राजधानी पुलिस का अजब-गजब कारनामा, नामजद अभियुक्त को ही बना दिया विक्टिम

जिला जज राजेंद्र सिंह ने डीआईजी लखनऊ को निर्देश दिया है कि इस मामले में थानाध्यक्ष मोहनलालगंज के विरुद्ध जांच कराएं। जांच के बाद रिपोर्ट उसकी चरित्र पंजिका में दर्ज कर अदालत को भी अवगत कराएं।

Update: 2017-03-02 03:47 GMT

लखनऊ: राजधानी पुलिस का एक बेहद हैरजअंगेज मामला सामने आया है। मोहनलालगंज थाने से संबधित एक आपराधिक मामले में पुलिस ने न सिर्फ महिला अभियुक्त को पीड़िता बना दिया है अपितु इस मामले में दुराचार की धारा की बढ़ोत्तरी कर एक व्यक्ति को जेल भी भेज दिया है। तथ्यों के खुलासे पर बुधवार (1 मार्च) को जिला अदालत ने मुल्जिम अरविंद वर्मा को जमानत पर रिहा करने का आदेश दे दिया है। साथ ही केस के विवेचक और थानाध्यक्ष मोहनलालगंज के खिलाफ जांच का भी आदेश दे दिया है।

जिला जज राजेंद्र सिंह ने डीआईजी लखनऊ को निर्देश दिया है कि इस मामले में थानाध्यक्ष मोहनलालगंज के विरुद्ध जांच कराएं। जांच के बाद रिपोर्ट उसकी चरित्र पंजिका में दर्ज कर अदालत को भी अवगत कराएं। उन्होंने इस पूरे मामले की जानकारी एसएसपी लखनऊ के साथ ही सूबे के डीजीपी को भी देने का आदेश दिया है।

उनका कहना था कि थानाध्यक्ष मोहनलालगंज जो इस मामले के विवेचक भी हैं, द्वारा गंभीर लापरवाही बरती गई है। उन्होंने इस मामले के मुल्जिम को गिरफ्तार करना तो दूर बल्कि उसे पूर्ण संरक्षण प्रदान किया।

यह जानते हुए कि वह नामजद है, थाने बुलाकर उसका बयान लिया और उसे पीड़िता की तरह प्रस्तुत किया। यह सभी तथ्य किसी गंभीर साजिश की ओर इशारा करते हैं। क्योंकि सारा मामला देह व्यापार से संबधित है।

इस मामले में पीड़िता ने धोखाधड़ी की धाराओं में नामजद रिपोर्ट दर्ज कराई थी, लेकिन विवेचना के दौरान विवेचक ने एफआईआर में नामजद एक महिला मुल्जिम को पीड़िता बना दिया। फिर उसका अदालत में बयान भी दर्ज करा दिया। उसके बयान के आधार पर दुराचार के धारा की बढ़ोत्तरी कर एक मुल्जिम अरविंद वर्मा को गिरफ्तार कर जेल भी भेज दिया।

निचली अदालत से अरविंद की जमानत अर्जी खारिज हो गई। सत्र अदालत में उसकी जमानत अर्जी पर सुनवाई के दौरान इस गंभीर मामले का खुलासा हुआ। सत्र अदालत ने पाया कि इस मामले में अरविंद वर्मा तो मुल्जिम था ही नहीं और न ही अभियोजन पक्ष उसके खिलाफ कोई साक्ष्य देने में सफल रहा है। लिहाजा जमानत पर रिहा करने का पर्याप्त आधार पाते हुए सत्र अदालत ने उसकी अर्जी मंजूर कर ली। उसे 20 हजार की दो जमानते व इतनी ही धनराशि का निजी मुचलका दाखिल करने पर रिहा करने का आदेश दिया।

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अनाथ बच्चों के देखभाल व सुरक्षा मामले में 13 वरिष्ठ अधिकारी हुए पेश, पावर कार्पेांरेशन के एमडी फिर तलब

लखनऊ: इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने बुधवार (01 मार्च) दृष्टि सामाजिक संस्थान के अनाथालय में रह रहे सौ अनाथ बच्चों को आईसीपी योजना (एकीकृत बाल संरक्षण योजना) के तहत लाने के निर्देश केंद्र व राज्य सरकार को दिए हैं।

कोर्ट ने दोनों सरकारों से उम्मीद की है कि वे इस मामले में यथोचित निर्णय जल्द लेंगे ताकि अनाथलायों द्वारा उन्हें सुविधाएं मुहैया कराई जा सकें। मामले की सुनवाई के दौरान दो प्रमुख सचिवों व लखनऊ के जिलाधिकारी और एसएसपी समेत 13 वरिष्ठ अधिकारी न्यायालय में मौजूद रहे।

यह आदेश जस्टिस डीके उपाध्याय और जस्टिस राजन रॉय की बेंच ने अनूप गुप्ता की ओर से दाखिल एक विचाराधीन जनहित याचिका पर दिया।

