Lucknow News: नारद लोक कल्याण के देवता, पत्रकारिता में स्पर्धा नहीं समन्वय की जरूरत

Lucknow News: मुख्य वक्ता सुभाष जी ने कहा कि भगवान कहते हैं कि मैं स्वयं देवर्षि नारद हूं। उन्होंने बताया कि नारद जी संवाद कला में निपुण हैं। पत्रकारिता का मूल तत्व जिज्ञासा है। जिज्ञासा है तो उत्तर मिलेगा। प्रश्न समाप्त हो गया तो जिज्ञासा समाप्त हो जाएगी। नारद जी हमेशा प्रश्न खोज लाते हैं।

Report :  Abhishek Mishra
Update: 2024-05-23 13:45 GMT

नारद जयंती पर एलयू में राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन हुआ (Photo Source: Ashutosh Tripathi)

National Seminar on Narada Jayanti: चरित्र में चिंतन आएगा तभी निष्पक्षता आ सकती है। जो चिंतन में है वही चरित्र है। करुणा, परोपकार और अहिंसा ही संदेश है। नारद जी ने दक्ष के श्राप का लोकहित में उपयोग किया। नारद लोक कल्याण के देवता हैं। बाल गंगाधर तिलक छह वर्षों के लिए जेल गए। लेकिन निकलकर आए तो उन्होंने फिर से पत्रकारिता शुरू की। पत्रकारिता में स्पर्धा नहीं समन्वय चाहिए। नारद के हाथ में वीणा समन्वय का प्रतीक है। संगीत ही समन्वय है। मानवता के उत्थान के लिए संतुलन और समन्वय को समझने की जरूरत है। जो आगे बढ़ता चलेगा उसे रास्ता भी मिलता चलेगा। यह बातें आरएसएस पूर्वी यूपी क्षेत्र के क्षेत्र प्रचार प्रमुख सुभाष जी ने कही। वह लखनऊ विश्वविद्यालय में देवर्षि नारद जयंती पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी में मुख्य वक्ता रहे। 


नारद जयंती पर हुई राष्ट्रीय संगोष्ठी 

एपी सेन सभागार में देवर्षि नारद जी की वेदसम्मत नीतियां और वर्तमान भारतीय पत्रकारिता विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन हुआ। मुख्य वक्ता सुभाष जी ने कहा कि भगवान कहते हैं कि मैं स्वयं देवर्षि नारद हूं। उन्होंने बताया कि नारद जी संवाद कला में निपुण हैं। पत्रकारिता का मूल तत्व जिज्ञासा है। जिज्ञासा है तो उत्तर मिलेगा। प्रश्न समाप्त हो गया तो जिज्ञासा समाप्त हो जाएगी। नारद जी हमेशा प्रश्न खोज लाते हैं। आरएसएस पूर्वी यूपी क्षेत्र के क्षेत्र प्रचार प्रमुख सुभाष जी कहते हैं कि आदर्श की खोज और सत्य की खोज को जिज्ञासु कहते हैं। नारद जी सत्य का आचरण, सत्य का आग्रह और सत्य की निष्ठा रखते हैं। तमसो मां ज्योतिर्गमय का अर्थ है कि तमस को दूर कर ज्योति फैलाना। देश में इमरजेंसी लगाई तो तमस और अंधेरा आया था। लेकिन देश के पत्रकारों और संपादकों ने अंधेरा भगाने का काम किया। मुख्य अतिथि वरिष्ठ पत्रकार और लेखक उमेश उपाध्याय ने कहा कि आज की पत्रकारिता नारद जी के मूल्यों से उलट दिखाई देती है। मीडिया में काफी द्वंद है। नकारात्मकता अधिक दिखती है। आजादी के पहले की पत्रकारिता काफी अलग थी। नारद जी की संचार और आज की पत्रकारिता की संचार शैली में बहुत फर्क है। 

विश्व की सभी भाषाओं ने भारत का व्याकरण चुराया 

विश्व संवाद केंद्र के अध्यक्ष नरेंद्र भदौरिया ने कहा कि हमारे काम में बाहरी देश हस्तक्षेप करते हैं। नारद जी के बारे में फिल्मों और नाटकों में विदूषक या लड़ाई कराने वाले के रूप में दिखाया गया है। आज नारद को फिल्मों में देख कर हंसते हैं। हमारे सभी ऋषियों और संतों को विकृत रूप में प्रस्तुत किया गया है। विश्व की कोई ऐसी भाषा नहीं जिसने भारत का व्याकरण न चुराया हो। हमारी संस्कृति भाषा में सबसे बड़ा शब्दों का भंडार है। भारत की संस्कृति पर हमने खुद संदेह किया है। इस पर संशय करने का खामियाजा आज भुगतना पड़ रहा है। वास्को द गामा समुद्री लुटेरा था। भारत के कांजी लाल की जहाज के पीछे अपनी नांव बांधकर लाया था। लेकिन कभी कांजी लाल का नाम सामने नहीं आया। आज की पत्रकारिता ने सोशल मीडिया के सामने घुटने टेक दिए हैं। बड़े-बड़े मीडिया डूब जाएंगे जब हमारा ईमान जाग जाएगा।


भारत का चिंतन लोक कल्याणकारी 

अवध प्रांत प्रचार प्रमुख डॉ. अशोक दुबे ने कहा कि ऋषि परंपरा और लोक परम्परा में नारद जी विशेष परिकल्पना है। वह भगवान विष्णु के प्रमाभक्त थे। विष्णु के वरदान से किसी भी लोक में जा सकते थे। देवर्षि नारद छह शास्त्री के प्रणेता हैं। डॉ. दुबे ने कहा कि भारत में जब पत्रकारिता का जन्म हुआ तब नारद जी को याद किया गया। उदन्त मार्तण्ड में उनकी तस्वीर लगाई जाती थी। भारत के लोगों ने दुनिया भर से आने वाले लोगों का सम्मान किया है। यहां का चिंतन लोक कल्याणकारी है। देवर्षि नारद पत्रकारिता क्षेत्र में सबसे बड़े आदर्श हैं। संगोष्ठी का संचालन एलयू के पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. सौरभ मालवीय ने किया। 







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