दर्द में हमदर्द बना KGMU: तीन दिन चलने वाली पेन क्‍लीनिक में आ रहे सैकड़ों मरीज

आमतौर पर हर इंसान को उम्र के किसी न किसी पड़ाव पर दर्द का सामना करना पड़ता है। छोटे मोटे दर्द को तो दवाओं से ठीक किया जा सकता है लेकिन लम्बे समय तक होने वाला दर्द बहुत तकलीफ देता है।

Update:2018-11-27 12:43 IST

लखनऊ: आमतौर पर हर इंसान को उम्र के किसी न किसी पड़ाव पर दर्द का सामना करना पड़ता है। छोटे मोटे दर्द को तो दवाओं से ठीक किया जा सकता है लेकिन लम्बे समय तक होने वाला दर्द बहुत तकलीफ देता है। अगर लम्बे समय तक शरीर में दर्द बना रहे तो यह खतरे की घंटी है। कई लोग ऐसे दर्द से गुज़र रहे हैं।

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ऐसे दर्द में दवाइयां स्थायी इलाज नहीं होतीं। मरीज़ों के इस दर्द को कम करने के लिए किंग जॉर्ज चिकित्‍सा विश्‍व विद्यालय (KGMU) का एनेस्‍थीशिया विभाग कड़े प्रयास कर रहा है। एनेस्‍थीशिया विभाग की डॉ सरिता सिंह मरीजों के दर्द को जड़ से खत्म करने के लिए पेन क्‍लीनिक चला रही हैं।

सप्ताह में तीन दिन चलती है क्लीनिक

उन्‍होंने बताया कि विभागाध्‍यक्ष डॉ अनिता मलिक के सहयोग से KGMU के एनेस्‍थीसिया विभाग में यह क्‍लीनिक सप्‍ताह में तीन दिन सोमवार, बुधवार और शुक्रवार को चलती है। इसकी लोकप्रियता दिन पर दिन बढ़ रही है। इस क्‍लीनि‍क में कैंसर के दर्द से जोश रहे मरीज़ों की संख्या ज्‍यादा है।

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उन्‍होंने बताया कि वैसे तो शरीर का हर दर्द बहुत परेशान करता है लेकिन कैंसर का दर्द इसके मरीज के साथ ही परिवार के लोगों को भी प्रभावित करता है। कैंसर के नाम से ही मरीज़ और तीमारदार दोनों चिंता और घबराहट के कारण परेशान होने लगते हैं जो इस दर्द को और बढ़ा देता है।

विशेष तकनीकों से होता है इलाज

डॉ अजय चौधरी के साथ मिलकर क्‍लीनिक चला रहीं डॉ सरिता सिंह ने बताया कि इस पेन क्‍लीनिक में मरीज के शरीर में होने वाले दर्द का दिमाग को अहसास कराने वाली नस के जरिये उपचार किया जाता है। विशेष तकनीकों से ऑपरेशन थियेटर में यह इलाज किया जाता है। उन्‍होंने उदाहरण देते हुए बताया कि मान लीजिये किसी को पेट का कैंसर है तो हम लोग उस ग्रंथि को ही सुन्‍न कर देते हैं।

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जो मस्तिष्‍क को दर्द का अहसास कराती है। इसी तरह ऑर्थराइटिस का दर्द, कमर का दर्द जो लम्‍बे समय से चल रहा है, उनको भी विशेष तकनीकों से दूर किया जा रहा है। ऐसे मरीजों में शरीर के अंदर ही इंटरवेंशन करके उन्‍हें दर्द से निजात दिलायी जाती है। उन्‍होंने बताया कि अगर दर्द दोबारा होता है तो यह प्रक्रिया दोबारा की जाती है।

ट्राइजेमिनल न्यूरेल्जिया का भी हो रहा उपचार

डॉ सरिता ने बताया कि इसी प्रकार एक बीमारी होती है ट्राईजेमिनल न्यूरेल्जिया यह नसों की बीमारी है। यह बीमारी तंत्रिका विकार के कारण उत्पन्न होती है। ट्राईजेमिनल न्यूरेल्जिया नर्व डिसआर्डर से संबंधित रोग है। ट्राईजेमिनल का सबसे ज्यादा प्रभाव सिर, जबड़ों और गालों पर होता है।

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उन्‍होंने बताया कि यह बीमारी कम उम्र वालों की अपेक्षा उम्रदराज लोगों को ज्‍यादा होती है। उन्‍होंने बताया कि इस बीमारी में इतना दर्द होता है कि हवा का तेज झोंका, अचानक किसी के छू जाने भर से चेहरे के उस हिस्‍से में जबरदस्‍त दर्द होने लगता है। डॉ सरिता बताती है कि आधुनिक तकनीक से ट्राईजेमिनल न्यूरेल्जिया का इलाज भी उनके द्वारा किया जा रहा है।

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