सुनवाई के दौरान केार्ट ने पाया कि दृष्टि सामाजिक संस्थान के अनाथालय में रह रहे दो सौ में से मात्र सौ बच्चों को ही केंद्र सरकार के आईसीपी योजना के तहत सुविधाएं मिल रही हैं। केंद्र सरकार की ओर से महिला और बाल विकास विभाग के अवर सचिव राजेश कुमार ने न्यायालय को बताया कि इस दिशा में कार्यवाही की जा रही है। वह अपने वरिष्ठ अधिकारियों से इस सम्बंध में जल्द निर्देश प्राप्त करेंगे।

वहीं राज्य सरकार की ओर से अपर महाधिवक्ता बुलबुल गोडियाल ने न्यायालय को आश्वासन दिया कि इस बाबत जल्द ही एक प्रस्ताव भारत सरकार को भेज दिया जाएगा। न्यायालय के समक्ष यह भी तथ्य सामने आया कि जिला मॉनीटरिंग कमेटी द्वारा बच्चों के आश्रय गृहों का निरीक्षण 10 अक्टूबर 2014 से किया ही नहीं गया है। न्यायालय ने राज्य सरकार को इस सम्बंध में सभी अधिकारियों व कमेटियों को निर्देश जारी करने के भी आदेश दिए।

दूसरी ओर कोर्ट के पूर्व आदेश के अनुपालन में पॉवर कॉर्पोरेशन के एमडी एपी मिश्रा भी न्यायालय में पेश हुए। उन्होंने अनाथालयों से बिजली के बिल की वसूली के सम्बंध में प्रस्ताव पेश करने के लिए और समय देने की गुजारिश की। जिस पर न्यायालय ने उन्हें पुनः हाजिर होने का आदेश देते हुए मामले की अग्रिम सुनवाई के लिए 2 मार्च की तिथि निर्धारित की है।

ये अधिकारी हुए पेश

सरकारी व निजी अनाथालयों में रह रहे बच्चों की देखभाल और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए न्यायालय के आदेश के अनुपालन में विभिन्न विभागों के अधिकारी पेश हुए। रेणुका कुमार प्रमुख सचिव, महिला व बाल कल्याण विभाग, महेश गुप्ता प्रमुख सचिव, विकलांग कल्याण विभाग, आरती श्रीवास्तव निदेशक, महिला कल्याण विभाग, एके वर्मा प्रभारी निदेशक, विकलांग कल्याण विभाग, जीएस प्रियदर्शी जिलाधिकारी, लखनऊ, मंजिल सैनी एसएसपी, लखनऊ, सर्वेश कुमार पांडेय जिला परिवीक्षा अधिकारी, डीबी गुप्ता मुख्य परिवीक्षा अधिकारी, जीएस बाजपेई मुख्य चिकित्सा अधिकारी और राजेश कुमार अवर सचिव, महिला व बाल कल्याण विभाग, भारत सरकार इत्यादि अधिकारी सुनवाई के दौरान मौजूद रहे।

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नकली नोट का कारोबार करने वाले को 5 साल की सजा

लखनऊ: सीबीआई की विशेष अदालत ने बुधवार (1 मार्च) को नकली नोट का कारोबार करने के एक आपराधिक मामले में दोषी करार दिए गए मुल्जिम मो. इमरान को पांच साल की सजा सुनाई है। विशेष जज दिनेश सिंह ने मुल्जिम पर 20 हजार का जुर्माना भी ठोका है। सीबीआई के विशेष वकील केपी सिंह के मुताबिक, मुल्जिम के पास से एक लाख 25 हजार की नकली भारतीय मुद्रा बरामद हुई थी। 23 फरवरी, 2014 को सीबीआई ने उसे चारबाग रेलवे स्टेशन के प्लेटफाॅर्म नंबर-पांच से गिरफ्तार किया था।

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आय से अधिक संपति मामले में आरडीएसओ के डिप्टी डायरेक्टर की जमानत अर्जी खारिज

लखनऊ: सीबीआई की विशेष अदालत ने बुधवार (1 मार्च) को आय से अधिक संपति के एक आपराधिक मामले में आरडीएसओ के डिप्टी डायरेक्टर सिग्नल रहे विजय कुमार की नियमित जमानत अर्जी खारिज कर दी है। विशेष जज संजीव शुक्ल ने मुल्जिम के इस अपराध को गंभीर करार दिया है।

अंतरिम जमानत पर रिहा चल रहे इस मुल्जिम को जमानत खारिज होने के बाद न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया। सीबीआई के लोक अभियोजक प्रियांशु सिंह के मुताबिक, आय से अधिक संपति का यह मामला अप्रैल 2000 से 2014 के मध्य का है।

इस दौरान मुल्जिम पर अपनी आय से एक करोड़ 57 लाख 70 हजार 771 रुपए अधिक अर्जित करने का इल्जाम है। 22 नवंबर, 2016 को सीबीआई ने इस मामले में मुल्जिम के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किया था।

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