Kanpur Dehat News: खतौनी निकलवाने के लिए अधिकारी की चौखट के बाहर बैठा विकलांग, सुनने वाला कोई नहीं
Kanpur Dehat News: कानपुर देहात में सिकंदरा तहसील में एक बार मानवता फिर शर्मासार हुई है, अपनी खतौनी निकलवाने के लिए और खेत का नंबर जानने के लिए अधिकारी की चौखट के बाहर एक विकलांग बैठा है लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई ।;
Kanpur Dehat News: उत्तर प्रदेश के सिकंदरा कानपुर देहात बुढ़ाना डेडीडेरा निवासी बुद्ध सिंह उम्र 61 वर्ष पुत्र दरबारी के पास सात बिस्वा जमीन है और उसे प्रधानमंत्री सम्मान निधि भी मिलती है। साल 2025 शुरू होते ही जनवरी माह में केवाईसी का सिस्टम चल रहा है। केवाईसी करने के लिए कर्मचारी खतौनी मांगते हैं। खतौनी निकलवाने के लिए खतौनी काउंटर पर पहुंचा तो उससे कहा गया कि खेत का गाटा संख्या लेकर आईए तभी निकल पाएगी ऐसे नाम से नहीं निकाल पाती।
तहसील के चक्कर काट रहा विकलांग वृद्ध
विकलांग वृद्ध अपने खेत का गाटा संख्या जानने के लिए तहसील के प्रत्येक कमरे के चक्कर काटने लगा। राजस्व निरीक्षक कार्यालय के बाहर नंबर पता करने के लिए बेचारा मजबूरन थकहार चौखट पर ही बैठ गया। तहसील में कार्यरत एसडीएम तहसीलदार सहित तहसील के समस्त कर्मचारी की नजर बेबस मजबूर लाचारी विकलांग बुद्ध सिंह पर नहीं पड़ी। बुद्ध सिंह ऐसी भीषण सर्दी में बदन पर एक स्वेटर और पैरों में महज एक पतला पजामा पहनकर तहसील के पक्के और ठंडे फर्श पर ही बैठकर अपनी समस्या के निराकरण का इंतजार करने लगा।
वहीं किसी ने इस पूरी घटना का वीडियो बना लिया और सोशल मीडिया पर वायरल किर दिया। जैसे ही वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ कर्मचारियों के हाथ पांव फूल गए और आनन-फानन में बुध सिंह का हाल-चाल पूछने लगे और बुद्ध सिंह को फर्श से उठाकर तहसीलदार कार्यालय के बाहर बरामदे में पड़ी हुई लोहे की कुर्सियों पर बैठा दिया।
जब तक बुद्ध सिंह को उसके खेत का गाटा संख्या मिला तब तक राजस्व खतौनी विभाग में खतौनी निकलना बंद हो गई और मजबूरन बुद्ध सिंह को पैसे खर्च करके तहसील परिसर के अंदर चल रही प्राइवेट दुकानों से अपनी खतौनी निकलवानी पड़ी। हालांकि दयावान दुकानदार ने बुद्ध सिंह की स्थिति को देखते हुए उसेसे 10 रुपये ही लिए, जबकि खतौनी राजस्व कार्यालय में एक खतौनी निकलवाई 20 रुपये लगता है।
विकलांग वृद्ध ने बताया अपना हाल
बुध सिंह ने बताया कि उसे सरकार द्वारा संचालित प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि के अतिरिक्त वृद्धा पेंशन नहीं मिलती है और ना ही उसे विकलांग पेंशन मिलती है जबकि पति-पत्नी दोनों ही वृद्ध हैं। भले ही तहसीलों में लोगों को कंबल बांटने की बात कही जाती है लेकिन बुद्ध सिंह ने बताया कि उसे और उसकी पत्नी को कुछ नहीं मिला। बुद्ध सिंह मजदूरी करने के लिए मनरेगा चला जाता है और उससे मिले हुए पैसे व खेती से मिलने वाले पैसों से ही अपना और अपनी पत्नी का जीवन यापन कर रहा है।
वृद्ध का विकलांग सर्टिफिकेट भी नहीं बना है। जबकि बुद्ध सिंह अपने विकलांग सर्टिफिकेट के लिए कई बार अधिकारियों की चौखट के चक्कर काट चुका है लेकिन उसका विकलांग सर्टिफिकेट नहीं बना।
सरकार की योजनाओं का लाभ पात्रों तक नहीं पहुंचती हैं और इसका फायदा अपात्र सबसे ज्यादा लेते हैं, जिसका जीता जगता उदाहरण बुद्ध सिंह है।