Lucknow Residency: जहां अंग्रेजों की कब्र ढूंढने आज भी आते हैं परिजन, 'इमोशनल टूरिज्म' को मिल रहा बढ़ावा

Lucknow Residency: अंग्रेज अधिकारियों और उनके परिजनों की कब्र पर लिखे ऐसे ही मार्मिक शब्द उनके वंशजों को लखनऊ खींच लाता है। रेजीडेंसी की कब्र पर नम आंखों से अपनों को याद करते हैं।

Written By :  aman
Update:2024-05-10 21:56 IST

Lucknow Residency (Pic:Newstrack) 

Lucknow Residency: भारत को आज़ादी यूं ही नहीं मिली। इसके लिए कई कुर्बानियां देनी पड़ी। देश की स्वतंत्रता के लिए कई माताओं के बेटे कुर्बान हो गए, तो कई महिलाओं की मांग की सिंदूर मिट गई। क्या आपको पता है, उत्तर प्रदेश में एक ऐसी भी जगह है जहां आज़ादी के मतवालों ने कई छोटे-बड़े अंग्रेज अधिकारियों की जान ले ली। ये है यूपी की राजधानी लखनऊ स्थित रेजीडेंसी। जानकर आश्चर्य होगा कि, अंग्रेजों के 'गढ़' रेजीडेंसी पर आज़ादी की लड़ाई लड़ने वाले वीर योद्धाओं ने 86 दिनों तक कब्ज़ा जमाए रखा।

मारे गए अंग्रेजों के परिजन आज भी हर वर्ष बड़ी संख्या में लखनऊ (UP Tourism) आते हैं। अपनों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। दरअसल, इन विदेशी सैलानियों का यहां आना उनके भावनात्मक लगाव (UP Tourism Latest News) को दिखाता है। उनकी रुचि नवाबों द्वारा बनाई इमारतों-भवनों से ज्यादा 'अपनों' की कब्र देखना-खोजना रहता है। देश के इतिहासकार इसे 'इमोशनल टूरिज्म' की संज्ञा देते हैं।

मोहपाश में बंध जाते हैं टूरिस्ट 

लखनऊ स्थित रेजीडेंसी (Lucknow Residency History) आज़ादी की लड़ाई लड़ने वालों और अंग्रेजों के संघर्ष की कई यादें खुद में समेटे है। संघर्ष में कई हिंदुस्तानी सैनिक भी शहीद हुए थे। 'नवाबी शहर' के नाम से मशहूर राजधानी की रेजीडेंसी खुद में अतीत की कई कहानियां समेटे है। शहर आने वाले टूरिस्ट यहां आकर एक अलग ही मोहपाश में बंध जाते हैं। अंग्रेजों के खिलाफ लड़ी लड़ाइयों और भारतीय वीरों की कई सुनी-अनसुनी दास्तां रेजीडेंसी (Lucknow Residency Timing) आने वालों के सामने एक दृश्य प्रस्तुत करती है। बचपन में सुनी कई किस्से-कहानियों को यहां आप साक्षात महसूस कर सकते हैं।    

अंग्रेजों के परिजन ढूंढते हैं 'अपनों' की कब्र

भारत पर शासन करने वाले अंग्रेजों के परिजन हर वर्ष बड़ी संख्या में अपने देश से यहां आते हैं। वो लखनऊ में अपने पूर्वजों की कब्रों पर श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। कब्रों को ढूंढते हैं। नम आंखों से उन्हें याद करते हैं। नि:संदेह इस 'इमोशनल टूरिज्म' के जरिए ही सही बड़ी तादात में विदेशी सैलानी लखनऊ (Lucknow Tourist Places) आते हैं। जिससे वो राजधानी के आसपास के इलाकों की भी सैर करते हैं। इससे उत्तर प्रदेश टूरिज्म (Uttar Pradesh Tourism) का प्रचार-प्रसार होता है।    

किसने बनवाई थी रेजीडेंसी ?

