Gorakhpur News: डायलिसिस पर जितना खर्च कर रहे, उतने में खरीद लेते कई जर्मन शेफर्ड, चर्चा में है बालचंद का कुत्ता प्रेम
Gorakhpur News: गोरखपुर के बांसगांव निवासी बालचंद की कमाई बमुश्किल 20 से 25 हजार रुपये प्रति महीने की है। इनके जर्मन शेफर्ड का गुर्दा खराब है। इसे छोड़ने के बजाए वह इसका इलाज करा रहे हैं।
Gorakhpur News: नेपाल के राजदूत के पत्नी की बिल्ली गोरखपुर रेलवे स्टेशन से गायब हो गई। वह पिछले चार साल से परेशान हैं। ईनाम की घोषणा भी कर चुकी हैं। कई घरों में पालतू कुत्तों या बिल्ली-खरगोश के मरने पर कई दिनों तक खाना नहीं बन रहा। पशु प्रेम का ऐसा ही मामला उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में चर्चा में है। गोरखपुर के एक कुत्ता प्रेमी के पास जर्मन शेफर्ड है। उसका गुर्दा खराब हो गया है। गोरखपुर में पशु चिकित्सकों ने उसे लखनऊ रेफर का दिया है। उसकी डायलिसिस पर 40 हजार से अधिक खर्च हो चुके हैं। लोग कह रहे हैं कि इतने में तो कई जर्मन शेफर्ड खरीद लेते। पशु प्रेमी का एक ही जवाब होता है, ये रिश्ता कुछ कहलाता है। समझने का फेर है। कुत्ता मेरे परिवार का सदस्य है।
गोरखपुर के बांसगांव निवासी बालचंद की कमाई बमुश्किल 20 से 25 हजार रुपये प्रति महीने की है। इनके जर्मन शेफर्ड का गुर्दा खराब है। इसे छोड़ने के बजाए वह इसका इलाज करा रहे हैं। अभी तक 40 हजार रुपये अपने डॉग के इलाज में खर्च कर चुके हैं। बालचंद बताते हैं कि उनका डॉग काजू बिल्कुल परिवार के एक सदस्य की तरह है। कुत्ते का इलाज करने वाले गोरखपुर के पशु चिकत्सक डॉ. हरेन्द्र चौरसिया ने बताया कि इन दिनों डॉग्स में किडनी की बीमारी लगातार बढ़ रही है। रोजाना 5 से 6 डॉग किडनी के बीमारी के आ रहे हैं। बताया कि उन्हीं मे से एक डॉग को लखनऊ डायलिसिस को भेजना पड़ा। उसका क्रिटनिन लेवल 12 से ऊपर पहुंच गया था। हालांकि अब वह स्वस्थ्य है। चिकित्सकों का कहना है कि फिनायल कुत्तों की पहुंच से बहुत दूर रखना चाहिए। किशमिश और अंगूर किसी कीमत पर न खिलाएं। गंदा पानी बिल्कुल न दें, दांतों की सफाई करते रहें।
खान पान से खराब हो रहा कुत्तों का गुर्दा
डॉ. चौरसिया का कहना है कि अगर रीनल फेल्योर होना शुरू होते ही जानकारी मिल जाती है तो 80 प्रतिशत कुत्तों की किडनी डायलिसिस के जरिए बचा ली जाती है। पुराने मामलों में बचाने का औसत प्रतिशत 30 से 40 प्रतिशत रह जाता है। क्रॉनिक रीनल फेल्योर कुत्तों को आम तौर पर बुढ़ापे में होता है जबकि एक्यूट रीनल फेल्योर किसी भी उम्र में अचानक पता चलता है। डॉ. हरेन्द्र बताते हैं कि कुत्तों में क्रॉनिक रीनल फेल्योर और एक्यूट रीनल फेल्योर के मामले बढ़ रहे हैं। मगर डायलिसिस उनके जीवन को बचाने का बेहतर विकल्प बना है। डायलिसिस के लिए भेजे गए कुत्तों में ज्यादातर पालकों की लापरवाही सामने आई है। इस पर 10 से 20 हजार रुपये तक का खर्च आता है।
इन वजहों से रीनल फेल्योर
घरों में रखे वैक्यूम क्लीनर या फर्श क्लीनर कुत्ते चाट लेते हैं। सड़ा हुआ खाना खा लेते हैं। ज्यादा एंटी बॉयोटिक नुकसान करती है, यूरिन रुक जाती है। अगर सांप ने काट लिया तो भी गुर्दे पर प्रभाव पड़ता है। दांतों की सफाई न होने से बैक्टीरिया क्षमता कम करते हैं। अगर लैप्टो स्पायरोसिस बीमारी हो जाए।