Gorakhpur News: मंकीपॉक्स के वायरस में बदलाव, संक्रमण बढ़ा पर मारक क्षमता हुई कम, शोध से मिली राहत की खबर
Gorakhpur News: डीडीयू में विभागाध्यक्ष, वनस्पति विज्ञान विभाग प्रो अनिल कुमार द्विवेदी ने बताया कि शोध संक्रमण दर में होने वाले बदलाव को समझने में उपयोगी है। ऐसे अध्ययन से वायरस के व्यवहार और उसके फैलाव के पैटर्न को समझने में मदद मिलती है।
Gorakhpur News: पिछले कुछ वर्षों से कहर मचा रहे मंकीपॉक्स वायरस के जीन में को लेकर बड़ी सूचना गोरखपुर के वैज्ञानिकों के शोध के बाद सामने आई है। शोध में सामने आया है कि मंकी पॉक्स के वायरस में मौजूद माइक्रो सेटेलाइट की संख्या में गिरावट आ रही है। इससे जहां संक्रमण की दर बढ़ गई है, वहीं मारक क्षमता घटने की संभावना जताई जा रही है। अब वायरस संक्रमण का सर्विलांस हो सकेगा। रियल टाइम पीसीआर की सस्ती जांच किट तैयार की जा सकेगी।
दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के इंडस्ट्रियल माइक्रोबायोलॉजी के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. साहिल महफूज, सीएसआईआर-आईजीआईबी नई दिल्ली के वरिष्ठ वैज्ञानिक व देवरिया के रहने वाले डॉ. जितेन्द्र नारायण और शोध छात्रा प्रीति अग्रवाल की यह रिसर्च अंतरराष्ट्रीय जर्नल वायरस एवोल्यूशन में प्रकाशित हुई है। कोरोना संक्रमण के साथ ही वर्ष 2021-22 में मंकीपॉक्स के मामलों में तेजी से वृद्धि देखी गई। भारत समेत 100 से अधिक देशों में संक्रमण के मामले सामने आए। लंबे समय बाद संक्रमण बढ़ने के कारणों पर रिसर्च में अहम जानकारियां सामने आईं। शोध करने वाली टीम ने बताया कि मंकीपॉक्स वायरस के जीन ओपीजी 153 में माइक्रो सेटेलाइट की संख्या में बदलाव मिला है। वर्ष 1970 में कहर बरपाने वाले मंकीपॉक्स वायरस और कोरोना काल में संक्रमण फैलाने वाले वायरस के स्ट्रेन में काफी अंतर मिला है। कोरोना काल के वायरस में माइक्रो सेटेलाइट की संख्या में काफी गिरावट मिली है। इस कमी के कारण ही मारक क्षमता कम होने की संभावना है। डीडीयू में विभागाध्यक्ष, वनस्पति विज्ञान विभाग प्रो अनिल कुमार द्विवेदी ने बताया कि शोध संक्रमण दर में होने वाले बदलाव को समझने में उपयोगी है। ऐसे अध्ययन से वायरस के व्यवहार और उसके फैलाव के पैटर्न को समझने में मदद मिलती है। जिससे वायरस के संक्रमण के रोकथाम और उपचार के तरीके विकसित कर सकते हैं।
1970 में मंकीपॉक्स का मिला था संक्रमण
बता दें कि मंकीपॉक्स का इंसानों में संक्रमण पहली बार 1970 में पश्चिमी और मध्य अफ्रीका में मिला। यह डबल स्टैंडर्ड डीएनए वायरस है। संक्रमित जानवरों से मनुष्यों में फैलता है। इसके लक्षण चेचक से मिलते-जुलते होते हैं। बुखार, सिरदर्द, ठंड लगना, शारीरिक कमजोरी और लिम्फनोड की सूजन शामिल हैं।