Gita Jayanti 11 December: 15 भाषाओं में प्रकाशित 16 करोड़ ‘गीता’, गले में धारण करने के लिए सिर्फ 50 पैसे में ‘गीता’
Gita Jayanti 11 December: गीता के अति लघु संस्करण की अब तक 10 लाख से अधिक प्रतियां प्रकाशित हो चुकी हैं।;
Gita Jayanti 11 December: हिंदू धर्म में भगवत गीता को सबसे पवित्र ग्रंथ की श्रेणी में रखा गया है। यह दुनिया का एकमात्र ऐसा ग्रंथ है, जिसकी जयंती मनाई जाती है। हर साल मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाए जाने वाली गीता जयंती धार्मिक पुस्तकों के तीर्थ गीता प्रेस के लिए कुछ खास है। देश-दुनिया में गीता के ज्ञान को सहजता और कम कीमत में पहुंचाने की मुहीम में गीता प्रेस पिछले 100 वर्षों से जुटा है। यहां 50 पैसे में भी गीता मिलती है। अभी तक 16 करोड़ से अधिक प्रतियां प्रकाशित कर गीता प्रेस प्रबंधन ने अनूठा रिकॉर्ड बना रखा है।
वर्ष 1923 में जयदयाल गोयंदका और घनश्यामदास जालान द्वारा स्थापित गीताप्रेस ने गीता को आम हो या खास सभी के पास पहुंचाने का बीड़ा उठाया। स्थापना से पहले जयदयाल गोयन्दका ने कोलकाता की बड़ीक प्रिंटिंग प्रेस से गीता छपवाई थी, लेकिन उसमें कई त्रुटियां थीं। इसके बाद उन्होंने गोरखपुर में गीताप्रेस की स्थापना की। यह प्रेस छह अलग-अलग आकारों में गीता का प्रकाशन करता है, जिनमें अति लघु, पॉकेट साइज, पुस्तकाकार, ग्रंथाकार, और बृहदाकार शामिल हैं। गीता प्रेस ने 15 भाषाओं, हिन्दी, संस्कृत, अंग्रेजी, तमिल, तेलुगू, कन्नड़, मलयालम, गुजराती, मराठी, बंगला, उड़िया, असमिया, गुरुमुखी, नेपाली और उर्दू में गीता का प्रकाशन किया है। अब तक 16 करोड़ 78 लाख प्रतियां प्रकाशित हो चुकी हैं। सरल और चित्रयुक्त संस्करणों के जरिए गीता को बच्चों और युवाओं के लिए रोचक बनाया गया है। गीताप्रेस की रचनात्मकता और नवाचार का उदाहरण 50 पैसे की गीता है। 1942 से प्रकाशित गीता के इस अति लघु संस्करण में बेहद पतले पन्नों पर पूरे 700 श्लोक लिखे गए हैं। आकार इतना छोटा है कि आसानी से गले में पहना जा सके। गीता का यह रूप खासकर बच्चों और छात्रों के बीच लोकप्रिय है। लोग इसे बांह में भी बांधते हैं। गीता के अति लघु संस्करण की अब तक 10 लाख से अधिक प्रतियां प्रकाशित हो चुकी हैं।
गीता प्रेस ने 15 भाषाओं, हिन्दी, संस्कृत, अंग्रेजी, तमिल, तेलुगू, कन्नड़, मलयालम, गुजराती, मराठी, बंगला, उड़िया, असमिया, गुरुमुखी, नेपाली और उर्दू में गीता का प्रकाशन किया है। अब तक 16 करोड़ 78 लाख प्रतियां प्रकाशित हो चुकी हैं। सरल और चित्रयुक्त संस्करणों के जरिए गीता को बच्चों और युवाओं के लिए रोचक बनाया गया है।
ग्रहों की शांति के लिए गले में पहनते हैं गीता
गीता प्रेस के ट्रस्टी देवी दयाल अग्रवाल का कहना है कि गीता के अति लघु संस्करण को लोग ग्रहों की शांति और भगवान श्रीकृष्ण के रक्षा कवच के रूप में मानते हैं। इसकी देश-विदेश में बड़ी मांग है। गीता प्रेस द्वारा प्रकाशित गीता ग्रंथों में सरल भाषा का प्रयोग किया गया है। लोगों गले में ताबीज बनाकर इसे ग्रहण करते हैं। इसलिए इसे ताबीजी गीता भी कहते हैं। गीताप्रेस ने गीता को समझने और पढ़ने के लिए सरल भाषा और व्याख्या का उपयोग किया। जयदयाल गोयंदका की ‘गीता तत्वविवेचनी’, स्वामी रामसुखदास की ‘गीता साधक संजीवनी’ और शंकराचार्य की ‘गीता शंकर भाष्य’ जैसी टीकाएं पाठकों के बीच बेहद लोकप्रिय हैं। इनके अलावा, गीता प्रेस ‘कल्याण’ पत्रिका के माध्यम से हिंदू धर्म और संस्कृति का प्रचार-प्रसार भी कर रहा है।