HC: बुजुर्ग हेड कांस्टेबिलों को नहीं मिली डायल 100 में ड्यूटी से छूट, याचिका खारिज

कोर्ट ने कहा कि याची हेड कांस्टेबिल डायल 100 में ट्रांसफर और 18 दिन के लिए ट्रेनिंग पर भेजे जाने के आदेश में कानून का कोई उल्लंघन होता नही साबित कर सके। इसलिए इस मसले में कोर्ट के दखल देने का कोई कारण नही बनता।

Update:2016-12-09 20:40 IST

लखनऊ: मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की महत्वाकांक्षी डायल 100 योजना में ड्यूटी करने से तमाम पुलिसवाले खुश नहीं हैं। इसकी बानगी हाई कोर्ट में एक सुनवाई के दौरान देखने को मिली। कुछ हेड कांस्टेबिलों ने बुजुर्ग होने का तर्क देकर डायल 100 की डयूटी के लिए भेजे जाने से पूर्व की ट्रेनिंग को कोर्ट में चुनौती दे डाली। हालांकि, अठारह दिनों की ट्रेनिंग पर भेजे जाने के आदेश को चुनौती देते हुए दायर इस याचिका पर उन्हें राहत नहीं मिली। हाई कोर्ट ने उनकी याचिका खारिज कर दी।

प्रशासनिक मामले में दखल नहीं

-आदेश सुनाते हुए जस्टिस प्रदीप कुमार सिंह बघेल ने कहा कि प्रशासनिक मामलों में कोर्ट को संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत अपनी असीमित

शक्तियों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए, जब तक कि किसी कानून का उल्लंघन न हो रहा हो।

-कोर्ट ने कहा कि याची हेड कांस्टेबिल डायल 100 में ट्रांसफर और 18 दिन के लिए ट्रेनिंग पर भेजे जाने के आदेश में कानून का कोई उल्लंघन होता नही साबित कर सके।

-इसलिए इस मसले में कोर्ट के दखल देने का कोई कारण नही बनता।

-इन हेड कांस्टेबिलों के लिए थोड़ी राहत की बात है कि कोर्ट ने उनको छूट दी कि वे चाहें तो अपनी पीड़ा अपने विभाग के सामने रख सकते हैं।

-कोर्ट ने यह आदेश हेड कांस्टेबिल पारस नाथ यादव व अन्य पांच हेड कांस्टेबिलों की ओर से दायर याचिका पर पारित किया।

विशेष कैडर का हवाला

-याचिका दायर कर सभी हेड कांस्टेबिलों का कहना था कि सिविल पुलिस के स्पेशल कैडर के हैं और राज्य सरकार के 17 अक्टूबर 2016 के एक आदेश से दुखी हैं।

-इस आदेश से सरकार ने पुलिस इमरजेंसी मैनेजमेंट स्कीम डायल 100 के तहत 18 दिन की ट्रेनिंग पर जाने का आदेश दिया है।

-याचियों का कहना था कि वे ट्रेनिंग पर नहीं जाना चाहते हैं।

-याचियों ने इसके पीछे तर्क दिया कि वे बुजुर्ग हो गए हैं और वे स्पेशल कैडर के हेड कांस्टेबिल हैं जिनकी डायल 100 के तहत डयूटी की आवश्यकता नहीं है और स्पेशल कैडर के होने के कारण उन्हें डायल 100 की डयूटी पर नही लगाया जा सकता।

-केवल कांस्टेबिलों व सब इंस्पेक्टरों को ही उस डयूटी पर लगाया जा सकता है।

-अंत में उनकी ओर से तर्क दिया गया कि उन्होंने अपना प्रत्यावेदन अपने विभाग को दे रखा है जिस पर विचार नहीं किया गया है।

-याचियों के वकील व सरकारी वकील के तर्कों को सुनने के बाद कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी।

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