लखनऊ रेजीडेंसी का निर्माण नवाब आसफुद्दौला (Who Is Nawab Asif Ud Doula) के शासनकाल में 1775 में शुरू हुआ था। दरअसल, नवाब ने अंग्रेजों की सुविधा के मद्देनजर रेजीडेंसी का निर्माण दरिया किनारे ऊंचे टीले पर करवाया था। साल 1800 में नवाब सआदत अली खां के शासनकाल में रेजीडेंसी पूर्णतः बनकर तैयार हुई। उस वक़्त ईस्ट इंडिया कंपनी की ओर से नियुक्त अधिकारी यहां रहा करते थे। रेजीडेंसी दो मंजिला ईमारत है। इसे लखौरी ईंट और सुर्ख चूने से बनाया गया। यहां घूमने आने वाले पर्यटक रेजीडेंसी के बड़े बरामदों, पोर्टिको और तहखाना देख इतिहास के झरोखे में चले जाते हैं। कहते हैं, अवध के रेजीडेंट इस तहखाने में आराम फरमाया करते थे। 1857 के गदर के समय तमाम अंग्रेज महिलाओं और बच्चों ने इसी तहखाने में छुपकर खुद को बचाया था।

...जब कब्रगाह बना रेजीडेंसी

देश में पहली आज़ादी की लड़ाई के दौरान क्रांतिकारियों के हौसले काफी बुलंद थे। क्रांतिवीरों के आगे फिरंगी सेना की चूलें हिल गई  थीं। आख़िरकार, अंग्रेज वहां से भागकर रेजीडेंसी में जा छुपे। लंबे वक़्त तक वहीं शरण लेनी पड़ी। ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के अधिकारियों का आरामगाह कहा जाने वाला रेजीडेंसी ब्रिटिश अधिकारियों का कब्रगाह (Lucknow Residency Cemetery) बन गया।  

रेजीडेंसी चर्च के पास 2000 अंग्रेजों की कब्र  

रेजीडेंसी की दीवारों पर आज भी गोलियों के निशान साफ नजर आते हैं। ये अलग बात है कि, समय के साथ रेजीडेंसी का रंग-रूप बदलता गया। आज यहां बड़े-बड़े लॉन और फूलों की क्यारियां हैं, जो पर्यटकों को खासा आकर्षित करती है। रेजिडेंसी में मौजूद चर्च के पास करीब 2000 अंग्रेज अधिकारियों और उनके परिवार की कब्र है। अंग्रेजों के इन कब्रों पर उनसे जुड़े कुछ वाक्य भी लिखे हैं। जैसे- सर लॉरेंस की कब्र पर लिखा है 'यहां पर सत्ता का वो पुत्र दफन है जिसने अपनी ड्यूटी के लिए अपनी जान कुर्बान कर दी थी'।

चार प्रमुख अंग्रेज जनरल की कब्र लखनऊ में  

भारत में स्वतंत्रता संग्राम की शुरुआत 1857 में (Lucknow Residency 1857) हुआ था। खास बात ये थी कि, इस लड़ाई का केंद्र लखनऊ था। यहां की प्रसिद्ध रेजीडेंसी में भारतीय क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों को 5 महीने तक कैद रखा था। ये देश के शूरवीरों के पराक्रम को दर्शाता है। तब अंग्रेजों की ऐसी घेराबंदी हुई थी, जिसका आंकलन आप इस बात से लगा सकते हैं कि, लड़ाई के दौरान चार प्रमुख ब्रिटिश जनरल को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था। इन चारों प्रमुख जनरल की कब्र लखनऊ में है।

वो हैं- मेजर विलियम हडसन (Major William Hudson), जेम्स जॉर्ज स्मिथ नील (James George Smith Neal), हेनरी लॉरेंस (Henry Lawrence), मेजर-जनरल सर हेनरी हैवलॉक (Major-General Sir Henry Havelock)। बता दें, इन चारों प्रमुख जनरल के नाम पर अंग्रेजों ने अंडमान निकोबार के द्वीपों का नाम तक रखा। इन सभी प्रमुख जनरलों की कब्र लखनऊ रेजीडेंसी में है। अंग्रेज अधिकारियों और उनके परिजनों की कब्र पर लिखे ऐसे ही मार्मिक शब्द उनके वंशजों को लखनऊ खींच लाता है। रेजीडेंसी की कब्र पर नम आंखों से अपनों को याद करते हैं। फूलों का गुलदस्ता चढ़ाते हैं। कुछ समय बिताते हैं और ढ़ेर सारी यादें साथ ले जाते हैं।    

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