Gorakhpur News: आदमखोर भेड़िये से लेकर तेंदुओं की मिटी भूख तो बदल गया व्यवहार, पसंद आ रहा बकरे का गोश्त

Gorakhpur News: कोई तेंदुआ सात साल तो कोई छह साल जंगल में गुजार चुका है। जंगल में इनका मानव से संघर्ष भी हुआ है।

Update: 2024-09-05 01:53 GMT

गोरखपुर चिड़ियाघर में आदमखोर भेड़िया और तेंदुआ   (फोटो: सोशल मीडिया )

Gorakhpur News: जंगल में धमाचौकड़ी मचाने वाले तेंदुओं से भेड़ियों का पेट नहीं भरना उनके हिंसक होने की बड़ी वजह दिख रही है। उत्तर प्रदेश के गोरखपुर चिड़ियाघर में बहराइच से पकड़ कर लाए गए आदमखोर भेड़िए से लेकर तेंदुए के व्यवहार में बदलाव दिख रहा है। इन्हें बकरे के गोश्त से लेकर कुछ अन्य पशुओं का मांस परोसा जा रहा है। पशु चिकित्सकों का कहना है कि उम्रकैद झेल रहे इन आदमखोर पशुओं की भूख ही बड़ी समस्या है। इनकी भूख का समाधान हुआ तो इनका व्यवहार भी बदल रहा है।

बिजनौर और बलरामपुर से आधा दर्जन तेंदुओं को रेस्क्यू करके गोरखपुर चिड़ियाघर लाया गया है। इन तेंदुओं को यहां लाए करीब एक साल हो चुका है। इनमें से कोई तेंदुआ सात साल तो कोई छह साल जंगल में गुजार चुका है। जंगल में इनका मानव से संघर्ष भी हुआ है। आदमखोर हो चुके इन तेंदुओं के मुंह खून लगने की वजह से ये काफी आक्रामक हो चुके थे।

चिड़ियाघर के चिकित्सक डॉ. योगेश प्रताप सिंह बताते हैं कि पेट भरने के लिए शिकार करने वाले ये तेंदुए मानव संघर्ष के बाद आक्रामक हो जाते हैं। मुंह में मानव का खून लगने के बाद आदमखोर हो जाते हैं। जब ये तेंदुए यहां लाए गए तो कीपर को बाड़े के पास देखते ही आक्रामक मुद्रा में आकर गुर्राने लगते थे। जंगल की तरह यहां खुला विचरण नहीं कर पाने की वजह से धीरे-धीरे इनके व्यवहार में बदलाव आ रहा है। अब यह शांत होते जा रहे हैं। डॉ. योगेश ने बताया कि सभी आदमखोर तेंदुओं को चार से पांच किलो मांस प्रतिदिन दिया जाता है। शुक्रवार के दिन उपवास रखा जाता है। इसके अलावा अन्य कोई भोजन नहीं दिया जाता है। अलग-अलग दिन अलग-अलग तरह के मांस भी दिए जाते हैं।

बकरे का गोश्त खा रहा बहराइच से रेस्क्यू कर लाया गया आदमखोर भेड़िया

बहराइच से रेस्क्यू कर लाया गया आमदखोर भेड़िया चिड़ियाघर में रोज डेढ़ से दो किलोग्राम बकरे का गोश्त खा रहा है। भरपेट भोजन मिलने और एकांत माहौल मिलने से अब उसके व्यवहार में भी बदलाव होने लगा है। आक्रामकता कम हुई है। चिड़ियाघर के मुख्य वन्यजीव चिकित्सक डॉ. योगेश प्रताप सिंह का कहना है कि सप्ताह भर पहले रेस्क्यू करके शहीद अशफाक उल्ला खां प्राणि उद्यान में लाया गया और उसे क्वारंटीन सेल में रखा गया है। जब आया था तो यह बेहद आक्रामक था, लेकिन अब सामान्य भेड़िए की तरह भोजन कर रहा है। रोजाना डेढ़ किलो मीट खाने के साथ ही पानी भी पी रहा है।

डॉक्टर बताते हैं कि जंगल में भेड़ियों को कई बार शिकार नहीं मिलता है तो वह दिन भर भूखे रह जाते हैं। इससे उनका व्यवहार आक्रामक हो जाता है। कई दिनों तक पेट न भरने की वजह से ही वह आदमखोर बनते हैं। यहां पर भेड़िए को रोजाना भोजन मिल रहा है। क्वारंटरीन सेल में भेड़िए की हालत अब पहले से काफी बेहतर है। आने वाले कुछ दिनों में वह पूरी तरह सामान्य हो जाएगा।

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