कर 600 रुपये किलो पहुंच चुकी है, लेकिन कद्रदानों की कोई कमी नहीं है। अब तो तिलक चौधरी के परिवार से जुड़े अन्य सदस्यों ने भी उनके नाम से दुकानें खोल रखी हैं।

गोरखपुर में विश्व प्रसिद्ध गोरखनाथ मंदिर से करीब 4 किलोमीटर दूरी पर स्थित बरगदवां चौराहे के पास बुढ़ऊं चाचा की बर्फी बहुत मशहूर है। जो कभी 56 साल पहले खोली गई थी। वर्तमान में इसका संचालन चौथी पीढ़ी के तौर पर आराधना चौधरी कर रही हैं। बुढ़ऊं काका की इस दुकान पर बर्फी का रेट 600 रुपए किलो है। अराधना बताती हैं कि शुरूआत में 5 रुपये किलो की दर से बर्फी बिकती थी। अब दौर बदल गया है। शुद्ध दूध 80 रुपये प्रति किलो से कम नहीं है। बेहद कम चीनी में बननी वाली बर्फी इस दुकान की पहचान है। आम हो या खास सभी इसके मुरीद है। अराधना बताती हैं कि दुकान पर बर्फी का दाम 600 रुपये किलो है। एक दिन करीब 50 से 80 किलो तक बर्फी बिक जाती है।

फर्टीलाइजर कारखाने की स्थापना से मिली दुकान को रफ्तार

गोरखपुर में खाद कारखाना की स्थापना वर्ष 1968 में हुई थी। तभी तिलक चौधरी ने यहां मिठाई की दुकान की नींव रखी थी। तब लकड़ी की आंच पर धीरे-धीरे दूध को गाढ़ा कर बर्फी बनती थी। कारखाने से काम कर निकलने वाले दुकान पर बैठकर इसका स्वाद को लेते ही थे, घर के लिए भी पैक कराते थे। परिवार के सदस्य बताते हैं कि वर्ष1968 से बुढ़ऊ चाचा यानी राकेश कुमार चौधरी के ससुर तिलक चौधरी ने बर्फी बनाने का काम शुरू किया था। बरगदवां इलाके में उन दिनों फर्टिलाइजर की वजह से चाय और बर्फी की खूब बिक्री होती थी।


आम से लेकर खास तक हैं स्वाद के मुरीद

इस बर्फी के मुरीद बरगदवा निवासी और सामाजिक कार्यकर्ता राजेश मणि बताते हैं कि दिल्ली से लेकर कानपुर से लोग आते हैं तो उनकी डिमांड होती है कि बर्फी मंगा कर रख लें। दिवाली ही नहीं अन्य त्योहारों में बाहर रहने वाले रिश्तेदार और मित्र इसकी डिमांड करना नहीं भूलते। पूर्व विधायक जटाशंकर त्रिपाठी कहते हैं कि पूरी तरह से घुटाई वाला जायका बेहतरीन है। शायद ही आज की जेनरेशन के हिसाब हल्की मिठास वाला जायका नहीं है। लेकिन स्वाद के शौकीनों के लिए यह महत्वपूर्ण ठिकाना है।



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