Lucknow News: भाजपा सांसद ने की पश्चिम बंगाल में राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग
Lucknow News: भाजपा सांसद बृजलाल पश्चिम बंगाल के पंचायत चुनावों में हुई व्यापक हिंसा की निंदा करते हुए अविलंब राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग की है। ममता दीदी इसी तरह हिंसा का सहारा लेकर चुनाव जीतने का प्रयास करती रहेंगी। ऐसे में राष्ट्रपति शासन ही इकलौता विकल्प है।
Lucknow News: भाजपा सांसद बृजलाल पश्चिम बंगाल के पंचायत चुनावों में हुई व्यापक हिंसा की निंदा करते हुए अविलंब राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग की है। उन्होंने कहा कि बंगाल चुनाव में हुई व्यापक हिंसा में अब 16 हत्याएं हो चुकी हैं, सैकड़ों घर जला दिए गये हैं। पोलिंग बूथों पर कब्जा करके सत्ताधारी त्रिमूल कांग्रेस के पक्ष में वोट छापे गये। बंगाल में यह राजनीतिक कार्यसंस्कृति वामपंथियों ने शुरु किए और तीन दशक से अधिक तक वहां राज किया।
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बंगाल की जनता ने वामपंथियों से त्रस्त होकर ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस का विकल्प चुना। दुर्भाग्य है कि ममता दीदी ने न केवल वामपंथियों की कार्यसंस्कृति को अपनाया, अपितु कई गुना आगे निकल गई। रंगदारी, तोलेबाज़ी अपना कर भ्रष्टाचार के झंडे गाड़ दिये। मंत्रियों के घरों के अलावा महिला मित्र तक के घरों से नोटों के पहाड़ मिले। कई मंत्री, वरिष्ठ नेता जेल में हैं। इसीलिए ममता दीदी केंद्रीय एजेन्सियों का विरोध करती हैं, जिससे बंगाल को बिना किसी बाधा को लूटा जा सके।
दीदी को ऐन केन प्रकारेन चुनाव जीतना है। वोट बैक के लिए बांग्लादेशी मुसलमानों को थोक में बसाया गया है। उन्हें वोटर बनाया गया। यही माइग्रैंट बांग्लादेशी बंगाल की हिंसा में सबसे आगे हैं। वहां की जनता त्राहि-त्राहि कर रही है।
यही हाल असम में श्रीमती इंदिरा गांधी जी ने फ़रवरी 1983 में किया था। बांग्लादेशी माइग्रैंट की संख्या बहुत बढ़ गई थी। वे कांग्रेस के वोटर बन गए थे। जनता की माँग थी की इन बांग्लादेशी मुसलमानों को वापस करके दुबारा मतदाता सूची बनाकर चुनाव हो, परंतु इंदिरा जी अपनी ज़िद पर अड़ी रही और फ़रवरी 1983 में चुनाव करवा दिये। परिणाम ‘नेल्ली दंगा’ जिसमें सरकारी आंकड़ों के अनुसार 2196 हत्याएँ हुई किन्तु यह संख्या 10,000 से कम नहीं थी।
तिवारी आयोग ने जांच की परंतु उसे सार्वजनिक नहीं किया गया, जैसे 1980 मुरादाबाद दंगे को भी कांग्रेस ने सार्वजनिक नहीं किया था। अब समय आ गया है कि बंगाल से बांग्लादेशी नागरिकों को बाहर किया जाय। यह तृणमूल सरकार में संभव नहीं है। वहां राष्ट्रपति शासन लगा कर ही संभव है, नहीं तो ममता दीदी इसी तरह हिंसा का सहारा लेकर चुनाव जीतने का प्रयास करती रहेंगी। ऐसे में राष्ट्रपति शासन ही इकलौता विकल्प है।